शनिवार (Shanivar) को शनिदेव (Shani Dev) की पूजा की जाती है.शनिदेव को न्याय का देवता भी कहा जाता है. व्यक्ति के द्वारा किए गए अच्छे या बुरे कर्मों का फल भी शनि देवता देते हैं. शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार के दिन व्रत रखकर विधि-विधान से शनिदेव की पूजा की जाती है.
शनिदेव की पूजा करते समय उन्हें सरसों का तेल चढ़ाने की भी परंपरा है. शनिदेव के पूजन (Shani Puja) के वक्त उन्हें काले तिल भी चढ़ाए जाते हैं.
बता दें कि शनिदेव काफी जल्दी क्रोधित होने वाले देवता भी माने जाते हैं. उनकी दृष्टि अगर किसी पर भी पढ़ जाए तो उसका जीवन कष्टों से भर जाता है. राजा को भी रंक होने में पलभर का वक्त लगता है. शनिदेव अगर किसी पर प्रसन्न हो जाते हैं तो उसका जीवन सुख-समृद्धि से भर जाता है.
आपके मन में सवाल आता होगा कि आखिर शनिदेव को सरसों का तेल क्यों चढ़ाया जाता है. इसके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी होगी. दरअसल इसे लेकर भी एक पौराणिक कथा प्रचलित है. आइए जानते हैं कथा
शनिदेव को तेल चढ़ाने को लेकर प्रचलित कथा के अनुसार लंकापति रावण ने अपने महल में सभी ग्रहों को बंदी बना रखा था. शनिदेव भी रावण के बंदी थे.
रावण अहंकार में इतना मदमस्त था कि उसने शनिदेव को कारागृह में उल्टा लटकाकर रखा था.
जब मां सीता की खोज करते हुए हुनुमान जी लंका पहुंचे और रावण ने उनकी पूंछ में आग लगवाई तो इसे क्रोधित होकर हनुमान जी ने सारी लंका को आग के हवाले कर दिया था.
जब लंका जल गई तो सारे ग्रह तो रावण की कैद से मुक्त हो गए, लेकिन शनिदेव उल्टे लटके होने की वजह से मु्क्त नहीं हो सके. वे काफी लंबे वक्त से उल्टे लटके थे इस वजह से उनका शरीर दर्द से तड़प रहा था.
शनिदेव की ये हालत देखकर हनुमान जी को उन पर दया आ गई और उन्होंने शनिदेव के पूरे शरीर पर सरसों के तेल की मालिश की. इससे शनिदेव को राहत मिल गई
इस पर प्रसन्न होकर शनिदेव ने कहा कि जो भी उनकी पूजा करते वक्त सरसों का तेल चढ़ाएगा उसके जीवन की सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी. मान्यता है कि तभी से शनिदेव को सरसों का तेल चलाने की शुरुआत हुई.
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