लाल इमली कानपुर में होने वाले ऊन के कपड़ों के उत्पादन के लिए पूरे भारत में अपनी एक अलग पहचान रखता था.
बताते हैं कि मिल के स्थान पर पहले एक विशालकाय इमली का पेड़ होता था.
उस इमली के पेड़ की फलियां लाल रंग की होती थीं. इसी कारण इसका नाम लाल इमली पड़ा था.
अंग्रेजों के वक्त 1876 में लाल इमली मिल बनी. 26 एकड़ में बनी इस मिल में रोज तीन पाली में 8000 श्रमिक काम करते थे.
कानपुर को अपने इसी मिल के चलते पूर्व के मैनचेस्टर खिताब मिला था.
इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री चुनी गई तब 18 जून 1981 को लाल इमली मिल का केंद्र सरकार ने अधिग्रहण कर लिया था.
लाल इमली में 1989 से कोई नई भर्ती नहीं हुई. 2009 से उत्पादन लगभग बंद हो चुका है.
लाल इमली की मशहूर घड़ी चलाने को चार मजदूर लगते थे, मिल बंद हुई तो घड़ी ने भी टिकटिक करना बंद कर दिया.
मिल चलाने को तीन हजार कर्मियों और 400 करोड़ रुपये की जरूरत होगी. जबकि छह मशीनों की पैकिंग अभी तक नहीं खुली.