UP Vidhansabha Chunav 2022: कुंदरकी में कभी इब्न बतूता रुके थे, यहां BJP 18 साल से नहीं जीती
कुंदरकी की बसावट मुगल साम्राज्य से पहले की है. ऐतिहासिक रिकॉर्ड 10वीं शताब्दी की शुरुआत से इस स्थान का अस्तित्व दिखाते हैं. मशहूर अरब खोजकर्ता इब्न बतूता 1363 में यहां थोड़े समय के लिए रुके थे.
मुरादाबाद: कुंदरकी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र मुरादाबाद जिले में पड़ता है और संभल लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आता है. कुंदरकी की बसावट मुगल साम्राज्य से पहले की है. ऐतिहासिक रिकॉर्ड 10वीं शताब्दी की शुरुआत से इस स्थान का अस्तित्व दिखाते हैं. मशहूर अरब खोजकर्ता इब्न बतूता 1363 में यहां थोड़े समय के लिए रुके थे. कुंदरकी 1575 में कायस्थ राजा मुंशी हरदत राय सेक्रिबाल की रियासत बनी.
उन्होंने 1578 में कुंदरकी में एक महल (महल) का निर्माण किया, जिसने उनके परिवार को "महल वाले" नाम दिया. उनके वंशज जिनमें बाबू दिनेश बाल भटनागर (1984 में राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता), नरेश बाल भटनागर, शिवा बाल भटनागर और अमन बाल भटनागर शामिल हैं. वे अभी भी कुंदरकी में रहते हैं. कुंदरकी 1858 में एक पंचायत और 1907 में एक "टाउन एरिया" बन गया.
उत्तर प्रदेश सरकार ने 1994 में कुंदरकी को नगर पंचायत घोषित किया. कुंदरकी बाबू जीवा राम, मुंशी रतनलाल और सईद रज़ी उल हसन सहित कई स्वतंत्रता सेनानियों का गृहनगर है. कव्वाली गायक शंकर शंभू भी कुंदरकी से थे. चूंकि कुंदरकी की पृष्ठिभूमि ऐतिहासिक है और यह कस्बा मुरादाबाद, संभल जैसे जिला मुख्यालयों में पड़ता है इसलिए यहां शिक्षा, स्वास्थ्य और सार्वजनिक परिवहन की अच्छी सुविधाएं उपलब्ध हैं.
कुंदरकी सीट पर धार्मिक और जातिगत समीकरण
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, कुंदरकी विधानसभा क्षेत्र में कुल रजिस्टर्ड वोटर्स की संख्या 3,09,558 है. इनमें पुरुषों की संख्या 1,73,129 है, जबकि महिला वोटर्स की संख्या 1,36,416 है. यह एक जनरल सीट है और मुस्लिम बाहुल्य है. इसके अलावा वैश्य, ओबीसी और एससी वोटर्स की संख्या अच्छी खासी है. कुंदरकी सीट से अधिकतर बार मुस्लिम प्रत्याशी ही चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं. यहां भाजपा को सिर्फ एक बार 1993 में जीत नसीब हुई है. हालांकि, 2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे थे फिर भी अपने नजदीकी प्रतिद्वंद्वी सपा उम्मीदवार से करीब 11000 वोटों से हार गए थे.
कुंदरकी विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास
कुंदरकी सीट पर पहली बार 1967 में विधानसभा चुनाव हुआ और निर्दलीय माही लाल विधायक बने. फिर 1969 के चुनाव में भारतीय क्रांति दल से माही लाल दूसरी बार विधायक चुने गए. 1974 के चुनाव में कांग्रेस की इंद्रा मोहिनी, 1977 में जनता पार्टी के अकबर हुसैन, 1980 में जनता पार्टी (सेक्युलर) के अकबर हुसैन,
1985 में कांग्रेस की रीना कुमारी, 1989 में जनता दल के चंद्र विजय सिंह, 1991 में एक बार फिर जनता दल के अकबर हुसैन, 1993 में चंद्र विजय सिंह भाजपा से लड़े और जीते, 1996 में अकबर हुसैन बसपा से चुनाव लड़े और विधायक बने, 2002 में सपा के मोहम्मद रिजवान कुंदरकी से विधायक चुने गए, 2007 में बसपा से अबकर हुसैन फिर जीते, 2012 में सपा के मोहम्मद रिजवान ने जीत दर्ज की. वह 2017 में भी कुंदरकी से जीतकर विधानसभा पहुंचे.
वर्तमान विधायक मोहम्मद रिजवान के बारे में
मोहम्मद रिजवान समाजवादी पार्टी के पुराने कार्यकर्ता हैं. वह सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और अध्यक्ष अखिलेश यादव दोनों के चहेते हैं. पार्टी उन्हें 2002 से लगातार कुंदरकी सीट से टिकट देती आ रही है. उन्होंने पार्टी को निराश भी नहीं किया है. वर्ष 2002, 2012 और 2017 में कुंदरकी सीट को सपा की झोली में डाला है. मोहम्मद रिजवान का जन्म मुरादाबाद जिले में हुआ. वह मुरादाबाद के ही केदार नाथ गिरधारीलाल खत्री पीजी कॉलेज से ग्रेजुएट हैं. विधायक बनने से पहले वह खेती-किसानी करते थे.
मोहम्मद रिजवान तीन बार के विधायक हैं और इसमें दो बार उनकी पार्टी सपा की यूपी में सरकार रही है. 2002 से 2007 तक मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री रहे, इसके बाद 2012 से 2017 तक अखिलेश यादव ने यूपी की सत्ता का संचालन किया. यानी मो. रिजवान के पास अपने क्षेत्र में काम कराने के लिए 10 साल का वक्त रहा है. चूंकि कुंदरकी काफी हद तक पहले से विकसित कस्बा रहा है, इसलिए यहां विधायक को काम कराने में ज्यादा मशक्कत का सामना नहीं करना पड़ा. सड़कें, स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल इत्यादि की व्यवस्थाएं ठीक हैं.
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