उत्तराखंड के ऋषिकेश में बने AIIMS से आज ट्यूबरकुलोसिस (TB) की  दवा भेजने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया. ड्रोन के जरिए 2 किलोग्राम वजन की ट्यूबरकुलोसिस का इलाज करने वाली दवाएं टिहरी गढ़वाल के जिला अस्पताल में भेजी गईं. यह दूरी कुल 40 किलोमीटर की थी जिसे पूरा करने में ड्रोन ने 35 मिनट का समय लिया. आमतौर पर इस दूरी को पूरा करने में वहां 2 घंटे का समय लगता है. 


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चल रहा है ये ट्रायल


दुनिया के कुल टीबी मरीजों के एक चौथाई मरीज अकेले भारत में हैं और भारत के लिए ट्यूबरकुलोसिस से निजात पाना एक बड़ी चुनौती बना हुआ है. ऐसे में पहाड़ी इलाकों में या ऐसे इलाकों में जहां यातायात की पूरी व्यवस्था नहीं है या मौसम बेहद मुश्किल हो जाता है. क्या वहां ड्रोन का इस्तेमाल करके दवाएं भेजी जा सकती हैं, आज यही जांचने की कोशिश की गई. 


यह स्टडी यह देखने के लिए की गई कि क्या रोजमर्रा में दवाएं बेचने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया जा सकता है. जल्द ही दिल्ली के एम्स से एम्स झज्जर के सेंटर में ड्रोन भेजने का ट्रायल किया जाएगा. यह ट्रायल यह चेक करने के लिए किया जाएगा कि क्या ड्रोन का इस्तेमाल ऑर्गन ट्रांसप्लांट के मामलों में भी किया जा सकता है.


इस मामले में एक डमी ऑर्गन जो कि संभवत किसी पशु का होगा, उसे भेजकर यह चेक किया जाएगा कि क्या ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लायक सही सलामत हालत में पहुंचाया जा सकता है. अगर यह ट्रायल सफल रहता है तो अंग प्रत्यारोपण के लिए भी ड्रोन का इस्तेमाल किया जा सकता है.  ट्रायल के लिए tech eagle सॉल्यूशन कंपनी ने ड्रोन दिया था और इस मामले में टेक्निकल मदद नेशनल हेल्थ रिसोर्स सेंटर की तरफ से मुहैया कराई गई.


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