Rahul Gandhi: 2024 लोकसभा चुनावों के नतीजों ने जैसे कांग्रेस में एक नई जान फूंक दी. पार्टी ना सिर्फ अपने दम पर 100 सीटें लेकर आई बल्कि संगठन के हौसले भी सातवें आसमान पर हैं. लेकिन इस चुनाव में राहुल गांधी का कद पहले से और ज्यादा बढ़ा है.


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वह रायबरेली और वायनाड दोनों सीटों से जीते हैं. अब उनके सामने इस बात का धर्मसंकट है कि कौन सी सीट रखी जाए और कौन सी छोड़ी जाए. कयास लगाए जा रहे हैं कि वह रायबरेली सीट अपने पास रख सकते हैं.


चलिए अब समझते हैं कि वायनाड और रायबरेली की अहमियत क्या है. पहले वायनाड की बात.


वायनाड वो जगह है, जिसने गांधी परिवार की लाज 2019 के चुनाव में बचाई थी. अमेठी में जब राहुल को हार मिली, तब वह इसी सीट से जीतकर संसद पहुंचे थे. राहुल को मलयालम भी नहीं आती, जो इस क्षेत्र में बोली जाती है. लेकिन बावजूद इसके राहुल गांधी को यहां से बंपर जीत मिली. 


अगर कहा जाए कि यहां से राहुल गांधी का दिल जुड़ा हुआ है तो गलत नहीं होगा. लोगों से भी राहुल को भरपूर प्यार मिला. यहां के लोगों ने उस वक्त उनका साथ दिया, जब उनके लिए सबसे ज्यादा मुश्किल भरा वक्त था. यहां से उन्होंने अपना कद राष्ट्रीय राजनीति में और ज्यादा बढ़ाया. इसलिए यहां के लोगों से उनका एक इमोशनल कनेक्शन भी जुड़ा हुआ है. 


साल 2026 में केरल विधानसभा चुनाव होने हैं. अगर राहुल गांधी यहां से सांसद बने रहते हैं तो कांग्रेस की अगुआई वाले यूडीएफ फ्रंट के लिए राह और आसान हो सकती है.


रायबरेली से है पुराना रिश्ता


राहुल गांधी का रायबरेली से उतरने का मन नहीं था. लेकिन सहयोगी अखिलेश यादव के आग्रह और चुनावों के लंबे चरण में वायनाड में वोटिंग खत्म होने के बाद उनको रायबरेली के बारे में सोचने का वक्त मिल गया. रायबरेली से उनके दादा फिरोज, दादी इंदिरा और मां सोनिया गांधी भी सांसद रह चुके हैं.


इस चुनाव में कन्नौज सीट से लड़े अखिलेश यादव ने राहुल को समझाया कि उत्तर प्रदेश बीजेपी के हाथों से छिटक रहा है और इंडिया गठबंधन को यह मौका हाथ से जाने देना नहीं चाहिए. यही फीडबैक राहुल को प्रियंका गांधी से भी मिला. इसके बाद उन्होंने रायबरेली से नामांकन भरा लेकिन वायनाड भी उनके मन से गया नहीं था. राहुल को रायबरेली में वायनाड से ज्यादा वोट मिले. 
कांग्रेस के अंदरखाने की जानकारी रखने वाले कहते हैं कि राहुल गांधी अब भी वायनाड को ही अपना राजनीतिक घर मानते हैं लेकिन मजबूरियों और दबाव के कारण वह रायबरेली को चुन सकते हैं.


उत्तर प्रदेश के सियासी ट्रैक पर कांग्रेस लौट चुकी है. उसने 6 सीटें जीती हैं. जबकि विधानसभा में उसके दो ही विधायक हैं. अगर राहुल 2029 लोकसभा चुनावों के लिए इंडिया गठबंधन का चेहरा बनना चाहते हैं तो उन्होंने और अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में वह बढ़त ले ली है. 


फिलहाल राज्यसभा में मल्लिकार्जुन नेता प्रतिपक्ष हैं. अगर राहुल को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनना है तो उनको उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश से प्रतिनिधित्व करना पड़ेगा.