बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना मदन मोहन मालवीय, एनी बेसेंट, दरभंगा राज के महाराजा रामेश्वर सिंह और नारायण वंश के प्रभु नारायण सिंह और आदित्य नारायण सिंह ने संयुक्त रूप से की थी.
दिसंबर 1905 में बनारस में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 21वें सम्मेलन में मालवीय ने सार्वजनिक रूप से बनारस में एक विश्वविद्यालय स्थापित करने की अपनी इच्छा जाहिर की थी.
1906 में, सनातन धर्म सभा ने प्रयाग कुंभ मेले में बैठक की और मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय शुरू करने का संकल्प लिया.
22 नवंबर 1911 को, मालवीय ने विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए समर्थन जुटाने और धन जुटाने के लिए हिंदू विश्वविद्यालय सोसायटी का पंजीकरण किया.
उस समय सरकार को एक करोड़ रुपए जमा करने थे. 1915 में पूरा पैसा जमा कर लिया गया.
मालवीय ने काशी नरेश प्रभु नारायण सिंह और राज दरभंगा के रामेश्वर सिंह बहादुर से दान मांगा. अरखा के ठाकुर जदुनाथ सिंह ने भी योगदान दिया.
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय विधेयक 1 अक्टूबर 1915 को पारित किया गया था और उसी दिन भारत के वायसराय और गवर्नर-जनरल ने इसे मंजूरी दी थी.
बीएचयू की स्थापना अंततः 1916 में हुई, जो भारत का पहला विश्वविद्यालय था जो लोगों के प्रयासों का परिणाम था.
विश्वविद्यालय के मुख्य परिसर की नींव भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड हार्डिंग ने वसंत पंचमी 4 फरवरी 1916 को रखी थी.