नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में 2022 में विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) होने वाले हैं. इसको लेकर सभी पार्टियों ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी है. एक ओर सपा, बसपा और भाजपा जैसे पार्टियां संगठन को मजबूत करने में लग गई हैं, तो दूसरी ओर कुछ नई पार्टियां भी प्रदेश की राजनीति में दस्तक दे रही हैं. इनमें आम आदमी पार्टी (AAP) और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) शामिल हैं. एआईएमआईएम यूपी में ओमप्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर सकती है.


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असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने इसको लेकर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) के मुखिया ओम प्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) मुलाकात भी की है. ऐसे में अब सवाल उठता है कि इसका फायदा किसे मिलेगा? वहीं, किसको नुकसान होगा...


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समाजवादी पार्टी के वोट बैंक में लग सकती है सेंध
ऐसे माना जाता है कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (SP) मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण के भरोसे सत्ता में आती रही है. ओवैसी की एंट्री से सपा को करारा झटका लग सकता है. बिहार चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद ओवैसी काफी उत्साह में हैं. उत्तर प्रदेश में भी उनकी निगाह मुस्लिम बाहुल्य इलाकों पर है. जो अब तक सपा का गढ़ माने जाते रहे हैं. आप इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि सपा के पास इस समय  49 विधायक हैं. इनमें से 17 मुस्लिम विधायक हैं.


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सपा पर हमलावर हैं ओवैसी
वहीं, ओवैसी की शुरुआत भी ऐसी लग रही है कि वह सपा को ही निशाना बना रहे हैं. उन्होंने हाल ही में ट्वीट करके अलिखेश यादव पर निशाना साधा. उन्होंने लिखा- "जब उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार थी, तो उन्होंने 12 बार मुझे यूपी आने से रोका. 28 बार उन्होंने प्रदेश में हमारे कार्यक्रम को इजाजत नहीं दी." इसके अलावा ओवैसी ने अपने कार्यक्रम की शुरुआत भी अखिलेश यादव के क्षेत्र आजमगढ़ से की है. इसे भी सपा का गढ़ माना जाता रहा है.


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20 सीटों पर जीत-हार तय करती है मुस्लिम आबादी
उत्तर प्रदेश में 6 ऐसे जिले हैं, जहां मुस्लिम वोट बैंक काफी मजबूत है. इनमें बिजनौर (43.04), मुरादाबाद (50.80), रामपुर (50.57), सहारनपुर (41.95), शामली (41.77) और बलरामपुर (37.51) प्रमुख हैं.  असल में यूपी की कुल मुस्लिम आबादी तकरीबन 19 फीसदी है. इनमें शहरों में 32 फीसदी, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 16 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं.  कुल 20 ऐसी सीटें हैं, जहां पर मुस्लिम आबादी 20 फीसदी से अधिक है. ये हमेशा से भाजपा के खिलाफ कभी सपा, तो कभी बसपा-कांग्रेस को वोट देती रही है.


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राजभर पहुंचा सकते हैं बसपा-भाजपा को नुकसान
2017 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा ने कई छोटे दलों को मिलाकर अन्य पिछड़ा वर्ग के वोट को सफलता से साध लिया था. हालांकि, इस बार राजभर का विरोध भाजपा को नुकसान पहुंचा सकता है. हालांकि, केशव प्रसाद मौर्या एक ऐसे नेता बनकर उभरे हैं, जो इस वोट को भाजपा की झोली में ला सकते हैं. इसके अलावा अनिल राजभर के बढ़ाकर भाजपा ओम प्रकाश राजभर की कमी को पूरा करने की कोशिश में है. गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में 52 फीसदी पिछड़ा वोटबैंक में 43 फीसदी वोट गैर यादव हैं. हालांकि, यह आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, फिर भी पार्टियां इसे अपने जेहन में रखती हैं.


भाजपा के अलावा बहुजन समाजवादी पार्टी (BSP) के लिए भी यह बड़ी चुनौती है. क्योंकि अन्य पिछड़ा वर्ग और मुस्लिम वोट बैंक ने उसे सत्ता में तक पहुंचाने में मदद की थी. हालांकि, स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं के साथ छोड़ने और अब ओवैसी और राजभर का मेल बसपा का पलीता लगा सकता है.


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