उत्तर प्रदेश का पीलीभीत बांसुरी उत्पादक के तौर पर दशकों से अपनी पहचान बनाए हुए हैं. यहां बांसुरी की कारीगरी करना परंपरागत कारोबार के रूप में किया जाता है.
सबसे प्रमुख चरण में बांसुरी को बनान महिलाओं के बिना यहां अधूरा है. कह सकते हैं कि महिलाएं ही यहां पर बांस को बांसुरी का रूप देती हैं.
बांसुरी का पीलीभीत से सदियों पुराना संबंध है. कहते हैं कि सूफी संत सुभान शाह ने बांसुरी कारीगरों को यहां कई सौ साल पहले बसाया था. तब से यही कारोबार यहां चला आ रहा है.
कारीगरी मूल रूप से वैसे तो पुरुषों के करने का काम रहा है लेकिन यहां महिलाओं के बिना बांसुरी के सुर अधूरे रह जाते हैं. तमाम मुस्लिम परिवार इस पुश्तैनी बांसुरी उद्योग लगा है.
सबसे पहले बांसुरी के आकार के हिसाब से लंबे बांस को काटते हैं फिर उसकी की छिलाई की जाती है. इसके बाद बांसुरी में गर्म सलाखों से छेदा जाता है.
बांसुरी के ऊपरी सिरे पर आखिर में डॉट लगाया जाता है फिर रंगों से रंग दिया जाता है. बांस से बजाने योग्य यह बांसुरी तब जाकर तैयार होती है.
वहीं इस काम को महिलाएं ही करती हैं इसका कारण ये है कि पहले तो इस कारोबार में महिलाओं को हांथ बंटाने के लिए जोड़ा गया.
फिर समय के साथ महिलाओं ने बांसुरी में सुर डालने का काम किया और महारथ हासिल की इसके बाग ये हुनर महिलाओं का होकर रह गया.
पीलीभीत महिलाएं पीढ़ी दर पीढ़ी बांसुरी बनाने के इस हुनर को अपनी बहूओं व बेटियों को ट्रांसफर करती जा रही है.