उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो, न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए.
वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता, ‘मगर’ इन एहतियातों से तअल्लुक़ मर नहीं जाता.
मोहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है, ये रूठ जाएँ तो फिर लौट कर नहीं आते.
उसे समझने का कोई तो रास्ता निकले, मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले.
एक मंज़र पे ठहरने नहीं देती फ़ितरत, उम्र भर आँख की क़िस्मत में सफ़र लगता है.
जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा, किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता.
चाहे जितना भी बिगड़ जाए ज़माने का चलन, झूट से हारते देखा नहीं सच्चाई को.
मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र, रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा.
दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता, तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता.