अक्सर आपने देखा होगा कि कुछ लोग बेटी की शादी के बाद उसके घर का पानी तक नहीं पीते हैं. आर्थिक तंगी में उससे मदद मांगते हुए कतराते हैं.
लोग ऐसा मानते हैं कि शादी के बाद बेटी से मदद मांगना शास्त्रों के खिलाफ है. बेटी के घर खाना-पीना या बुरे वक्त में आर्थिक मदद लेना पाप है.
प्रेमानंद महाराज से जब एक महिला ने पूछा कि शादी के बाद क्या बेटी अपने माता-पिता पर धन खर्च कर सकती है? तो उनका जवाब बहुत ही दिलचस्प था.
प्रेमानंद जी महाराज के मुताबिक, माता-पिता के लिए पुत्र और पुत्री दोनों समान होते हैं. परिजनों के प्रति बेटे का जो दायित्व है, वो बेटी पर भी लागू होता है.
प्रेमानंद महाराज ने बताया कि मान लीजिए बेटे ने अपने मां-बाप को घर से निकाल दिया तो बेटी का ये दायित्व है कि वो अपने मां-बाप को अपने घर में शरण दे.
प्रेमानंद महाराज के मुताबिक, अगर बेटी के घर अच्छी व्यवस्था है तो माता-पिता उसके घर खान-पान कर सकते हैं. यहां तक कि उसके घर अपना पूरा जीवन व्यतीत कर सकते हैं.
प्रेमानंद महाराज के मुताबिक, बेटी के घर रहना. उसके घर भोजन करना कोई अपराध नहीं है. माता-पिता बिना किसी झिझक के अपनी बेटी के घर आश्रय ले सकते हैं.
प्रेमानंद महाराज के मुताबिक, जो लोग बेटी के घर का पानी नहीं पीते हैं या उससे मदद नहीं लेते हैं. वो सनातन धर्म में पूज्य भाव की वजह से ऐसा करते हैं.
प्रेमानंद महाराज के मुताबिक, कुछ लोग तो उस गांव का भी पानी नहीं पीते हैं, जहां बेटी की शादी हुई है और लोग ऐसा सिर्फ पूज्य भाव की वजह से करते हैं न कि यह कोई पाप है.
यहां बताई गई सारी बातें धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं. इसकी विषय सामग्री और AI द्वारा काल्पनिक चित्रण का Zeeupuk हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.