कोई ये कैसे बताए कि वो तन्हा क्यूँ है। वो जो अपना था वही और किसी का क्यूँ है।।
यही दुनिया है तो फिर ऐसी ये दुनिया क्यूँ है। यही होता है तो आख़िर यही होता क्यूँ है।।
मेरा बचपन भी साथ ले आया। गाँव से जब भी आ गया कोई।।
आज फिर टूटेंगी तेरे घर नाज़ुक खिड़कियाँ। आज फिर देखा गया दीवाना तेरे शहर में।।
दिल की नाज़ुक रगें टूटती हैं। याद इतना भी कोई न आए।।
जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी पी के गर्म अश्क। यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े।।
तू अपने दिल की जवाँ धड़कनों को गिन के बता। मिरी तरह तिरा दिल बे-क़रार है कि नहीं।।
इतना तो ज़िंदगी में किसी के ख़लल पड़े। हँसने से हो सुकून न रोने से कल पड़े।।
तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो। क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो।।
ये किस तरह याद आ रही हो ये ख़्वाब कैसा दिखा रही हो। कि जैसे सच-मुच निगाह के सामने खड़ी मुस्कुरा रही हो।।
जो वो मिरे न रहे मैं भी कब किसी का रहा। बिछड़ के उनसे सलीक़ा न ज़िन्दगी का रहा।।
इन्साँ की ख़्वाहिशों की कोई इन्तिहा नहीं। दो गज़ ज़मीं भी चाहिए, दो गज़ कफ़न के बाद।।