महाभारत में गांधारी और धृतराष्ट्र के सौ पुत्र थे जो कौरव कहलाए, लेकिन एक और राजा के भी सौ पुत्र और 100 रानियां भी थीं.
महाभारत काल में युधिष्ठिर जैसा एक सत्यवान राजा था, उसकी 100 पत्नियाँ थीं, जो एक से एक सुंदर थीं.
लेकिन सोमक राजा के किसी भी रानी से कोई भी पुत्र नहीं हुआ तो वो परेशान रहना लगा. वो धीरे-धीरे बूढ़ा और परेशान होने लगा.
फिर बड़े यत्नों के बाद उसकी एक रानी का एक बेटा हुआ, जिसका नाम जंतु रखा गया. सभी 100 रानियां उस पर जान छिड़कती थीं.
एक दिन जंतु को चींटी ने काटा तो वो जोर से चिल्लाने लगा, इस पर सारी रानियां भी रोने लगीं और पूरे महल में हाहाकार मच गया. राजा तक चीत्कार पहुंची तो वो भी भागता हुआ रानियों के बीच पहुंचा और सारा वाकया समझकर सिर पीटने लगा.
उसने भगवान से प्रार्थना कि भगवान या तो सौ रानियों से 100 पुत्र हों अन्यथा मैं पुत्रहीन रहना ही पसंद करूंगा. उसने सौ पुत्रों के लिए अनुष्ठान कराने का ऐलान किया.
राज्य के कुल पुरोहित ने कहा, इस अनुष्ठान में आपको एकमात्र पुत्र जंतु की हवन में बलि देनी होगी, उसके यज्ञ से उत्पन्न धुएं को सूंघने से हर रानी गर्भवती होगी और पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी.
जंतु भी अपनी मां के गर्भ से दोबारा पुत्र के तौर पर जन्म लेगा और उसकी पीठ पर सोने का एक चिन्ह दिखाई देगा
लेकिन जंतु को बलि देने के लिए लाते ही सारी रानियां दहाड़ मारकर रोने लगीं. राजा सोमक ने जबरदस्ती उसे गोद से खींच लिया.
बलि के बाद हवन के धुएं को सूंघने के बाद सभी स्त्रियां गर्भवती हो गईं और नौ महीने बाद सभी के सुंदर बलवान पुत्र हुए. जंतु भी दोबारा उत्पन्न हुआ.
सोमक और पुरोहित की मृत्यु हुई तो पुरोहित नरक और सोमक स्वर्ग के भागी बने. इस पर सोमक ने कहा कि मेरे गलत फैसले का परिणाम पुरोहित को क्यों भुगतना पड़ रहा.
अगर बेटे की बलि देने से पाप हुआ है तो मुझे भी नरक भोगना चाहिए. सोमक की जिद के बाद उन्हें भी नरक भोगने को डाल दिया गया. राजा सोमक की इस सदाशयता के कारण ही बाद में पुरोहित को भी स्वर्ग प्राप्ति हुई.
पौराणिक पात्रों की यह कहानी धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों में किए गए उल्लेख पर आधारित है. इसके एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.