सतीश कुमार/उधम सिंह नगर: जिंदगी और मौत के संघर्ष के बीच एक बार फिर घायल टाइगर ने दम तोड़ दिया. काफी लंबे समय से अपने घाव को लेकर जंगलों में लड़खड़ाते घूमता हुआ दिखाई दे रहा था. जंगलों में रहने वाले जानवरों की हिफाजत का जिम्मा लेने वाले जिम्मेदारों की रेस्क्यू के नाम पर खानापूर्ति करने वाली टीम की लापरवाही से टाइगरों की गिनती में कमी आई है. आइए बताते हैं पूरा मामला.


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आपको बता दें कि भले ही जंगलों और जंगली जानवरों की हिफाजत के लिए केंद्र सरकार ने ठोस रणनीति तैयार कर रखी हो, लेकिन जिनके कंधों पर हिफाजत का जिम्मा दिया है उनकी लापरवाही से टाइगरों की संख्या में कमी आ रही है. मामला तराई पश्चिमी वन प्रभाग के फाटो पर्यटन जोन का है. जहां अपने क्षेत्र में दूसरे इलाके के टाइगर का दखल और आपसी संघर्ष के दौरान एक टाइगर बुरी तरह घायल हो गया था. इसकी सूचना वन विभाग के कर्मचारियों के साथ ही उच्च अधिकारियों को भी दी गई थी, लेकिन घायल टाइगर के इलाज के लिए रेस्क्यू के नाम पर टालमटोल किया गया.


बताया जा रहा है कि उच्चाधिकारियों की लापरवाही के चलते घायल टाइगर के घाव में कीड़े पड़े. इसके बाद वह बढ़ने लगे. इसको लेकर वन विभाग की टीम ने टाइगर के रेस्क्यू का मैप तैयार किया. रेस्क्यू के लिए वन विभाग की टीम जंगलों में पहुंची. रेस्क्यू के दौरान रविवार को बाघ को ट्रेंक्यूलाइज भी कर लिया था. इसके बावजूद भी बाघ होश में नहीं आया. आज टाइगर ने दम तोड़ दिया. बताया जा रहा है कि मृतक टाइगर की उम्र 8 से 10 साल है. आपको बता दें कि उस आपसी संघर्ष में घायल हए दूसरे टाइगर की स्थिति क्या है, इस बात की भी पुख्ता जानकारी वन विभाग को नहीं हैं. 


बता दें कि समय रहते अगर टाइगर का रेस्क्यू करके उसे अच्छा इलाज दिया जाता तो शायद टाइगर राज हम सबके बीच होता, लेकिन बर्रा के कर्मचारी की लापरवाही के चलते जंगल के सरताजों की गिनती में फिर कमी हुई है. अब देखना ये है कि टाइगर के पोस्टमार्टम रिपोर्ट में क्या कुछ निकलकर सामने आता है. क्या लापरवाह करने वाले उच्चाधिकारियों पर कार्रवाई की जाएगी या नहीं.