वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में हमेशा भक्तों की कतारें लगी रहती हैं. दर्शन करने दूर-दूर से भक्त आते हैं. ये भारत के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से है.
इस मंदिर की एक ऐसी खासियत है जो इसे सबसे अलग बनाती है. इस मंदिर में घंटा, घंटी और घड़ियाल नहीं बजाया जाता. इसके पीछे की वजह दिलचस्प है.
मंदिर का एक रहस्य कान्हा के जन्म से जुड़ा है. ये मंदिर श्रीकृष्ण के बाल रूप को समर्पित है. मान्यता है कि लाला को घंटी, घड़ियाल और घंटे से परेशानी होगी.
लाला को किसी तरह की कोई परेशानी न हो इसलिए मंदिर में घंटा, घंटी, घड़ियाल नहीं लगाए जाते हैं. ये सभी यन्त्र बजेंगे तो लाला की नींद खराब हो जाएगी.
जब ठाकुर जी की आरती होती है तब भी घंटी नहीं बजाते हैं. आपको बता दें, मथुरा–वृन्दावन के अधिकतर मंदिरों में घंटे, घंटी, घड़ियाल लगे होते हैं.
वृन्दावन में एक मात्र ठाकुर बांके बिहारी मंदिर ऐसा है, जहां मंदिर में इन चीजों का इस्तेमाल नहीं किया जाता. आरती के समय ताली भी नहीं बजाई जाती.
इस मंदिर का निर्माण 1864 में स्वामी हरिदास ने करवाया था. इसको लेकर कई मान्यताएं हैं. बृज में ठाकुर जी बाल रूप में ही 7 साल के लिए रुके थे.
मान्यता है कि स्वामी हरिदास ने निधिवन में बैठकर अपनी साधना के बल पर बांके बिहारी जी को प्रकट किया था. वो उनके बाल रूप को प्यार करते थे.
बांके बिहारी को कोई कष्ट ना हो इसलिए वो न तो घंटी बजाते थे और न ही आरती करते समय ताली बजाते थे जो आज भी मंदिर में ध्यान रखा जाता है.
इस मंदिर में जन्माष्टमी के अवसर को छोड़कर मंगला आरती यानी सुबह की आरती भी नहीं की जाती है. यहां सिर्फ तीन बार आरती की जाती है.
मान्यता है कि आज भी बांके बिहारी जी हर रात निधिवन राज मंदिर में आते हैं और राधा जी और बाकी सखियों के साथ रासलीला करते हैं.
ऐसे में ठाकुर जी थककर तीसरे पहर इस मंदिर में पहुंचते हैं और विश्राम करते हैं, इसलिए मंगला आरती के समय उन्हें नहीं उठाया जाता है.
बांके बिहारी जब सुबह आराम करने के बाद उठते हैं तो उनका श्रृंगार किया जाता है. उस समय की जाने वाली आरती को श्रृंगार आरती कहा जाता है.
इस मंदिर में दोपहर में विश्राम के बाद दूसरी राजभोग आरती और तीसरी रात शयन के समय शयन आरती करने की परंपरा है.
यहां दी गई जानकारियां लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. Zeeupuk इसकी किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है.