Real Father of Surgery: देशभर में शुक्रवार को  National Plastic Surgery Day मनाया गया. बहुत कम लोगों को पता होगा कि महर्षि सुश्रुत (Maharishi Sushruta) को Father of Surgery भी कहा जाता है. दिल्ली AIIMS के डॉक्टरों ने Department Of Science & Technology को एक प्रस्ताव भेजा है.. जिसके तहत सुश्रुत संहिता पर रिसर्च की जाएगी. इस रिसर्च के दौरान महर्षि सुश्रुत के ज्ञान और आधुनिक दौर की मेडिकल Surgeries के संबध को स्थापित किया जाएगा. ये एक बहुत बड़ा बदलाव है. असल में वेदों में आयुर्वेद का जो उल्लेख मिला, उसे आने वाली सदियों में दो भागों में बांटा गया.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

भारत ने दिया दुनिया को चिकित्सा विज्ञान


पहला था आत्रेय सम्प्रदाय- इससे संबंधित जानकारी हमें चरक संहिता में मिलती है, जिसमें अलग अलग बीमारियों के बारे में विस्तार से बताया गया है. ये प्रसिद्ध आयुर्वेदिक ग्रन्थ चरक ने लिखा था. चरक एक महर्षि एवं आयुर्वेद विशारद के रूप में विख्यात हैं. वे कुषाण राज्य के राजवैद्य थे.


दूसरा सम्प्रदाय था धन्वंतरि संप्रदाय .. इससे संबंधित जानकारी सुश्रुत संहिता में मिलती है. जिसमें 100 से अधिक अलग अलग तरह की Surgeries और 650 से ज़्यादा दवाइयों का ज़िक्र किया गया है. सुश्रुत प्राचीन भारत के महान चिकित्सा-शास्त्री और शल्य चिकित्सक थे. वो आयुर्वेद के महान ग्रन्थ सुश्रुत संहिता के प्रणेता भी हैं. उन्हें शल्य चिकित्सा यानी मेडिकल सर्जरी का जनक भी कहा जाता है.



ऐसी मान्यता है कि उन्होंने ही आज से लगभग 2800 साल पहले पहली प्लास्टिक सर्जरी की थी. उस समय काशी में एक व्यक्ति महर्षि सुश्रुत (Maharishi Sushruta) के पास कटी हुई नाक के साथ पहुंचा था. सुश्रुत ने पहले इस व्यक्ति के माथे से त्वचा का कुछ हिस्सा लिया. फिर पत्ते के जरिए उसकी नाक का आकार समझा और बाद में टांके लगा कर इस व्यक्ति की सर्जरी कर दी और ये व्यक्ति बिल्कुल ठीक हो गया.


केरल में बच्चों को पढ़ाया जा रहा गलत इतिहास


हालांकि आप सोच रहे होंगे कि इस रिसर्च की आखिर जरूरत क्यों पड़ी? तो इसका सबसे बड़ा कारण है, वो गलत इतिहास, जो हमारी किताबों में आज भी दर्ज है. केरल के राज्य शिक्षा बोर्ड की 9वीं कक्षा की एक पुस्तक में महर्षि सुश्रुत को Father of Surgery नहीं बताया गया है बल्कि इस पुस्तक में लिखा है कि चिकित्साशास्त्री अबू अल कासिम अहमद उर्फ अल जहरावी.. Father of Surgery यानी मेडिकल Surgeries के जनक थे. जिनका जन्म सऊदी अरब में वर्ष 936 में हुआ था. जबकि महर्षि सुश्रुत का जन्म 800 ईसा पूर्व यानी अल ज़हरावी से लगभग साढ़े 1700 साल पहले हुआ था. दुर्भाग्यपूर्ण ये है कि केरल में बच्चों को आज भी यही पढ़ाया जा रहा है कि Father of Surgery महर्षि सुश्रुत नहीं बल्कि अल जहरावी थे.


ये इत्तेफाक ही है कि शुक्रवार को National Plastic Surgery Day भी था. इस मौके पर हम आपको सर्जरी के जनक और दुनिया के पहले शल्य चिकित्सक महर्षि सुश्रुत (Maharishi Sushruta) और सुश्रुत संहिता का सही इतिहास बताना चाहते हैं. 


मेडिकल साइंस के इतिहास को भी दुरुस्त करने की शुरुआत 


चेहरे को सुंदर बनाने की क़ॉ़स्मेटिक सर्जरी हो, बच्चे का सिजेरियन सर्जरी से जन्म हो या मुश्किल से मुश्किल हालात में किसी के कट चुके अंग को वापस जोड़ना हो. आपको लगता होगा ये सब मेडिकल साइंस ने तरक्की के साथ सीखा है. लेकिन आज हम आपको बताना चाहते हैं कि भारत में एक ऐसी किताब मौजूद थी जिसमें एक महर्षि (Maharishi Sushruta) ने मुश्किल से मुश्किल ऑपरेशन को करने के तमाम तरीके बता दिए थे. उसी किताब को आधार बनाकर पूरे विश्व ने सर्जरी को सीखा. किताब का नाम है सुश्रुत संहिता और महर्षि सुश्रुत हैं दुनिया के पहले सर्जन.


