DNA with Sudhir Chaudhary: कश्मीरी मुसलमान हिंदुओं के लिए आवाज कब उठाएंगे? कब निभाया जाएगा बराबरी का भाईचारा?
DNA with Sudhir Chaudhary: आज जम्मू-कश्मीर के मौजूदा हालात को लेकर एक बाद एक तीन हाई लेवल मीटिंग हुईं. यानी कश्मीर को लेकर केंद्र सरकार एक्शन में आ गई है और केंद्र सरकार इस पूरे मामले को बहुत गंभीरता से ले रही है.
DNA with Sudhir Chaudhary: आइए आज कश्मीर के ताजा अपडेट जानते हैं. आज जम्मू-कश्मीर के मौजूदा हालात को लेकर एक बाद एक तीन हाई लेवल मीटिंग हुईं, जिसमें गृह मंत्री अमित शाह, National Security Advisor अजीत डोवल, जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा, जम्मू कश्मीर पुलिस के DGP और Intelligence Bureau के तमाम बड़े अधिकारी मौजूद रहे.
बैठक में लिए गए अहम फैसले
इस बैठक में कश्मीरी पंडितों और हिंदू समुदाय के दूसरे लोगों की सुरक्षा को लेकर चर्चा हुई और ये फैसला लिया गया कि कश्मीर में हिंदू समुदाय के जो लोग सरकारी नौकरी करते हैं, उनका ट्रांसफर सुरक्षित स्थानों पर किया जाएगा. इसके अलावा दूसरे राज्यों से कश्मीर में नौकरी करने आए लोगों की सुरक्षा के लिए अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती बढ़ाई जाएगी.
एक्शन में आई केंद्र सरकार
यानी कश्मीर को लेकर केंद्र सरकार एक्शन में आ गई है और केंद्र सरकार इस पूरे मामले को बहुत गंभीरता से ले रही है. हालांकि कश्मीर से अब हिंदुओं ने पलायन शुरू कर दिया है. इन लोगों का कहना है कि वो जिन इलाकों में रहते थे, वहां स्थानीय लोगों से भी उनको मदद नहीं मिल रही थी, जिसकी वजह से उन्होंने कश्मीर छोड़ने का फैसला किया.
इसका मतलब ये है कि हिंदू अब ना तो कश्मीर में काम कर सकते हैं और ना ही वहां रह सकते हैं. लेकिन कश्मीरी मुसलमान भारत के किसी भी कॉलेज में पढ़ाई कर सकते हैं, किसी भी शहर में नौकरी कर सकते हैं, किसी भी राज्य में अपना घर बसा कर रह सकते हैं और हम इसका स्वागत करते हैं. यही भारत के लोकतंत्र की असली खूबसूरती है. लेकिन अब सवाल ये है कि क्या कश्मीर में रहने वाले मुसलमानों की ये जिम्मेदारी नहीं बनती कि वो वहां रहने वाले अपने हिंदू भाइयों की सुरक्षा के लिए अपनी आवाज उठाएं? उनकी सुरक्षा के लिए खड़े हो जाएं? 1990 में जब कश्मीरी पंडितों की हत्याएं हुई और उन्होंने पलायन किया, तब कश्मीरी मुसलमानों ने ये सब होने दिया. लेकिन अब अपनी इस गलती को सुधारने के लिए उनके पास एक और मौका है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या वो ऐसा करेंगे?
मानवाधिकारों के चैम्पियन्स ने साधा मौन
आतंकवादी कश्मीर को सामान्य नहीं होने देना चाहते और इसके लिए वो फिर से वैसे ही हालात पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं, जैसे आज से 32 साल पहले थे. उस समय कश्मीरी पंडितों को उनके ही घरों से विस्थापित कर दिया गया था. आज भी ऐसा करने की कोशिश की जा रही है. हैरानी की बात ये है कि भारत और दुनियाभर में मानवाधिकारों के चैम्पियन्स, जो भारतीय सेना के हर एनकाउंटर पर सवाल उठाते हैं, वो इस आतंकवाद पर बिल्कुल चुप बैठे हैं.
अमेरिका, यूरोपीय यूनियन और संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं ने अब तक कश्मीर में हिंदुओं की हत्या की निंदा नहीं की है. असल में इन देशों और संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं ने एक ऐसी व्यवस्था बना ली है, जिसमें हिंसा और आतंकवाद को वो केवल अपने चश्मे से देखते हैं.
कभी गलत नहीं हो सकते अल्पसंख्यक!
हमारे देश में आजादी के बाद से ही इस धारणा को मजबूत किया गया कि अल्पसंख्यक कभी गलत नहीं हो सकते और बहुसंख्यक कभी पीड़ित नहीं हो सकते. यानी हमने हिंसा, दंगों और अपराध को भी धर्म के आधार पर बांट दिया. इसका ही नतीजा है कि आज कश्मीर में हिंदुओं की हत्याएं हो रही हैं और उत्तर प्रदेश के कानपुर में आज जबरदस्त हिंसा हुई है. इस हिंसा के पीछे बीजेपी नेता नूपुर शर्मा के एक बयान को जिम्मेदार बताया जा रहा है. असल में नुपूर शर्मा पर आरोप है कि उन्होंने अपने एक बयान में पैगम्बर मोहम्मद साहब का अपमान कर दिया था. जिसके बाद इसके विरोध में कानपुर में आज शुक्रवार की नमाज के बाद बड़ा जुलूस निकालने का ऐलान किया गया था.
कानपुर में शांतिदूतों ने बरसाए पत्थर
मुस्लिम समुदाय के लोग चाहते थे कि इस प्रदर्शन के दौरान, हिंदू समुदाय के लोग भी अपनी दुकानें बन्द कर दें और इस विरोध प्रदर्शन को अपना समर्थन दें. लेकिन जब लोगों ने अपनी दुकानें बन्द करने से इनकार कर दिया तो वहां दोनों समुदाय के लोगों के बीच दंगे भड़क गए. और जुलूस निकालने आए लोगों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी. बड़ी बात ये है कि, पत्थर फेंकने वाले ये लोग उसी धर्म के हैं, जो हिंदू देवी देवताओं के अपमान को अभिव्यक्ति का अधिकार बताते हैं और ये कहते हैं कि भारत में असहनशीलता बढ़ रही है. लेकिन दूसरी तरफ, ये ऐसे मुद्दों पर दंगे करते हैं. ये हिंसा ऐसे समय में हुई है, जब प्रधानमंत्री मोदी आज कानपुर में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पैतृक गांव पहुंचे हुए थे.
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