भारतीय इतिहास में महाराणा प्रताप को उनकी वीरता, अदम्य साहसी, निर्भीक और बलशाली योद्धा के रूप में जाना जाता है. महाराणा प्रताप के नेतृत्व में मेवाड़ ने मुगल बादशाह अकबर की आधीनता कभी स्वीकार नहीं की.
हल्दीघाटी के युद्ध में मुगलों को महाराणा प्रताप के शौर्य का लोहा मानना पड़ा था. मेवाड़ शासक महाराणा प्रताप को सबसे बहादुर राजपूत योद्धाओं में से एक थे और वह मुगलों के खिलाफ अपनी यादगार लड़ाइयों के लिए जाने जाते है.
मध्यकाल में मुगल शासक अकबर के सेनापति मान सिंह और महाराणा प्रताप की सेनाओं के बीच यह युद्ध सिर्फ चार घंटे चला था पर मुगलों को महाराणा प्रताप के वीरता के आगे नतमस्तक होना पड़ा.
मध्यकाल में मुगल शासक अकबर अपनी विस्तारवादी नीति के तहत राजस्थान के राजपुताना पर लगातार हमले कर रहा था.उसने मेवाड़ को भी अपने अधीन लाने की कोशिश की पर महाराणा प्रताप को यह मंजूर नहीं था. जिसके बाद अकबर ने अपने सेनापति मान सिंह की अगुवाई में मेवाड़ जीतने के लिए सेना भेज दी.
अपनी खास रणनीति के तहत मान सिंह के साथ आई मुगल सेना को महाराणा प्रताप ने इसी हल्दीघाटी में घेरना चाहा था पर मान सिंह वहां तक गए ही नहीं. बता दें कि राजस्थान की दो पहाड़ियों के बीच एक पतली सी घाटी है, जिसकी मिट्टी का रंग हल्दी जैसा होने के कारण हल्दीघाटी कहा जाता है.
इतिहासकारों के मुताबिक वैसे तो यह लड़ाई हल्दीघाटी दर्रे से ही शुरू हुई थी पर असल लड़ाई हुई खमनौर में.
मुगल इतिहासकार अबुल फजल ने इस लड़ाई को खमनौर की ही लड़ाई कहा है. इंतजार के बाद मान सिंह की सेना नहीं आई तो महाराणा प्रताप खुद अपनी सेना लेकर खमनौर पहुंच गए. इसके बाद दोनों सेनाओं में भीषण युद्ध हुआ.
खमनौर में भीषण रक्तपात हो रहा था. सैकड़ों मुगल सैनिक मारे जा रहे थे. मुगल महाराणा प्रताप के मुकुट को देखकर उन पर लगातार निशाना बना रहे थे. वह घायल होने के बाद भी युद्ध लड़ते रहे.
ये देख सरदार मन्नाजी झाला ने महाराणा का मुकुट खुद पहन लिया, जिससे मुगल सैनिक उन पर टूट पड़े. किसी तरह घायल महाराणा युद्ध भूमि से बच निकले. ऐसा कहा जाता है कि इस लड़ाई में किसी भी तरह का नतीजा नहीं निकला.
हालांकि, इसी के बाद मेवाड़ के साथ ही चित्तौड़, गोगुंडा और कुंभलगढ़ पर मुगलों का कब्जा हो गया. एक-एक कर सभी राजपूत राजा मुगलों के अधीन हो गए.
महाराणा प्रताप अपनी भूमि को मुगलों से वापस पाने के लिए जंगल तक में भटकते और शक्ति जुटाते रहे. उन्होंने मुगलों के सामने हार नहीं मानी और आजीवन मुगलों के खिलाफ लड़ते रहे.
मुगलों के पास बड़ी सेना और आधुनिक हथियार थे. हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा और मान सिंह की सेना को लेकर अलग-अलग आंकड़े सामने आते हैं. सभी इतिहासकारों के मुताबिक इस लड़ाई में 5 हजार मेवाड़ी और 20 हजार मुगल सैनिक थे. मुगल सेना के पास बंदूकें थीं. ऊंट पर रखी जा सकने वाली तोपें थीं.
जबकि राजपूत खराब रास्ते के कारण अपनी तोपें नहीं ला पाए थे साथ ही उनके पास बंदूकें भी नहीं थीं. महाराणा की सेना में लूना और रामप्रसाद जैसे प्रसिद्ध हाथियों के साथ कुल सौ हाथी थे, तो मुगलों की सेना में हाथियों की संख्या तीन गुना थी. चेतक समेत राणा ने इस युद्ध में 3 हजार घोड़े जबकि मुगल सेना 10 हजार घोड़े थे.
लेख में दी गई ये जानकारी सामान्य स्रोतों से इकट्ठा की गई है. इसकी प्रामाणिकता की पुष्टि स्वयं करें. एआई के काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.