उत्तरकाशी:आराकोट बंगाण में आपदा के जख्म अभी भी हरे, पुल के तारों के ऊपर रेंगकर नदी को पार कर रहे लोग
सामाजिक कार्यकर्ता मनमोहन चौहान ने बताया कि आराकोट में आई आपदा को 3 वर्ष बीत चुके है, लेकिन आज क्षेत्र की स्थिति ऐसी है कि न तो पुल बने ना सड़के और आलम यह है कि लोग खतरनाक रास्तों से सफर करने को मजबूर है.
हेमकान्त नौटियाल/उत्तरकाशी: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के सुदूरवर्ती आराकोट बंगाण क्षेत्र में 18 अगस्त 2019 को आपदा ने जमकर कहर बरपाया था. कई लोग की आपदा में मृत्यु हुई थी.आराकोट आपदा को तीन साल बीत गए हैं, लेकिन अभी तक व्यवस्थाएं दुरुस्त नहीं हो पाई हैं. इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि लोग नदी पार करने के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर झूला पुल के तारों पर रेंगकर दूसरे छोर तक पहुंच रहे हैं.
स्थानीय लोगों ने प्रशासन पर अनदेखी का लगाया आरोप
उत्तरकाशी के सुदूरवर्ती आराकोट बंगाण क्षेत्र में आई आपदा को तीन साल बीत गए है. बावजूद आपदाग्रस्त क्षेत्र में अभी तक सड़क, पुल समेत अन्य व्यवस्थाएं पटरी पर नहीं आ पाई हैं. इस घाटी का एक वीडियो सामने आया है. वीडियो में एक युवक आपदा में ध्वस्त झूला पुल के बचे तारों के ऊपर रेंगकर उफनती नदी को पार कर रहा है. जिसे देख लोगों के रौंगटे खड़े हो गए हैं. स्थानीय लोगों ने शासन प्रशासन पर अनदेखी का आरोप लगाया है.
खतरनाक रास्तों में सफर करने को लोग मजबूर
साल 2019 की आपदा में बंगाण क्षेत्र में भारी नुकसान हुआ था. जिसमें कई पुल, पैदल रास्ते क्षतिग्रस्त होने के बाद स्थानीय प्रशासन ने वैकल्पिक इंतजाम किए थे. टिकोची के सामने खड्ड (बरसाती नदी) के पार करीब सात परिवार रहते हैं. आपदा में झूला पुल टूटने के बाद इन परिवारों के लिए खड्ड पर ट्रॉली लगाई गई थी, लेकिन यह कामयाब नहीं हो पाई. यह परिवार खड्ड में झूल रहे टूटे पुल के तारों पर चढ़कर नदी पार करते हैं. सामाजिक कार्यकर्ता मनमोहन चौहान ने बताया कि आराकोट में आई आपदा को 3 वर्ष बीत चुके है, लेकिन आज क्षेत्र की स्थिति ऐसी है कि न तो पुल बने ना सड़के और आलम यह है कि लोग खतरनाक रास्तों से सफर करने को मजबूर है.
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