कानपुरः उदयपुर में हुई कन्हैयालाल की हत्या के मामले में ये दावत-ए-इस्लामी का नाम सामने आया. वहीं, इस घटना का कानपुर कनेक्शन भी सामने आ रहा है. इसके बावजूद कानपुर में अभी भी दावत-ए-इस्लामी के लिए चंदा इकट्ठा किया जा रहा है. दावत-ए-इस्लामी का नेटवर्क किस कदर फैला हुआ है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में लगभग हर दुकान में इस संगठन के चंदे का बॉक्स लगा हुआ था.


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दुकानों में रखे इन ट्रांसपेरेंट बॉक्स के जरिए चंदा इकट्ठा किया जा रहा है.अब अधिकतर दुकानदारों ने इस बॉक्स को हटा दिया है, लेकिन कुछ दुकानदार अब भी चंदे का बॉक्स काउंटर पर लगाए हुए हैं. वहीं, कुछ दुकानदारों ने बॉक्स को काउंटर से हटाकर इधर-उधर रख दिया है ताकि किसी की नजर उस पर न पड़े. 


यह है आरोप
आरोप है कि सामाजिक कामों की आड़ में इकट्ठा किया जा रहा चंदा पाकिस्तान जाता है. वहीं, कई स्थानों पर पाकिस्तान के मदनी चैनल को सपोर्ट करने के लिए चंदा दिए जाने की बात डिब्बों में लिखी गई है. सूफी खानकाह एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष कौशल सन मजीदी का कहना है कि पाकिस्तानी चैनल को फंडिंग करने का मतलब अपने ही देश को कमजोर करना है.


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पाकिस्तानी तंजीम है दावत-ए-इस्लामी
पुलिस सूत्रों के मुताबिक, दावत-ए-इस्लामी का नेटवर्क सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि कई और देशों में भी फैला हुआ है. यह पाकिस्तानी तंजीम इस्लाम के प्रचार-प्रसार के बहाने चंदे की शक्ल में पैसे तो इकट्ठी करती है, लेकिन यह पैसा किसे दिया जाता है और किस काम में इस्तेमाल होता है, इसकी जानकारी उन लोगों को भी नहीं है जो संगठन के लिए चंदा इकट्ठा करते हैं. अब उदयपुर की घटना के बाद जरूर इस तंजीम को शक की नजर से देखा जा रहा है.


हरी पगड़ी वालों के नाम से हैं मशहूर
दावत-ए-इस्लामी के लोग पूरे शहर में हरी पगड़ी वालों के नाम से मशहूर है. कई मुस्लिम लोग इस तंजीम को इस्लाम का बोलबाला करने वाली तंजीम मानती है. हालांकि, कई खानकाहों को इनका तरीका भी पसंद नहीं आता है. हरी पगड़ी वाले लोगों की शहर में अच्छी-खासी तादाद है.


हर महीने अलग-अलग शहरों में इकट्ठी होती है जमात
दावत-ए-इस्लामी संगठन से जुड़े लोग अलग-अलग शहरों में हर महीने एक बार इकट्ठे होते हैं, इसे जमात कहा जाता है. इस दौरान मुस्लिमों को इस्लाम के बारे में जानकारी देने का दावा किया जाता है. हालांकि, कई जिलों में इनके मानने वाले लोगों की कम संख्या होने के कारण जमात में ज्यादा भीड़ नहीं जुटती, लेकिन यह संगठन लगातार अपनी गतिविधियां बढ़ाने में जुटा हुआ है. शहर में कई इलाके हैं जहां दावत-ए-इस्लामी से तमाम लोग जुड़े हैं और जमात के दौरान भारी संख्या में उन्हें सुनने भी पहुंचते हैं. 


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