माता सती का प्रण था कि जब उनका जन्म हो हर जन्म में भगवान शिव उनके पति हों. उन्होंने अपने पिता राजा दक्ष के घर योगशक्ति से अपने शरीर का त्याग कर दिया था. इसके बाद उन्होंने हिमालय राज के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया. माता पार्वती ने सावन के महीने में भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया. और आगे चलकर उनका विवाह भगवान शिव के साथ हुआ. इसलिए कहा जाता है कि भगवान शिव को सावन का महीना विशेष प्रिय है.
देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु सो जाते हैं और चतुर्दशी के दिन भगवान शिव भी सो जाते हैं. जब भगवान शिव सो जाते हैं तो उस दिन को शिव श्यानोत्सव के रूप में मनाया जाता है. तब वह अपने दूसरे रूप रुद्रावतार से सृष्टि का संचालन करते हैं. भगवान रुद्र की स्तुति ऋग्वेद में बलवानों में अधिक बलवान कहकर की गई है.
चातुर्मास माह भगवान रूद्र पर पूरी सृष्टि का भार आ जाता है. माना जाता है कि भगवान शंकर का रूद्र अवतार अपने भक्तों पर बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं और रुष्ट भी बहुत जल्दी होते हैं. इसलिए सावन के महीने में भगवान शिव के रुद्राभिषेक का विशेष महत्व बताया गया है. ताकि पूजा से वह प्रसन्न रहें और भक्तों पर अपना आशीर्वाद बनाए रखें.
शिव पुराण के अनुसार सावन के महीने में सोमवार के अलावा कई और भी व्रत किए जाते हैं. सावन के महीने में मंगला गौरी का व्रत करने से महिलाओं के सुहाग की रक्षा होती है. यह व्रत विशेष रूप से सुहाग के लिए किया जाता है.यह व्रत सावन के मंगलवार के दिन देवी पार्वती के लिए किया जाता है. इस व्रत को करने पर माता पार्वती का आशीर्वाद से घर में सुख-शांति का वास होता है और सुहाग को लंबी उम्र भी मिलती है.
सावन के महीने में ही भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष का पान किया था. साथ ही भगवान शिव पहली बार अपने ससुराल यानी पृथ्वी लोक पर आए थे. उनके यहां आने पर भगवान शिव का जोरदार स्वागत किया था.
मान्यता है कि भगवान शिव सावन के महीने में शिवजी पृथ्वी लोग अपने ससुराल जरूर आते हैं. साथ ही सावन के महीने में ही मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने शिवजी की कठोर तपस्या से वरदान प्राप्त किया था. जिससे यमराज भी नतमस्तक हो गए थे.