जयपाल/वाराणसी : इस साल कृष्ण जन्माष्टमी 19 अगस्त को मनायी जाएगी. भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में इन दिनों जन्माष्टमी की धूम है.कृष्ण भक्ति में ओत-प्रोत विदेशी आस्थावान भी जन्माष्टमी की झांकी सजाने के लिए बनारस के लकड़ी के खिलौनों की डिमांड कर रहे हैं. इससे एक ओर जहां काशी के लकड़ी के खिलौना उद्योग को मजबूती मिली है वहीं रोजगार के नये अवसर भी पैदा हो रहे हैं.


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ओडीओपी में शामिल है खिलौना उद्योग


शिव की नगरी वाराणसी (Varanasi) दुनियाभर में अपने लकड़ी के उत्पादों के लिये चर्चा में है. जन्माष्टमी पर सजायी जाने वाली झांकी के लिए लकडी के उत्पादों को देश ही नहीं विदेशों में भी खूब पसंद किया जा रहा है. सच ये है कि जीआई टैग और एक जनपद एक उत्पाद (ओडीओपी) उत्पाद की श्रेणी में आने के बाद बनारस के लकड़ी के खिलौना उद्योग को नई उड़ान मिल रही है. इस उद्योग से जुड़ी महिलाओं को बड़ी संख्या में रोजगार भी मिल रहा है.


बनारस में लकड़ी का खिलौना उद्योग तेजी से रफ्तार पकड़ रहा है. यहां के काष्ठ शिल्पियों की हुनर का ही कमाल है कि जन्मष्टमी पर झांकी सजाने के लिये लकड़ी पर उकेरी गई 45 पीस की पूरी सामग्री आपको एक साथ मिल जाएगी. लकड़ी के लड्डू गोपाल भी खूब पसंद किये जा रहे हैं, जो हस्तशिल्पियों के हुनर का बेजोड़ नमूना है. इससे आप जन्माष्टमी की पूरी झांकी सजा सकते हैं. इसे प्राकृतिक रंगों से रंग कर और भी खूबसूरत बनाया गया है.


क्या है जीआई टैग


देश भर में उत्पादित स्थानीय वस्तुएं किसी न किसी भौगोलिक क्षेत्र से जुड़ी होती हैं. इन वस्तुओं की मांग जब दुनिया भर में बढ़ने लगती है तो इनसे मिले जुले उत्पाद तैयार कर मुनाफा कमाने की कोशिश होती है. ऐसे में वस्तुओं की गुणवत्ता व पहचान बनाए रखने के लिए जीआई टैग प्रदान किया जाता है. इसे आप भौगोलिक संकेतक भी कह सकते हैं. भारतीय संसद ने उत्पादों के पंजीयन और संरक्षण हेतु दिसंबर 1999 में जीओग्राफिकल इंडीकेशन ऑफ गुड्स (रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन) एक्ट पारित किया. इससे भारतीय उत्पादों को जीआई टैग प्रदान किये जाने की राह आसान हुई. देश में कंट्रोलर जनरल ऑफ पेटेंट, डिजाइन्स एंड ट्रेड मार्क्स (सीजीपीडीटीएम) जीआई टैग प्रदान करती है. दस साल के मिलने वाले जीआई टैग के आवेदकों (व्यक्तिगत, समुदायिक, संस्थागत) को अपने उत्पाद की विशिष्टता, उसकी विरासत आदि के बारे में बताना होता है. बहुत से जीआई टैग सामूहिक या एक या एक से अधिक भौगोलिक क्षेत्र के औद्योगिक संघ, स्व सहायता समूह व सहकारी समितियों को प्रदान किये जाते हैं.