दुनिया भर में जल संकट गहराता जा रहा है, मैदानी इलाकों के साथ पहाड़ों में भी यह खतरा बन रहा है. शहरों में बढ़ती आबादी के साथ पानी का उपभोग बढ़ रहा है. पर्यटन और अन्य व्यावसायिक गतिविधियों के कारण पहाड़ों में पानी की खपत बढ़ी है. ऐसे में जल संचयन, रिसाइकलिंग और उसके दोबारा इस्तेमाल से ही इससे निपटा जा सकता है. आईआईटी रूड़की में वॉटर कॉनक्लेव में इन्हीं मुद्दों पर तीन दिनों तक चर्चा हुई. 


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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रूड़की (IIT Roorkee) के साथ नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी रूड़की (NIH) के इस कॉनक्लेव में हजारों देसी-विदेशी पर्यटक जुटे थे. इसमें जल प्रबंधन सर्कुलर इकोनॉमी के विचार पर गंभीर चिंतन हुआ. सरकार के जल शक्ति मंत्रालय, जल संसाधन और नदी विकास एवं गंगा संरक्षण विभाग की भी इसमें सहभागिता थी.


सम्मेलन में प्रोफेसर स्वीडिश मौसम विज्ञान एवं जलविज्ञान संस्थान की मशहूर जलविज्ञानी बेरिट अरहाइमर ने जल संकट पर अपनी बात रखी. वो इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर हाइड्रोलॉजिकल साइंसेज के अध्यक्ष भी हैं. उन्होंने दुनिया भर में स्थायी जल प्रबंधन समाधान पर जोर दिया.


आईआईटी रूड़की के निदेशक प्रोफेसर केके पंत ने कहा, आज दुनिया में आर्थिक विकास और उदारीकरण के दौर में शहरों पर बोझ बढ़ता जा रहा है. गंगा-यमुना भी प्रदूषण और अन्य दुष्प्रभाव झेल रही है. वेस्ट मैनेजमेंट अभी भी जमीनी हकीकत बनने से दूर है. ऐसे में आवश्यकता है कि पानी की उपलब्धता के साथ जल संचयन को लेकर एक सतत और सर्कुलर पॉलिसी की जरूरत है.


नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी रूड़की के निदेशक डॉ.एमके गोयल ने भी कहा कि स्थायी जल प्रबंधन की दिशा में एक पाठ्यक्रम तैयार करने का यह अवसर है. हम अपनी सामूहिक विशेषज्ञता और संसाधनों का लाभ उठाकर जटिल चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं.रूड़की वाटर कॉन्क्लेव 2024 में आरडब्ल्यूसी2024 के संयोजक प्रोफेसर अरुण कुमार और जल विज्ञान विभाग के प्रोफेसर अंकित अग्रवाल ने भी विचार व्यक्त किए.