आपने प्रसाद के रूप में बहुत सी मिठाईयों का भोग लगते हुए देखा हुआ. क्या आपने मिट्टी के पेड़े का भोग लगते हुए देखा है या उसका प्रसाद बंटते देखा है?.
अगर नहीं, तो हम आपको इस भोग के बारे में बताएंगे. ये भोग कान्हा जी को लगता है. धर्म नगरी मथुरा में एक ऐसा मंदिर है जहां पर श्रीकृष्ण को मिट्टी के पेड़े का भोग लगाया जाता है.
गोकुल यमुना के ब्रह्मांड घाट पर ब्रह्मांड बिहारी का मंदिर स्थित है. ऐसा कहा जाता है कि ये वो जगह है जहां भगवान श्रीकृष्ण ने मिट्टी खाकर माता यशोदा को मुंह में ब्रह्मांड के दर्शन कराए थे.
इस मंदिर में मिट्टी के पेड़े का भोग लगाने की परंपरा सदियों पुरानी है. ब्रह्मांड दिखाने के कारण इस मंदिर का नाम ब्रह्मांड बिहारी पड़ा. मिट्टी के पेड़ों का भोग लगने वाला यह एकमात्र मंदिर है.
मंदिर के पास ही यमुना नदी बह रही है. यमुना घाट से मिट्टी निकलवाई जाती है और उसे सुखाकर, कूटकर और छानकर उसके पेड़े तैयार किए जाते हैं. मंदिर में आने वाले श्रद्धालु इन्हीं पेड़ों का प्रसाद श्रीकृष्ण को चढ़ाते हैं और खुद भी खाते हैं. भक्त मिट्टी के पेड़ों को प्रसाद अपने घर ले जाते हैं.
पौराणिक कथा के अनुसार श्रीकृष्ण बचपन में मिट्टी खाते थे. एक बार खेलते हुए उन्होंने मिट्टी खाई तो उनको दाऊ बलराम और बाकी मित्रों ने देख लिया था. इसकी शिकायत , मां यशोदा से कर दी.
इसके बाद माता यशोदा बाहर आईं और श्रीकृष्ण को डांटने लगी और पूछा कि क्या तूने मिट्टी खाई है. इस पर नन्हें कान्हा ने बड़ी मासूमियत से मिट्टी खाने से मना कर दिया. इसके बाद माता यशोदा ने उन्हें डांटा. कान्हा ने कहा कि नहीं मैया मैंने मिट्टी नहीं खाई.
इसके बाद गुस्से में यशोदा माता ने उनसे मुंह खोलकर दिखाने के लिए कहा. जैसे ही भगवान श्रीकृष्ण ने मुंह खोला, मैया यशोदा को पूरे ब्रह्मांड के दर्शन हो गए. ऐसा कहा जाता है कि जैसे ही माता यशोदा ने भगवान के मुंह को देखा वो बेहोश हो गई थीं. पुराणों के मुताबिक तभी से इस जगह को ब्रह्मांड घाट कहा जाता है.
भगवान श्रीकृष्ण की अलौकिक लीलाओं का दर्शन हर जगह है. ऐसी मान्यता है कि श्रीकृष्ण और बलदाऊ गाय चराने के लिए यमुना किनारे आते थे.
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