Electoral Bond: इलेक्टरोल बांड स्कीम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. कोर्ट ने सुनवाई पूरी करते हुए चुनाव आयोग से कहा है कि वो 30 सितंबर तक इलेक्टरोल बांड के जरिये राजनीति दलों को मिले चंदे का पूरा ब्यौरा कोर्ट में पेश करें. आयोग को दो हफ्ते में यह ब्यौरा सीलबंद कवर में कोर्ट में पेश करना है.


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वोटर के जानने का हक़ बनाम दानकर्ता की गोपनीयता
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने तीन दिन तक सरकार और याचिकाकर्ता पक्ष की दलील को सुना. कोर्ट में बहस चंदे के बारे में वोटरों के जानने का हक़ बनाम चंदा देने वाले दानकर्ता की पहचान गोपनीय बनाये रखने की दलीलों पर केंद्रित रही. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि हम इस स्कीम को लाने के पीछे सरकार की मंशा पर संदेह नहीं कर रहे है. हम भी नहीं चाहते कि कैश के जरिये चंदा देने की पुरानी व्यवस्था फिर लौटे. हम चाहते है कि मौजूदा स्कीम की खामियों को दरुस्त करके बेहतर किया जाए.


याचिकाकर्ता पक्ष की दलील
याचिकाकर्ताओं में एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्न्स, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया और डॉक्टर जया ठाकुर शामिल है. याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील प्रशांत भूषण, कपिल सिब्बल, शादान फरासत और निजाम पाशा ने दलीलें रखी. याचिकाकर्ता पक्ष ने दलील दी कि  इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से  राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे के सोर्स का पता नहीं चलता. अगर वोटरों को चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के आपराधिक अतीत, उनकी चल अचल संपत्ति के बारे में जानकारी रखने का हक है तो उन्हें यह भी जानने का हक है कि किसी राजनीतिक पार्टी को किसी कॉरपोरेट कंपनी से कितना चंद मिला. लेकिन ये स्कीम उनके मूल अधिकारों का हनन करती है.


'सत्तारूढ़ पार्टी को सबसे ज़्यादा चंदा'
याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि साल 2016-17 और 2021-22के बीच  7 राष्ट्रीय और 24 क्षेत्रीय पार्टियों को इलेक्टरोल बांड के जरिए  कुल 9188.35 करोड़ का चंदा मिला है. इनमे से अकेले बीजेपी को 5,271.9751 करोड़ का चंदा मिला, वही कांग्रेस को 952.2955 करोड़, वही AITC को 767.8876, NCP को 63.75 करोड़ रुपये का चंदा  इस दरमियान  इलेक्टरोल बांड के जरिये मिला.


'सरकार को घूस देने का जरिया'
याचिकाकाकर्ताओ की ओर से कहा गया है कि इलेक्टरोल  बांड के जरिये 99 % से ज़्यादा चंदा सत्तारूढ़ पार्टियों को मिला है. ये सत्तारूढ़ पार्टियों को घूस देने का जरिया बन गया है. यह जाहिर तौर पर सरकार की नीतियों और फैसलो को प्रभावित करती है. सरकार सरकारी ठेके, लीज, लाइसेंस के तौर पर कंपनियों को फायदा पहुंचना सुनिश्चित करके कहीं ज़्यादा चंदा इस एवज में वसूल सकती है. ये लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतो के खिलाफ है क्योंकि ये राजनीतिक दलों में असमानता को बढ़ावा देती है.


'चुनाव आयोग और RBI को भी एतराज'
याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि चुनाव आयोग और आरबीआई भी इस स्कीम को लेकर अपना ऐतराज जाहिर कर चुके है. इस स्कीम के  जरिये संभावना बनती है कि सिर्फ राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए ही शैल कंपनियां बनाई जाए. विदेशी कंपनियां चाहे तो अपनी सहायक कंपनियों के जरिये इलेक्टरोल बांड के जरिये चंदा दे सकती है. सरकार चाहे तो SBI और जांच एजेंसियों के जरिये दानकर्ता की जानकारी हासिल कर सकती है, पर वोटर नहीं. 


सुप्रीम कोर्ट के अहम सवाल
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने  इस स्कीम पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसमे गोपनीयता सीमित ही है. इस स्कीम के चलते विपक्षी दलों को नहीं पता चल पाएगा कि कौन सत्तारूढ़ पार्टी को चंदा दे रहा है, पर सत्तारूढ़ पार्टी अपनी जांच एजेंसियों के जरिये ये पता करवा सकती है कि कौन उन्हें या विपक्षी पार्टियों को चंदा दे रहा है. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ये भी सवाल किया कि जब हरेक पार्टी को पता ही है कि चंदा देने वाला कौन है, फिर सिर्फ वोटर को इस जानकारी से वंचित रखने का क्या औचित्य है. वोटर को क्या ये जानने का हक़ नहीं है किस पार्टी को किसने चंदा दिया है.


