प्रेमानंद महाराज से सवाल किया गया कि आखिर तब क्या करें जब दूसरों की तरक्की देखकर जलन हो.
प्रेमानंद महाराज ने जवाब में कहा कि जो लौकिक सुख है या माया सुख है, वो पुण्य से मिलता है.
आपने पूर्व पुण्य किए हैं, तपस्या की, सारी सुविधाएं मिलेंगी. पूर्व में पुण्य नहीं किए तो प्रयास करेंगे बाधा सामने होगी.
प्रेमानंद जी महाराज ने कहा कि पढ़ लिख गए नौकरी नहीं मिलेगी. लौकिक उन्नति में हमारे पूण्य होते हैं.
कोई जबरदस्ती दुख दे तो वो मेरा कर्म है. यही अध्यात्म समझौता है. भजन से आपकी बाधा रूपी पाप कर्म वो भस्म होगा.
महाराज जी कहते हैं कि जिसको देख आप ललचा रहे हैं, उसके पास वो वस्तुएं हैं पर वो अशांत है, उसके भीतर भी कामना है.
वो अशांत है, क्योंकि वो भी किसी को देख रहा है. कोई दूसरा तीसरे को देख रहा है. उन्होंने यही ही चल रहा है.
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