कमल पिमोली/श्रीनगर पौड़ी: जब दवाइयां काम न आए. विज्ञान भी हार मान जाए. तब लोगों को एक आस की किरण आध्यात्म में नजर आती है. भक्ति और साधना में नजर आती है. जिसकी नजीर हमें आज श्रीनगर गढ़वाल स्थित सिद्धपीठ कमलेश्वर महादेव मंदिर में देखने को मिली. यहां कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन हजारों लोगों का हुजूम उमड़ा हुआ है. इसके पीछे एक खास वजह है. मान्यता है कि जो नि:संतान दंपति यहां खड़े दीये के पवित्र अनुष्ठान में शामिल होते हैं, उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है. 


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146 दंपतियों ने पूरा किया अनुष्ठान 
कमलेश्वर महादेव मंदिर में हर साल बैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन एक विशेष अनुष्ठान होता है. इसके साथ ही यहां हर साल ऐतिहासिक व धार्मिक मेला लगता है. इस मेले का एक अलग महत्व है. हजारों श्रद्धालु यहां भगवान भोलेनाथ के दर्शन कर मेले का आनंद उठाते हैं. वहीं नि:संतान दंपति आज के दिन रात्रि को घी का दीप प्रज्जवलित कर रात भर खडे़ होकर भगवान शिव की स्तुति करते हैं. इसी श्रद्धा और विश्वास के साथ देश के अलग-अलग राज्यों से 146 प्रवासी भारतीय दंपतियों ने खड़े दीये के अनुष्ठान को पूरा किया. 


शिवलिंग के आगे होती है विशेष पूजा 
कमलेश्वर महादेव मंदिर के महंत आशुतोष पुरी ने बताया कि खड़े दीये की पूजा बेहद कठिन होती है. बैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन की वेदनी बेला पर शुरू हुए उपवास के बाद रात्रि के 2 बजे महंत द्वारा शिवलिंग के आगे एक विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है. जिसमें 100 व्यजनों का भोग लगाकर शिवलिंग को मक्खन से ढक दिया जाता है. इसके बाद दंपति को अनुष्ठान पूरा करना होता है. जिसके तहत वे जलता हुआ दीपक लेकर पूरी रात 'ओम नम शिवाय' का जप करते हुए खड़े रहते हैं. 
 
क्या है मान्यता?
श्रीनगर का यह प्राचीन कमलेश्वर महादेव मंदिर अपनी ऐतिहासिकता और अपनी पौराणिक महत्ता को लेकर पूरे भारत वर्ष में प्रसिद्ध है. मान्यता है कि जो भी दंपति यहां सच्चे मन से आज के दिन खड़े दिए का अनुष्ठान करता है, उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है. उन्हें संतान सुख की प्राप्ती होती है. यही वजह है कि साल दर साल यहां बैकुण्ठ चतुर्दर्शी के दिन अनुष्ठान करने वाले दंपतियों का तांता लगा रहता है.