Swami Avimukteshwaranand: शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ज्यादातर बार अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहते हैं. हालही में ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने केदारनाथ मंदिर से 228 किलो सोना गायब होने का संगीन आरोप लगाया था. बीते 15 जुलाई को लगाए उनके आरोप से बवाल मच गया. यहां तक कि शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने इस पूरे मामले को 'सोना घोटाला' नाम दिया है. तो वहीं दूसरी ओर ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने दिल्ली में निर्मित हो रहे केदारनाथ मंदिर की तर्ज पर मंदिर को लेकर भी प्रश्न खड़े किए है. उन्होंने ये कर कह दिया कि केदारनाथ मंदिर हिमालय में है और दिल्ली में उसे नहीं बना सकते. आखिर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती कौन हैं, आइए इनके बारे में एक विस्तृत जानकारी हासिल करें. 


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शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी के बारे में
शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी गंगा और गाय की रक्षा के लिए सक्रिय रहे है. वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लिए जिस समय मंदिर तोड़े जा रहे थे इस पर भी उन्होंने कड़ा विरोध किया था. उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ  वाराणसी लोकसभा सीट से 2019 में उम्मीदवार उतारने का प्यास किया लेकिन साल 2024 के लोकसभा चुनाव में तो उन्हेंने वाराणसी से गऊ गठबंधन के तहत प्रत्याशी उतार भी दिया था. साल 2008 में गंगा को उन्होंने राष्ट्रीय नदी घोषित करने के लिए अनशन पर लंबे समय तक रहे. इस दौरान उन्हें अस्पताल में भर्ती तक करना पड़ा. गुरु के निर्देश पाने पर उन्होंने अनशन समाप्त किया था.


कब हुए  शंकराचार्य घोषित
शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी अपने बयानों के लिए सुर्खियों में रहते हैं. आधे-अधूरे राम मंदिर में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा पर भी उन्होंने प्रश्न खड़े किए थे. अविमुक्तेश्वरानंद के गुरु है जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जोकि एक स्वतंत्रता सेनानी थे. जब सितंबर 2022 में उनका स्वर्गवास हुआ तो उनके दोनों पीठों के नए शंकराचार्य के नाम की घोषणा कर दी गई. इसी के तहत स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को ज्योतिष पीठ का शंकराचार्य घोषित किया गया. वहीं शारदा पीठ द्वारका का स्वामी सदानंद सरस्वती को शंकराचार्य घोषित किया गया.


छात्रसंघ का चुनाव 
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में जन्में. पट्टी तहसील के ब्राह्मणपुर गांव में पैदा हुए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का पहले उमाशंकर उपाध्याय हुआ करता था. वाराणसी के मशहूर संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से उन्होंने शास्त्री और आचार्य की शिक्षा प्राप्त की. छात्र राजनीति में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते रहे. इस तरह जब साल 1994 में छात्रसंघ का चुनाव हुआ तो उनकी जीत हुई. 


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जन्म और शिक्षा
उमाशंकर उपाध्याय के तौर पर उन्होंने प्रतापगढ़ में ही अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी की. इसके बाद गुजरात निकल गए जहां पर धर्म और राजनीति में उनका संपर्क ब्रह्मचारी राम चैतन्य हुआ. ब्रह्मचारी राम चैतन्य समान दखल रहने रखने वाले स्वामी करपात्री जी महाराज के शिष्य थे और इनके कहने पर ही उमाशंकर उपाध्याय ने संस्कृत पढ़ना शुरू किया. करपात्री जी के निधन तक उनकी सेवा उपाध्याय जी ने ही की. यही वो समय था जब उपाध्याय जी की ज्योतिष पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से मुलाकात हुई. उमाशंकर उपाध्याय ने अपनी आचार्य की पढ़ाई संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से पूरी कर ली और फिर 15 अप्रैल 2003 को दंड सन्यास की दीक्षा लेकर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती बन गए.