दरअसल, देश में आजादी से पहले घड़ी खरीदना या रखना सभी के लिए सामर्थ्य की बात नहीं होती थी.
उस समय हजारों लोग मजदूरी करते थे. ऐसे में शहरों में समय जानने के लिए घंटाघर बनाए गए थे.
घंटाघर एक तरह की विशेष इमारत होती थी. इसके ऊपर एक बड़ी सी घड़ी लगी होती थी.
संरक्षण के अभाव में घंटाघर की घड़ियां बंद हो गई हैं.
पहले घड़ियां सबके पहुंच में नहीं हुआ करती थी सबके पहुंच से दूर थी. हर एक व्यक्ति समय की जानकारी के लिए अलग-अलग तरीके का प्रयोग करता था.
हर एक घंटे में घड़ियां बजती थीं. इसीलिए टॉवरों पर लगाया जाता था ताकी सबको समय का पता चला सके.
एक बार चाबी भरने के बाद पूरा एक हफ्ते घड़ी चलती थी और हर 15 मिनट के बाद घंटा बजता था. उसकी आवाज बहुत मधुर होती थी.