लखनऊ. जिस नेता को अभी हाल ही में कांग्रेस ने यूपी में अपना स्टार प्रचारक नियुक्त किया था और जिसे कांग्रेस में एक अत्यंत ऊर्जावान नेता माना जाता रहा हो उन आरपीएन सिंह का पार्टी से मोहभंग होना इस समय चर्चा का विषय बना हुआ है. इसे कांग्रेस पार्टी के खिसकते जनाधार और इस पार्टी में नेताओं की नई पीढ़ी के भरोसे के कम होने का संकेत माना जा सकता है. ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद जैसे युवा नेताओं के बाद अब राहुल गांधी की कोर टीम का हिस्सा रहे आरपीएन सिंह (RPN Singh) के जाने से कांग्रेस में बबाल मचना तय है.


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पार्टी पहले से ही नेतृत्व के विषय पर अनिर्णय की स्थिति से जूझ रही है. पिछले साल कुछ नेता, जो गांधी परिवार के करीबी थे या तो बागी बनकर चलते बने या फिर गांधी परिवार के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत करने लगे. मध्य प्रदेश के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बगावत करके राज्य की कमलनाथ सरकार तक को गिरा दिया. उनके समर्थन में कांग्रेस के दर्जनों विधायकों ने भाजपा का थामकर उसकी सरकार बनवा दी थी. 


स्थिति सुधारने के बजाय बिगाड़ने में योगदान
ज्योदिरादित्य के पार्टी से जाने के बाद भी कांग्रेस ने कोई सबक नहीं लिया और राजस्थान में सचिन पायलट का मामला तो जैसे तैसे संभलते बना. इसके बाद छत्तीसगढ़ और पंजाब में भी पार्टी के लिए संकट के बादल गहराए, पर खुद को आलाकमान कहलाने वाले गांधी परिवार ने नेतृत्व के नाम पर इन मामलों में स्थिति सुधारने के बजाय बिगाड़ने में ही अधिक योगदान दिया. यूपी में कांग्रेस के बड़े ब्राह्मण चेहरों में से एक जितिन प्रसाद ने भी पार्टी हाईकमान की निष्क्रियता से नाराज होकर भाजपा के पाले में ही जाना उचित समझा.
उधर पंजाब कांग्रेस में  कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच चल रहे शह और मात के खेल में गांधी परिवार समस्या सुलझा ही नहीं पाया और आखिर में कैप्टन को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद सिद्धू अपने रवैए से पार्टी के लिए चुनावी साल में मुश्किलें खड़ी कर ही रहे हैं, और आलाकमान यहां किसी नए विस्फोट के इंंतजार में मौन बैठा है. 


करना होगा मंथन
पिछले साल जब अगस्त में पार्टी के दिग्गज 23 नेताओं ने पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर चिठ्ठी लिखी तो यह पार्टी एक बार फिर मुश्किल में आ गई थी. सीताराम केसरी को हटाकर सोनिया गांधी को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवाने में बड़ा रोल निभाने वाले गुलाम नबी आजाद भी पार्टी नेतृत्व से नाखुश नजर आते हैं. पार्टी के अंदर से ही कई आवाजें वर्तमान नेतृत्व की क्षमता पर सवाल उठा रही हैं. जिस कांग्रेस से पहले भाजपा के विरोधी दल   गठबंधन के लिए लाइन लगाए खड़े रहते थे वह पार्टी अब उनके लिए बोझ नजर आने लगी है. ऐसे में कांग्रेस को मंथन करना होगा कि युवा नेताओं का आखिर उससे मोहभंग क्यों हो रहा है?


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