हाथरस तो बहाना था खेल `कुछ बड़ा कराना था`, 10 पॉइंट्स में पढ़ें कप्पन पर UP सरकार का खुलासा
योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने जवाब में कहा, ``कप्पन का कहना है कि वह पीएफआई के सचिव हैं, लेकिन एक पत्रकार के रूप में हाथरस जा रहे थे. उन्होंने जिस अखबार के साथ पत्रकार के तौर पर जुड़े होने की बात कही है, वह 2018 में बंद हो चुका है.``
लखनऊ: हाथरस कांड के बहाने यूपी में जातीय दंगे कराने की साजिश रचने के आरोप में मथुरा से गिरफ्तार केरल के कथित पत्रकार सिद्दीक कप्पन की जमानत का योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विरोध किया है. बीते शुक्रवार को यूपी सरकार की ओर से कप्पन को जमानत नहीं देने के लिए सुप्रीम कोर्ट के सामने कई तथ्य रखे गए. यूपी सरकार का कहना है कि सिद्दीकी कप्पन की रिहाई के लिए केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स की याचिका सही नहीं है.
योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने जवाब में कहा, ''कप्पन का कहना है कि वह पीएफआई के सचिव हैं, लेकिन एक पत्रकार के रूप में हाथरस जा रहे थे. उन्होंने जिस अखबार के साथ पत्रकार के तौर पर जुड़े होने की बात कही है, वह 2018 में बंद हो चुका है.'' इसके अलावा यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सिद्दीक कप्पन के खिलाफ जांच एजेंसियों द्वारा जुटाए गए सबूतों की एक लिस्ट भी सौंपी है. उस लिस्ट में क्या है आप नीचे पढ़ सकते हैं...
जांच एजेंसियों को सिद्दीकी कप्पन के खिलाफ मिले सबूत
• 5.10.2020 को सिद्दीक कप्पन की गिरफ्तारी के दौरान मोबाइल फोन, लैपटॉप, पैम्फलेट मिले थे. पैम्फलेट पर लिखा था 'Justice for Hathras victim'. ये पैम्फलेट साम्प्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देने वाले, बड़े स्तर पर प्रदर्शन के दौरान पुलिस से बचने के तरीकों से अवगत कराने, इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस से बचने, आदि वाले थे.
• आरोपी के पास से मिले लैपटॉप को जांच के लिए भेजा गया. लैपटॉप से मिले डेटा में आरोपी का Signed Notice मिला, जिसे उसने Indus Scrolls न्यूज पेपर के एडिटर इन चीफ को भेजा था. नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में हुए तनाव में 2 छात्रों को गोली मारने की फेक न्यूज मलयालम मीडिया में फैलाने में भी कप्पन का बड़ा हाथ था.
• Indus Scrolls के एडिटर इन चीफ से पूछताछ में पता चला कि आरोपी सिद्दीकी जामिया मिलिया का पूर्व छात्र रहा है और तेजस (Thejas) अखबार के रिपोर्टर के तौर पर दिल्ली के मीडिया सर्किल में घुसा था. वह पीएफआई का Office Secretary था और Kerela Journalist Association Delhi Unit से जुड़ा था.
• आरोपी अपने प्रभाव और फंड से मलयालम मीडिया में हिंदू विरोधी खबरें चलवाता था. वह 2018 में केप टाउन गया था, जिसका खर्चा पीएफआई ने उठाया था.
• आरोपी के प्रभाव के चलते सीबीआई ऑफिसर अंकित शर्मा और दिल्ली पुलिस कांस्टेबल की हत्या की खबरें मलयालम मीडिया में नहीं चलीं. आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन की दिल्ली दंगों में भूमिका को भी मलयालम मीडिया ने कप्पन के प्रभाव में कवर कर लिया.
• आरोपी सिद्दीकी कप्पन का संबंध पीएफआई के सदस्य पी. कोया के साथ भी था. पी कोया प्रतिबंधित संगठन सिमी का सदस्य था. कप्पन खुद को तेजस अखबार का रिपोर्टर बताता है, जांच में पता चला कि अखबार दिसंबर 2018 से प्रकाशित होना बंद हो गया है.
• जिस कार में आरोपी अपने तीन और साथियों (co-accused) के साथ घूमता था, उसका ड्राइवर आलम नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में हुए दंगों के केस में आरोपी दानिश का साला है. उसका दूसरा साथी अतीक उर्र रहमान यूपी के मुजफ्फरनगर दंगों का आरोपी रहा है.
• कप्पन, अतीक उर्र रहमान और आलम ने यह बात कबूली है कि ये लोग सीएफआई के जनरल सेक्रेटरी रउफ शरीफ और पीएफआई के सदस्य दानिश के निर्देश पर हाथरस जा रहे थे.
• जांच अधिकारियों ने 8.10.2020 को आरोपी सिद्धकी कप्पन से जब पूछताछ की तो उसने अपना तेजस का आईडी कार्ड दिखाया. आरोपी ने अपने आप को मलयालम न्यूज पेपर तेजस और अजीमुखम ऑनलाइन न्यूज पोर्टल का रिपोर्टर बताया.
• आरोपी सिद्धिकी कप्पन के बैंक खातों से पता चलता है कि उसे पीएफआई (Popular Front of India) और सीएफआई (Campus Front of India) से पैसा मिलता रहा है. उत्तर प्रदेश सरकार ने 18.10.2020 को यह जांच एसटीएफ यूपी को सौंपने का निर्देश दिया.
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