अब बात करेंगे एक ऐसे अनूठे मंदिर की जिसके शिल्पकार भूत हैं. इस मंदिर के पहरेदार भी भूत हैं. जी हां एक ऐसा मंदिर जिसके बारे में कहा जाता है कि उसे भूतों ने बनाया है और भूत ही उसकी रक्षा करते हैं. रात होते ही वहां अभेद्य सुरक्षा कवच सध जाता है. ये मंदिर वृंदावन में है जिसके बारे में कहा जाता है मथुरा के प्राचीन इतिहास में दो सबसे भव्य मंदिरों में से एक वही मंदिर है. जिसे भूतों से जुड़ा माना जाता है. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

जर्रे जर्रे में रोमांच , खौफ, सवाल और पहेलियां


सदियों से सिद्धियों, सवालों, चमत्कारों और रहस्य की दीवारों से घिरा एक मंदिर वंदावन में बड़ा मशहूर है. जिसके जर्रे जर्रे में रोमांच , खौफ, सवाल और पहेलियां हैं. ये मंदिर मथुरा का ह्दयस्थली कही जाने वाले वृंदावन में है जिसका कोना कोना रहस्यों से भरा है. इस मंदिर को लेकर दंत कथाओं और यहां आसपास की रिहाइश में भी पसरी हुई कथाएं कहती हैं कि इस मंदिर को इंसानों ने नहीं बल्कि पारलौलिक शक्तियों यानि भूतों ने बनाया है. वो भी सिर्फ एक रात में. और वही काली ताकतें इस मंदिर की रक्षा करती हैं.


Zee न्यूज़ की पड़ताल


इसलिए यहां रात होते ही उन्हीं पारलौलिक शक्तियों वाला खौफ पैर पसारने लगता है. यहां अनदेखी और अनसुनी कहानियां जिंदा होने लगती हैं. जिनके बारे में आंख खोलकर भी भरोसा करना नामुमकिन सा है. हमारे संवाददाता शिवांक मिश्रा ने भी गोविंददेवजी मंदिर में भूतों के रहस्यों से पर्दा उठाने की ठानी कि आखिर भूतों वाले मंदिर से जुड़े दावों में क्या कुछ दम भी है यहा भी सिर्फ सुनी सुनाई बातें.


मंदिर शिखर विहीन क्यों?


मंदिर के शिखर से जुड़ी दंत कथाएं कहती हैं कि सूरज ढलने के बाद अंधेरा गहराते ही यहां सदियों पहले भूतों ने मंदिर का निर्माण करना शुरू कर दिया था. सूरज की पहली किरण उगने  तक मंदिर तो बन गया था लेकिन भूत शिखर का निर्माण नहीं कर पाए थे. क्योंकि आसपास के मंदिरों और घरों में मंत्रोच्चार पूजा पाठ से लेकर शंख ध्वनि की ध्वनि से भूतों का भागना पड़ा.  कहते हैं इसीलिए इतना विशाल और इतना शानदार होने के बाजजूद ये मंदिर शिखर विहीन हैं.


कहते हैं कि मंदिर निर्माण और इसकी शिखर विहीन कहानी पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती गई और आगे की पीढी ने भूतों की कहानी को ही सच मान लिया. तो फिर सवाल ये उठता है कि आखिर सच क्या है. जाहिर इसकी पड़ताल भी हमने शुरू की. मंदिर के पास ही हमारे संवाददाता को नितिन शर्मा मिले, जिनकी मंदिर के साथ ही दुकान हैं. उन्होंने हमें भूतों की गढ़ी गई इस वास्तु कला का थोड़ा सा सही लेकिन सच बताया 


तमाम रहस्यों की पड़ताल में हमें अपने गौरवशाली इतिहास की शानदार विरासत की जानकारी भी देखने को मिली. इसके लिए हम इतिहासविद के पास पहुंचे. इतिहासकार ओमजी उपाध्याय ने हमें आगे बताया कि आखिर इतनी भव्यता के बावजूद मंदिर का शिखर कहां गया.


औरंगजेब की सनक का शिकार हुआ ये भव्य मंदिर डेढ़ सौ से 200 साल तक वीरान रहा. औरंगजेब ने इसे मस्जिद के रूप में विकसित करने का प्रयास किया. किन यहां न नमाज हुई न प्रार्थना. तीजा इतने लंबे समय तक खाली रहा ये मंदिर भूतों के निर्माण की निशानी बन गया. लेकिन कहते हैं फिर अंग्रेजों के समय में एक बार फिर मंदिर आस्थावान मंत्रों और ध्वनियों से गुंजायमान हुआ और तब से लेकर आज तक यूं ही आस्था यहां उमड़ रही है. 


 


'दोपहर 12 बजे से शाम चार बजे तक यहां आराम करने आते हैं कन्हैया'


लेकिन किवदंती सिर्फ इतनी ही नहीं है आस्था के इस दरबार के बारे में एक और बहुत बड़ी किवतंदी है  इस मंदिर में आज भी दोपहर 12 बजे से शाम चार बजे तक बांके बिहारी किशन कन्हैया आराम करने के लिए जरूर आते हैं. कहते हैं इस मंदिर के पुजारियों को आज भी किसी भी अनहोनी की पूर्व सूचना हो जाती है. क्योंकि यहां साक्षात स्वयं त्रिपुरारी श्रीकृष्ण विराजमान हैं.


गोविंद देवजी मंदिर के बारे में मंदिर के बारे में कहा जाता है कि केशव देव मंदिर के बाद मथुरा क्षेत्र में यही सबसे भव्य दिव्य और नव्य मंदिर था. इसकी भव्यता इसके निर्माण में आज भी झलकती है. इतिहासकारों की मानें तो इसकी भव्यता में ही छिपा है इसके भूतों के मंदिर होने का रहस्य. तो हमारी पड़ताल में तो मंदिर में भूतों के मंदिर के बनाने की कहानी को कोई खास बल नहीं मिला लेकिन आस्था पर सवाल नहीं उठाए जाते हैं.