करोड़ों की दौलत, घरबार छोड़ जैन धर्म के लोग कैसे बन जाते हैं साधु

Shailjakant Mishra
Apr 22, 2024

जैन साधुओं का जीवन बेहद कठिन होता है. इसके बाद भी जैन धर्म में सांसारिक मोह को छोड़कर लोग साधु-साध्वी बन रहे हैं.

महावीर जयंती पर अहमदाबाद (गुजरात) में 35 लोगों ने जैन धर्म की दीक्षा ली. जिसमें व्यवसायी, नाबालिग बच्चे भी शामिल हैं.

जैन धर्म दीक्षा

जैन धर्म में दीक्षा लेने के बाद भौतिक सुख सुविधाओं को त्यागकर कर देते हैं. इसे ‘चरित्र’ या ‘महानिभिश्रमण’ कहा जाता है.

दीक्षा के बाद बनते हैं साधु-साध्वी

दीक्षा समारोह में होने वाले रीति रिवाजों के बाद से दीक्षा लेने वाले लड़के साधु और लड़कियां साध्वी बन जाती हैं.

दीक्षा लेने के बाद 5 व्रतों का पालन

दीक्षा लेने के बाद किसी को सच बोलना, लालच से दूर रहना, हानि न पहुंचाना, इंद्रियों पर काबू रखना और खुद के पास जरूरतभर की चीजें रखना होता है.

नोचने होते हैं खुद के बाल

दीक्षा लेने के बाद साधु-साध्वियां भौतिक सुख को त्याग देते हैं और संन्यास ग्रहण कर लेते है. आखिरी चरण में साधु-साध्वियों को खुद अपने बाल नोचकर अलग करने होते हैं.

पहनावा

जैन साध्वियां सफेद सूती साड़ी पहनती हैं जबकि साधु पूरी तरह कपड़ो का त्याग कर देते हैं.

भिक्षा मांगकर खाना

जैन साधु भोजन नहीं बनाते. वह लोगों के घर जाकर भिक्षा मांगकर खाते हैं. इस प्रथा को गोचरी कहा जाता है.

पद यात्रा

जैन मुनि लंबी दूरी भी पैदल ही तय करते हैं, वह वाहनों का प्रयोग नहीं करते. बारिश को छोड़कर एक जगह ज्यादा समय तक नहीं रहते हैं. (Disclaimer - यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और इंटरनेट पर उपलब्ध सूचनाओं पर आधारित हैं. Zeeupuk इस बारे में कोई पुष्टि नहीं करता है.)

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