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राजनीति के लिए जोड़े गए ये शब्द?
संविधान सभा में कांग्रेस पार्टी का बहुमत था. संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ अंबेडकर थे उन्होंने नए भारत की कल्पना एक ऐसे देश के रूप में की, जिसमें सभी लोगों के लिए समान मौका हो. भारत में सभी लोगों को उनकी आस्था और धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक स्वतंत्रता दी गई फिर भी हमारे देश के संविधान की मूल प्रस्तावना में धर्म-निरपेक्ष जैसा कोई शब्द नहीं था. ये शब्द संविधान की मूल प्रस्तावना में बाद में जोड़ा गया है. देश में इमरजेंसी के बाद 1976 में संविधान में 42वां संशोधन हुआ और संविधान की प्रस्तावना में दो शब्द जोड़े गये... ‘Secular’ यानी पंथ-निरपेक्ष और ‘Socialist’ यानी समाजवादी. संविधान में तो Secular शब्द का अनुवाद पंथ-निरपेक्ष किया गया है लेकिन इसे बाद में धर्मनिरपेक्ष कहा जाने लगा और फिर देश की तमाम पार्टियों ने इसी शब्द को हथियार बनाकर ना सिर्फ अलग अलग वर्गों का तुष्टिकरण किया बल्कि धर्म निरपेक्षता के नाम पर कई बार देश की अखंडता को भी खतरे में डाल दिया. 


आरक्षण पर आंबेडकर के विचारों का सच?
कुल मिलाकर हिंदुओं और मुसलमनों को लेकर डॉक्टर आंबेडकर का नजरिया एकदम स्पष्ट था और जो संविधान उन्होंने तैयार किया था उसमें धर्म निरपेक्षता शब्द नहीं लिखा था. इतिहासकारों और राजनेताओं ने आपको सिर्फ आरक्षण पर आंबेडकर के विचार किताबों में पढ़ाए लेकिन आपको कभी ये नहीं बताया कि कैसे वो जानते थे कि पाकिस्तान गए या वहां फंस चुके हिंदू कभी खुश और सुरक्षित नहीं रह सकते. जहां तक बात आरक्षण पर आंबेडकर के विचारों की है वहां देश के लोगों को अंधेरे में ही रखा गया. डॉक्टर आंबेडकर ने दलितों और वंचितों को भारत में आरक्षण देने की सबसे ज्यादा वकालत जरूर की थी, लेकिन शायद ही उन्होंने कभी ये सोचा होगा कि उनके जाने के बाद भारत की कई राजनैतिक पार्टियां आरक्षण को ही हथियार बना लेंगी. डॉक्टर आंबेडकर आरक्षण के जरिए पिछड़ों को सशक्त बनाने के पक्ष में थे ना कि राजनैतिक पार्टियों को सत्ता दिलाने के पक्ष में. 


आरक्षण के नाम पर राजनीति की दुकानें 
आरक्षण पर डॉ आंबेडकर ने एक बार कहा था कि आरक्षण आर्थिक उत्थान या गरीबी के उद्देश्य से नहीं है. इसके जरिए प्रशासन में कुछ विशेष जातियों का प्रवेश होगा जो अब तक प्रशासन से बाहर हैं. इस वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरियों में उचित स्थान मिलना चाहिए. इससे इन लोगों को सत्ता के माध्यम से ताकत मिलेगी और ये सशक्त होंगे. जहां बहुसंख्यक आबादी सत्ता में अपने हिस्से से वंचित हैं, वहां कोई लोकतंत्र नहीं है. लेकिन डॉक्टर आंबेडकर के जाने के बाद पार्टियां आरक्षण के नाम पर अपनी राजनीति की दुकान चलाने लगीं. हमारे देश के नेताओं को लगने लगा कि वो आरक्षण के जितने बीज बोएंगे उतनी ही वोटों की फसल काट पाएंगे.


जातियों वाली राजनीति का औजार


आरक्षण को जातियों वाली राजनीति का औजार बनाकर, हमारे नेताओं ने पिछले 74 वर्षों में आपके वोट लूटे हैं और देश को भी लूटा है. हमारे देश में गरीबी हटाओ के नारे लगाए गये लेकिन आज भी हमारे देश से गरीबी हटी नहीं है. सियासत के खिलाड़ियों ने अपनी इच्छा और राजनीतिक स्वाद के अनुसार डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के नाम का इस्तेमाल किया. उन पर अपना Copyright हासिल करने की कोशिश की लेकिन उनके मूल विचारों को किसी ने नहीं समझा. आज भी हमारे देश की राजनीतिक पार्टियां हर चुनाव में आरक्षण के औजार को धार देना नहीं भूलतीं इसलिए आज आंबेडकर के नाम पर राजनीति की दुकानें चलाने की बजाय उनकी सोच को सही अर्थों में अपनाने की जरूरत है.