First non-Congress Chief Minister In India: ‌देश के सबसे बड़े कम्युनिस्ट नेताओं में शामिल एलमकुलम मनक्कल शंकरन यानी EMS नंबूदरीपाद का जन्म 13 जून 1909 को पेरिन्थालमन्ना (वर्तमान में केरल के मलप्पुरम जिले) के पास स्थित एक छोटे से गांव में हुआ था.  उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत जाति-प्रथा के खिलाफ आंदोलन से की. उनका एक नारा बहुत लोकप्रिय है 'नंबूदरी को इंसान बनाओ'. वो उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग की. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

आजादी की लड़ाई गए जेल
1932 में नंबूदरीपाद महात्मा गांधी के अंग्रेजों के खिलाफ चलाए गए सविनय अवज्ञा आंदोलन से जुड़ गए. इसके लिए उन्हें ब्रिटिश सरकार ने एक साल के लिए जेल में डाल दिया था. इसके बाद 1934 में वे कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य बन गए, लेकिन जल्द ही उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) जॉइन कर ली. वे 1941 में CPI की सेंट्रल कमेटी के लिए चुने गए और 1951 में पार्टी की पोलितब्यूरो के सदस्य बने. 


नंबूदरीपाद ने बनाई ने देश की पहली गैर कांग्रेसी सरकार
1 नवंबर 1956 को केरल को राज्य का दर्ज़ा मिलता है. फरवरी 1957 में जनरल इलेक्शन के साथ केरल में भी चुनाव करवाए गए. इन चुनावों में CPI को 126 में से 60 वोट मिले. और वो कुछ इंडेपेंडेंट्स के साथ मिलकर सरकार बनाने में सफल हो गए. 5 अप्रैल 1957 को नंबूदरीपाद केरल के पहले मुख्यमंत्री बने थे. उनकी सरकार देश की पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी और वे देश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे. उनकी सरकार ने भूमि और शिक्षा क्षेत्र में सुधार के लिए कई अहम कदम उठाए. 1957 में जब वो केरल के मुख्यमंत्री बने, तब तक दुनिया में सिर्फ एक जगह रिपब्लिक ऑफ सान मैरिनो ऐसी जगह थी. जहां लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई कम्युनिस्ट सरकार थी. इसके अलावा जहां भी कम्युनिस्ट सरकारें थीं, वो सिंगल पार्टी सिस्टम के जरिए सत्ता में आई थीं. 

अमेरिका के दवाब में गिरी सरकार
जानकार कहते हैं अमेरिका के दवाब में केंद्र ने केरल सरकार को गिराने की साजिश रची थी. हालांकि तब केरल में एक चुनी हुई सरकार को गिराने का हर तरफ विरोध हुआ था. केरल एक ऐसा राज्य था, जहां कांग्रेस को करारी हार मिली थी. और इसीलिए नेहरू को केरल में वामपंथी सरकार पसंद नहीं थी. 


बर्खास्त हुई थी नंबूदरीपाद की सरकार
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक नंबूदरीपाद की बढ़ती हुई लोकप्रियता और वामपंथ की बढ़ता वर्चस्व को देखते हुए 1959 में केंद्र की जवाहरलाल नेहरू सरकार ने आर्टिकल-356 का इस्तेमाल करके उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया था. 1967 में नंबूदरीपाद दूसरी बार केरल के मुख्यमंत्री बने. लेकिन इस बार भी उनका कार्यकाल दो साल का ही रहा. 
 


अंतिम पड़ाव में भी राजनीति में सक्रिय रहे
नंबूदरीपाद 1962 में पहली बार कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने. लेकिन साल 1964 में कम्युनिस्ट पार्टी दो धड़ में बंट जाती है. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया CPI से अलग होकर CPI (M) (M यानी मार्क्सिस्ट) बनती है. जिसके बाद वह CPM में शामिल हो गए. 1977 में वे CPM के महासचिव बने और 15 साल तक इस पद पर रहे. अपने अंतिम दिनों में भी वे राजनीति में पूरी तरह सक्रिय थे. 1998 के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने अपनी पार्टी का प्रचार किया था. 19 मार्च 1998 को 88 साल की उम्र में नंबूदरीपाद का निधन हुआ था.