योगेश नागरकोटी/बागेश्वर: विलुप्त प्रजाति के कस्तूरी मृग की नाभि से दुर्लभ कस्तूरी निकाली जाती है. इस कस्तूरी के 10 ग्राम की कीमत भी 20 से 25 लाख रुपये तक अंतरराष्ट्रीय बाजार में आंकी जाती है. कस्तूरी मृग की तस्करी के लिए अंतरराष्ट्रीय तस्कर हमेशा इनका शिकार करने की तलाश में रहते हैं. इनको मारने पर दस साल तक जेल और भारी जुर्माने का प्रावधान है. उत्तराखंड में बागेश्वर स्थित अनुसंधान केंद्र में चार कस्तूरी मृर्गों की मौत हो गई है. लोग अनुसंधान केंद्र पर लापरवाही का आरोप लगा रहे है. वहीं, अनुसंधान केंद्र के प्रभारी निदेशक के अनुसार इन कस्तूरी हिरणों की मौत बीमारी की वजह से हुई है. बागेश्वर की जिलाधिकारी अनुराधा पाल ने इस मामले में जांच के आदेश दे दिए हैं.


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कस्तूरी मृग के अस्तित्व के गंभीर खतरे को भांपकर ही इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेस ने इसे रेड डाटा बुक में दर्ज किया था. केंद्र सरकार ने वन्य जंतु संरक्षण अधिनियम के तहत करीब 50 साल पहले ही इनके शिकार पर 1972 में रोक का कानून बनाया था. 


हरदम दौड़ता भागता रहता है कस्तूरी मृग
मान्यता है कि कस्तूरी मृग को इस बात का ज्ञान ही नहीं होता कि जिस अमृत की तलाश में वो है, वो उसकी नाभि में ही समा हुआ है. लेकिन इसकी महक को सूंघकर ही इसकी तलाश में ही वो पागल जैसे इधर-उधर दौड़ता भागता रहता है.


काफी महंगा है असली कस्तूरी
कस्तूरी की अंतरराष्ट्रीय बाजार में काफी मांग रहती है. उत्तराखंड, हिमाचल समेत कई प्रदेशों के पर्वतीय इलाकों में कभी बड़ी संख्या में कस्तूरी मृग पाए जाते थे. अफगानिस्तान, भूटान, म्यांमार, कोरिया, पाकिस्तान और चीन हिमालय पर्वत शृंखला में इनका वास था. अब कस्तूरी मृगों की 5 प्रजाति ही अस्तित्व में हैं. विदेशी बाजार में 50 हजार डॉलर तक इसकी कीमत 40 लाख रुपये तक होती है. 


क्या है कस्तूरी
हिरन में चॉकलेट के कलर की कस्तूरी अंडाकार थैली में लिक्विड के तौर पर मिलती है. इसको सुखाकर पाउडर बनाया जाता है. इस वजह से शिकारी हमेशा नर और मादा दोनों तरह के कस्तूरी मृग का शिकार करने की तलाश में रहते हैं. हालांकि सिर्फ वयस्क नर से कस्तूरी मिलती है. वो भी हर हिरन में नहीं मिलती. एक हिरन से एक बार में 30 से 50 ग्राम तक कस्तूरी मिल सकती है.


बीते दिनों हुई चार कस्तूरी मृगों की मौत
जानकारी के मुताबिक बागेश्वर के कस्तूरी मृग अनुसंधान केंद्र में बीते तीन सितंबर को पहले कस्तूरी मृग की मौत हुई थी. दूसरे कस्तूरी मृग ने ग्यारह सितंबर को दम तोड़ दिया. इसके बाद 13 सितंबर को दो कस्तूरी हिरणों की एक साथ मौत हो गई. अनुसंधान केंद्र के प्रभारी का कहना कै कि कस्तूर मृग के घुटने में सूजन हो गई थी. इसके साथ ही मृग का पेट भी खराब हो गया था. इसी बीमारी के चलते मृग की मौत हो गई. बताया जा रहा है इस समय केंद्र में 13 कस्तूरी मृग मौजूद हैं. 


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स्थानीय लोगों ने अनुसंधान केंद्र पर कस्तूरी मृगों की मौत के मामले में लापरवाही का आरोप लगाया है. लोग ने कस्तूरी मृगों की सही देखरेख न करने और चारे की कमी से कस्तूरी मृगों की मौत का आरोप लगाया है. इसके साथ ही स्थानीय लोगों ने अनुसंधान केंद्र पर कस्तूरी मृगों के मौत के आकंडे छुपाने का भी आरोप लगाया है. लोगों का कहना है कि उत्तराखंड के सबसे बड़े कस्तूरी मृग अनुसंधान केंद्र की हालत खस्ताहाल है. राज्य का राजकीय पशु कस्तूरी मृग यहां बिल्कुल ठीक नहीं हैं. 


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