कोर्ट ने कॉरपोरेट कंपनी पर  इलेक्टरोल बांड के जरिये चन्दा देने की निर्धारित सीमा को हटाने पर भी सवाल किया. दरअसल पहली व्यवस्था के मुताबिक कोई भी कंपनी पिछले 3 सालों के अपने शुद्ध मुनाफे के वार्षिक औसत का 7.5% से ज्यादा चंदा राजनीतिक दलों को नहीं दे सकती थी.लेकिन अब  इलेक्टोरल बॉन्ड के लिए इस बाध्यता को खत्म कर दिया गया है. चीफ जस्टिस ने कहा कि  कंपिनयों के चंदे को सीमित करने के पीछे की वाजिब वजह थी. कंपनी होने के नाते आपका काम बिजनेस करना है, चंदा देना नहीं और इसके बावजूद आप चंदा देना चाहते है तो ये छोटा हो होना चाहिए, लेकिन अब एक 1% मुनाफा कमा कर रही कंपनी भी एक करोड़ चंदा दे सकती है.


सरकार की दलील- ब्लैक मनी पर लगाम
सरकार की ओर से  सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इलेक्टरोल बांड स्कीम चुनाव में ब्लैक मनी के इस्तेमाल को रोकने के लिए लायी गयी है. इस स्कीम के जरिये ये सुनिश्चित किया गया है कि राजनीतिक दलों को बैंकिंग माध्यम के जरिये सिर्फ सही तरीके से कमाया गया पैसा ही पहुंचे. सरकार ने काले धन पर लगाम लगाने के लिए डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने जैसे जो दूसरे कदम  उठाये है, उनमें से ये भी एक अहम कदम है.


पहले चंदा कैश में होता था-SG
एसजी तुषार मेहता ने कहा कि इलेक्टरोल बांड स्कीम का मकसद पारदर्शिता  और दानकर्ताओं के हितों के बीचसंतुलन कायम करना है. जब तक इसके जरिये चंदा देने की व्यवस्था नहीं थी,चंदा देने वाले राजनैतिक मुश्किलों से बचने के लिए कैश के जरिये चंदा देने को मजबूर थे लेकिन अब गोपीनियता होने के चलते वह इलेक्टोरल बांड के जरिए चंदा दे सकते हैं.


दानकर्ता के हितों की सुरक्षा ज़रूरी
एसजी तुषार मेहता  ने कहा कि कोर्ट को इस स्कीम के जरिय सरकार की मंशा को देखिए. सरकार नहीं चाहती कि उसे राजनीतिक दलों को  चंदा देने वाले दानकर्ताओं का पता चले. हरेक पार्टी को यह तो पता होता ही कि उसे किसने चंदा दिया, लेकिन गोपनीयता दूसरी पार्टी के दानकर्ताओं के बारे में होनी ज़रूरी है ताकि दानकर्ता को परेशानी नहीं हो. अगर सत्तारूढ़ पार्टी को यह पता चलता है कि किसी दानकर्ता ने चंदा विपक्षी पार्टी को दिया है तो यह उसके लिए ,उसके कारोबार के लिए मुश्किल की वजह बन सकती है. तुषार मेहता ने अपना उदाहरण देते हुए कहा कि इस स्कीम के पीछे मकसद ये है कि अगर तुषार मेहता कांग्रेस को चंदा दे रहे तो ये बात सत्तारूढ़ बीजेपी को न पता चले ताकि उन्हें कोई परेशानी न झेलनी पड़े.


कोर्ट की इजाज़त के बाद ही दानकर्ता की जानकारी
सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अगर जांच एजेंसियां भी अभी अगर दानकर्ता  की जानकारी चाहती है तो ये कोर्ट के आदेश के बाद ही सम्भव है,।कोर्ट से इसकी इजाज़त के बाद ही कर सकती है. अगर किसी को व्यापक जनहित में चंदा देने वाले दानकर्ता की जानकारी चाहिए भी तो इसके लिए कोर्ट जाने का रास्ता खुला है, पर किसी की उत्सुकता शांत करने के लिए दानकर्ता की निजता के हनन की इजाज़त नहीं दी जा सकती.


'हरेक को समान चंदा मिलना संभव नहीं'
वोटर के जानने का हक़ के सवाल पर एसजी तुषार मेहता ने कहा कि वोटर इस आधार पर वोट नहीं देता कि किस पार्टी को किससे कितना फंड मिला है. वोटर पार्टी की विचारधारा, काबिलियत और नेतृत्व को देखकर वोट देता है. इलेक्टरोल बांड स्कीम में कुछ कमियां हो सकती है लेकिन दूर करने की कोशिश लगातार की जा रही है, लेकिन ये हकीकत है कि हरेक पार्टी को समान चंदा नहीं मिल सकता, उन्हें ज्यादा चन्दा पाने के लिए अपने स्तर को उठाना होगा. एक औसत भारतीय वोटर फिर चाहे वो कॉरपोरेट हो या अशिक्षित वो सोच समझकर फैसला लेता है. हो सकता है कि कि वह साल 2013 में सत्तारूढ़ पार्टी को चंदा ना दे क्योंकि वो जानता है कि अगले साल 2014 से किसकी हवा चलने वाली है.