किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई मैं घर में सबसे छोटा था मेरी हिस्से में माँ आई
किसी भी मोड़ पर तुमसे वफ़ादारी नहीं होगी हमें मालूम है तुमको यह बीमारी नहीं होगी
ज़िंदगी तू कब तलक दर-दर फिराएगी हमें टूटा-फूटा ही सही घर-बार होना चाहिए
कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखा तुम्हारे बाद किसी की तरफ़ नहीं देखा
फ़रिश्ते आके उनके जिस्म पर ख़ुश्बू लगाते हैं वो बच्चे रेल के डिब्बे में जो झाडू लगाते हैं
हम कुछ ऐसे तेरे दीदार में खो जाते हैं जैसे बच्चे भरे बाज़ार में खो जाते हैं
नये कमरों में अब चीजें पुरानी कौन रखता है परिंदों के लिए शहरों में पानी कौन रखता है
मोहाजिरों यही तारीख है मकानों की बनाने वाला हमेशा बरामदों में रहा
मैं चाहता हूं कि तुझ पर किसी का हक न रहे तुझे अकेले पढूं कोई हम-सबक न रहे