UP First Glass Bridge : धार्मिक नगरी चित्रकूट में इको टूरिज्म को बढ़ावा देने की दिशा में यूपी सरकार ने एक और कदम आगे बढ़ाया है. रानीपुर वन्य जीव विहार को टाइगर रिजर्व के रूप में विकसित करने की सौगात देने के बाद योगी सरकार धर्म नगरी में प्रदेश का पहला कांच का पुल (Glass Bridge) बनाने जा रही है. सरकार ने इसके लिए मास्‍टर प्‍लान तैयार कर लिया है. 


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प्रदेश का पहला कांच का पुल होगा  
दरअसल, मानिकपुर ब्लॉक में मारकुंडी वन रेंज के टिकरिया गांव के पास तुलसी जल प्रपात में प्रदेश का पहला कांच का पुल बनने का रास्‍ता साफ हो गया है. इसके लिए मास्‍टर प्‍लान तैयार किया जा रहा है. वन रेंजर मारकुंडी अनुज हनुमंत ने बताया कि 
ग्लास ब्रिज बनने के मास्टर प्लान को लेकर प्राकृतिक झरने को देखने पहुंचे टूरिस्ट के साथ ही स्थानीय लोग काफी उत्‍साहित हैं.  


लोगों को रोजगार मिल सकेगा 
वहीं, स्थानीय लोगों का कहना है कि सरकार की सकारात्‍मक सोच के चलते क्षेत्र में विकास को नए पंख लग रहे हैं. प्रदेश में यह एक अनोखा ग्लास ब्रिज होगा, जिसको देखने के लिए अन्य प्रदेश से भी लोग धर्म नगरी चित्रकूट पहुंचेंगे. इससे टूरिज्म क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा और इसी के सहारे लोगों को रोजगार भी मिलेगा. 


ऐसे सबरी जल प्रपात अस्तित्‍व में आया 
जिलाधिकारी अभिषेक आनंद ने बताया कि कुछ साल पहले जिला प्रशासन की पहल से यह वाटरफॉल अस्तित्व में आया और कुड़ी कहलाने वाले इस प्राकृतिक झरने का नाम सबरी जल प्रपात कर दिया गया. इस दौरान करीब 40 लाख रुपये से इसका सौंदर्यीकरण किया गया. साथ ही जिला प्रशासन की ओर से सोशल मीडिया पर भी प्रचार-प्रसार किया गया. 


झरने के पास जाने पर डूबने का रहता था डर 
डीएम ने बताया कि जिला प्रशासन की इस पहल से आसपास के पर्यटक भी झरना देखने आने लगे. हालांकि, वाटर फाल के नजदीक जाने पर इसमें डूबने की घटनाएं भी बढ़ गईं. इसके बाद झरने के पास जाने के लिए पुलिस ने रोक लगा कर सुरक्षा के लिए एक बाड़ भी बनाया. ऐसे में पर्यटकों को दूर से ही झरने का नजारा देखना पड़ता था. अब झरने को पास से देख सकें, इसके लिए ग्‍लास का पुल बनाया जा रहा है.  


ब्रिज निर्माण में टफन ग्‍लास का होगा इस्‍तेमाल 
उन्‍होंने बताया कि ग्लास ब्रिज के बनने से पर्यटकों को झरने के बीच तक पहुंचने का मौका मिलेगा और ग्लास के ब्रिज के सहारे इस प्राकृतिक झरने का नजारा देखने का आनंद मिल सकेगा. उन्‍होंने बताया कि एक बार में लगभग 15 पर्यटक इस ग्‍लास ब्रिज के आखरी छोर पर बने केबिन तक पहुंच सकेंगे, जो लगभग 30 फीट की ऊंचाई से गिर रहे झरने के करीब तक यह यह ग्लास ब्रिज पहुंचेगा. दोनों ओर से बनी सीढ़ियों के सहारे वह वापस उतर सकेंगे. उन्‍होंने बताया कि मोटे कांच से निर्मित होने वाले इस ब्रिज में टफन ग्लास का प्रयोग कर किया जाएगा. 


जानें क्‍या है इतिहास 
बता दें कि कोल भील आदिवासी गावों से घिरे इस जलप्रपात का नाम आदिवासी सबरी के नाम पर सबरी जल प्रपात रखा गया. झरने पर पहुचने के पूर्व में यहां सबरी के नाम पर एक मंदिर का निर्माण भी किया गया था, हालांकि कुछ माह पूर्व इस झरने का नाम बदल कर सबरी जल प्रपात की जगह तुलसी जल प्रपात रख दिया गया है. 


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