Who is Maulana Mahmood Madani: ज्ञानवापी विवाद के बीच शनिवार को अचानक एक नाम पूरे भारत की मीडिया में चर्चा का केंद्र बन गया. यह नाम था मौलाना महमूद मदनी का. उनके चर्चा में आने का कारण उनका बयान था जो उन्होंने देवबंद में चल रहे जमीयत उलेमा-ए-हिंद के जलसे में दिया. यहां उन्होंने भावुक होते हुए कहा कि, ‘मुसलमानों का चलना तक मुश्किल हो गया है. हमें हमारे ही देश में अजनबी बना दिया गया है. लेकिन जो एक्शन प्लान वो लोग तैयार कर रहे हैं, उस पर हमें नहीं चलना है. हम आग को आग से नहीं बुझा सकते हैं. नफरत को प्यार से हराना होगा.  जिस तरह की चीजें हो रही हैं उसके लिए मुस्लिमों को जेल भरने के लिए तैयार रहना चाहिए.’ इस बयान के बाद मदनी सोशल मीडिया से लेकर प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया में लगातार बने रहे. अब हर कोई ये जानना चाह रहा है कि आखिर यह शख्स कौन है जो सीध-सीधे सरकार पर इतने सवाल उठा रहा है.


कौन हैं मौलाना महमूद मदनी


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मौलाना महमूद मदनी देश के प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत-उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख हैं. इनका जन्म 3 मार्च 1964 को यूपी के देवबंद में इस्लामिक विद्वान और राजनीतिज्ञ असद मदनी के घर में हुआ था. इनके दादा हुसैन अहमद मदनी स्वतंत्रता सेनानी रहने के साथ ही दारूल उलूम के प्रमुख भी रह चुके हैं.


कहां से ली शिक्षा


अगर बात महमूद मदनी की शिक्षा की करें तो इन्होंने दारुल उलूम देवबंद इस्लामिक मदरसा में पढ़ाई की है. 1992 में ग्रेजुएशन कंप्लीट करने के बाद मदनी ने एक बिजनेस शुरू किया. हालांकि उन्होंने जल्द ही इस बिजनेस को बंद कर दिया. इसके बाद वह धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने लगे.


राजनीति में भी आजमा चुके हैं हाथ


महमूद मदनी ने राजनीति में भी अपना हाथ आजमाया. उन्होंने अपना राजनीतिक करियर समाजवादी पार्टी से शुरू किया. पार्टी का सदस्य बनने के कुछ समय बाद ही उन्हें अखिल भारतीय राष्ट्रीय सचिव और केंद्रीय परिषद सदस्य बना दिया गया. समाजवादी पार्टी ने उन्हें राज्यसभा सांसद भी बनाया. उनका सांसद का कार्यकाल 2006 से 2012 तक रहा. राजनीति और समाज में उनकी सक्रियता को देखते हुए उन्हें जमीयत उलमा-ए-हिंद की सहारनपुर इकाई का अध्यक्ष बनाया गया. जल्द ही वह संगठन के यूपी सचिव बन गए. संगठन और समाज में उनकी सक्रियता बनी रही. इसे देखते हुए उन्हें कुछ साल बाद ही जमीयत उलमा-ए-हिंद का वाइस प्रेजिडेंट बना दिया गया.


यहां से मिली राष्ट्रीय पहचान


मदनी लंबे समय से यूपी में ही काम करते रहे. उनकी पहचान भी वहीं तक सीमित थी, लेकिन 2001 में गुजरात में आए भूकंप ने उन्हें पूरे देश में पहचान दिला दी. भूकंप के बाद उन्होंने जिस तरह से राहत और पुनर्वास कार्य किया उसकी खूब सराहना हुई और उनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर की हो गई. इसके बाद 2002 में हुईहिंसा में भी इन्होंने संगठन के साथ जो राहत कार्य़ किए उससे इनकी पहचान बढ़ी.


आतंकवाद के खिलाफ अभियान, लेकिन NRC का विरोध


मदनी एक बार फिर तब हीरो बने जब उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ अभियान चलाया. इसके तहत उन्होंने पूरे देश में 40 से अधिक आतंकवाद विरोधी सम्मेलन किए. हालांकि इनका नाता विवादों से भी जुड़ा है. मदनी ने 6 अक्टूबर 2019 को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) और नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 (CAA) के विरोध में देशव्यापी आंदोलन का भी आह्वान किया था.