मोहम्‍मद गुफरान/प्रयागराज : पिछले दिनों गृह मंत्री अमित शाह ने नए संसद भवन के उद्घाटन की जानकारी देते हुए सेंगोल का जिक्र किया था. सेंगोल को नए संसद भवन में रखने की घोषणा के बाद विवाद छिड़ गया है. विपक्ष लगातार सेंगोल को लेकर केंद्र सरकार पर हमलावर है. ऐसे में आइये जानते हैं क्‍या है सेंगोल, जिसे लेकर राजनीतिक विवाद हो रहा है.  


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सबकी अलग-अलग राय 
जानकारी के मुताबिक, सेंगोल एक तरह का राजदंड है, जो चोल साम्राज्य में एक राजा से दूसरे राजा तक सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक हुआ करता था. कोई इसे देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की वॉकिंग स्टिक बता रहा है तो कोई इसे गोल्डन स्टिक. फिलहाल 28 मई को जब देश की नए संसद भवन का उद्घाटन होगा तो यह राजदंड भी उसकी शोभा बढ़ाएगा. 


प्रयागराज से दिल्‍ली म्‍यूजियम लाया गया 
दरअसल, यह राजदंड आजादी के समय 1947 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को मिला था. वर्षों तक यह राजदंड इलाहाबाद संग्रहालय के नेहरू वीथिका में रखा गया था. 4 नवंबर 2022 को इसे दिल्ली के नेशनल म्यूजियम में भेज दिया गया. अब इस ऐतिहासिक राजदंड को नई संसद में रखा जाना है. 


नेहरू के कहने पर संग्रहालय में रखा गया था सेंगोल  
इसके इतिहास को लेकर इलाहाबाद संग्रहालय में प्रमाणिक दस्तावेज तो नहीं हैं, लेकिन बताया जाता है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसे संग्रहालय में रखवा दिया था. संग्रहालय के असिस्टेंट क्यूवरेटर डॉ. वामन वानखेड़े ने बताया कि इसमें तमिल भाषा में कई बातें लिखी गईं हैं. उन्होंने बताया कि इसे चोल वंश के किसी शख्स ने शायद तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को दी थी. 


क्‍या है मतलब 
बता दें कि सेंगोल शब्द तमिल के सेम्मई शब्द से लिया गया है. इसका मतलब नीतिपरायणता होता है. इसे तमिलनाडू के एक प्रमुख धार्मिक मठ के मुख्य आधीनम यानी पुरोहितों का आशीर्वाद मिला हुआ है. भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में सेंगोल का अधिक महत्व है. भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जब प्रधानमंत्री के रूप में अपना पद संभाला था, तब उन्हें यह सौंपा गया था. 


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