गोवर्धन में गोबर की पूजा क्यों, हजारों साल पुरानी परंपरा
क्यों पूजे जाते हैं गोबर के उपलें गोवर्धन के दिन
गोवर्धन पूजा
देश में हर साल बड़ी ही धूमधाम से दिवाली पर्व मनाया जाता है. लाखों लोग इस दिन बाजारों में खरीदारी करने को निकलते हैं. एक दूसरे से मिलना, आपस में सबके सुख-दुख बांटना यहीं दिवाली का असल महत्व है. हर साल दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पर्व मनाया जाता है. इस दिन गोवर्धन पर्वत समेत भगवान श्रीकृष्ण और गायों की पूजा की जाती है. गोवर्धन के पावन अवसर पर श्रीकृष्ण को अन्नकूट यानी 56 पकवानों का भोग लगाया जाता है.
पौराणिक मान्यता
द्वापर युग में अच्छी बारिश की कामना के लिए वृंदावन वासी देवराज इंद्र की अराधना किया करते थे. उस समय वृंदावन के लोग अपनी खेती बाड़ी को हमेशा कायम रखने के लिए इंद्रदेव की ही पूजा करते थे. एक दिन यह दृश्य देख श्रीकृष्ण ने इस सबका कारण पूंछा. तभी सब नगरवासियों ने कहा कि देवराज इंद्र की बारिश के ही कारण जमीन से अनाज पैदा होता है, जमीन में घास उगती है जिनसे गायों का पेट भरता है. यह पूरी बात सुनकर श्रीकृष्ण बोले की हमारी गाय तो गोवर्धन पर्वत पर चरती है तो उनकी भूख तो गोवर्धन पर्वत मिटाता है इसलिए हमें तो गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए.
इसके बाद सभी नगरवासियों ने इंद्र के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी शुरू कर दीं. इससे क्रोधित होकर देवराज इंद्र ने नगर में मूसलाधार बारिश करा दी. इससे सभी गांव यकायक पानी में डूबने लगें तभी इंद्र के घमंड को खत्म अथवा ब्रजवासियों की सुरक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी एक अंगुली पर ही उठा लिया. इसी कारण उस समय हजारों जीव जंतुओं की जान बच सकी थी.
श्रीकृष्ण द्वारा यह चमत्कार देख देवराज इंद्र समझ गए कि श्रीकृष्ण साक्षात भगवान विष्णु के अवतार है जिसके बाद उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी और उसी के बाद गोवर्धन पूजा का प्रांरभ हुआ था.