अब इसी ऐतिहासिक तथ्य को रिसर्च के साथ साबित किया जाएगा. देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स के डॉक्टरों ने डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी को ये प्रस्ताव भेजा है कि उन्हें महर्षि सुश्रुत के काम और आज की मेडिकल सर्जरी की दुनिया के संबंध को साबित करने वाली रिसर्च के लिए मंज़ूरी दी जाए. ऐसा करने की सबसे बड़ी वजह है इतिहास को दुरुस्त करना. ग्रीस और अमेरिका जैसे देश अभी प्लास्टिक सर्जरी से लेकर मेडिकल साइंस की लगभग हर नई टेक्नोलॉजी को अपना बताकर दूसरों को सिखा रहे हैं. लेकिन भारत अब 600 ईसा पूर्व के एन्साइक्लोपीडिया और मेडिकल साइंस की सबसे मुश्किल टेक्नीक के जनक से दुनिया को मिलवाना चाहता है.


दुनिया की पहली सर्जरी 3 हजार साल पहले भारत में


दुनिया की पहली प्लास्टिक सर्जरी काशी में 3 हजार वर्ष पहले हुई थी. इतिहास में ये दर्ज है कि दुनिया की पहली प्लास्टिक सर्जरी आज से लगभग 3 हजार साल पहले काशी में की गई थी. जब महर्षि सुश्रुत के पास एक व्यक्ति कटी हुई नाक के साथ पहुंचा था. पहले सुश्रुत (Maharishi Sushruta) ने उस व्यक्ति को नशीला पदार्थ पिलाया, जिससे उसे दर्द ना हो. इसके बाद उसके माथे से त्वचा का हिस्सा लिया और पत्ते के जरिए उसकी नाक का आकार समझा. फिर टांके लगाकर नाक बनाई और जोड़ दी.


सुश्रुत संहिता में ये भी दर्ज है कि सुश्रुत 125 अलग अलग सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट्स का प्रयोग करते थे. चाकू, सुई, चिमटे जैसे अलग अलग इंस्ट्रूमेंटस को वो उबालकर यूज करते थे. सुश्रुत संहिता के 184 चैप्टर हैं जिसमें 1120 बीमारियों के बारे में बताया गया है. 700 मेडिसिन वाले पौधों का जिक्र है. 12 तरह के फ्रैक्चर और 7 डिस्लोकेशन यानी हड्डी का खिसकना समझाया गया है. 


महर्षि सुश्रुत को 300 अलग अलग तरह की सर्जरी आती थी. जिसमें नाक और कान की सर्जरी मेन थी. आंखों की सर्जरी में उन्हे महारत थी. इसके अलावा सर्जरी से बच्चे का जन्म, एनेस्थिसिया यानी बेहोश करने की सही डोज का ज्ञान भी उन्हें खूब था. अपने शिष्यों को सिखाने के लिए महर्षि सुश्रुत फल, सब्जियों और मोम के पुतलों का प्रयोग करते थे. बाद में शवों पर उन्होंने खुद सर्जरी सीखी और फिर अपने स्टूडेंट्स को भी सिखाई.


सऊदी अरब के जहरावी को दिया जा रहा क्रेडिट


आप सोच रहे होंगे कि इस रिसर्च की जरुरत क्यों पड़ी. इसका जवाब अपने ही देश में दी जा रही गलत शिक्षा की किताबों में छिपा है. केरल स्टेट बोर्ड क्लास 9th social science की किताब में फादर ऑफ सर्जरी के तौर पर कुछ और ही पढाया जा रहा है. इस किताब में एक अरब मुस्लिम अबू अल कासिम अल जहरावी के बारे में पढाया जा रहा है. जो मदीना में पैदा हुए थे. किताब के पेज नंबर क्योंकि सुश्रुत का जन्म 800  ईसा पूर्व (BC) हुआ था. जबकि अल ज़हरावी के जन्म का समय 936 AD का मदीना में बताया जाता है. पिछले वर्ष जनवरी के महीने में इस बात पर काफी बवाल  भी हुआ था. लेकिन आज भी यही पढाया जा रहा है.


हालांकि मॉर्डन मेडिकल साइंस के जानकार मानते हैं कि 400 साल पहले ही सर्जरी के बारे में दुनिया को पता लगा था. हालांकि सच ये है कि महर्षि सुश्रुत ने कई हजार साल पहले इस काम को करके दिखा दिया था.  ऑस्‍ट्रेलिया के मेलबर्न में रॉयल ऑस्‍ट्रेलिया कॉलेज ऑफ सर्जंस में महर्षि सुश्रुत की मूर्ति लगी हुई है. महर्षि सुश्रुत की एक पेंटिंग एम्स के हाल ही में बने प्लास्टिक सर्जरी डिपार्टमेंट में भी बनी है. 15 जुलाई को भारत में प्लास्टिक सर्जरी डे मनाया जाता है. इस मौके पर दुनिया को ये बताना बहुत जरूरी है कि दुनिया को प्लास्टिक सर्जरी सिखाने की शुरुआत भारत ने 3 हज़ार साल पहले कर दी थी.


आयुर्वेद में हर बीमारी का इलाज मौजूद


आपको ये बात भी समझनी चाहिए कि कैसे पश्चिमी देशों ने हर क्षेत्र में भारत के महत्व को कम किया और भारत के पास अध्यात्म, योग और आयुर्वेद की जो विरासत है, उसे कल्पनाओं से जोड़ा. ये बात सही है कि इलाज की आधुनिक चिकित्सा पद्धति, जिसे आप Allopathy कहते हैं, वो 2400 वर्ष पुरानी है. 400 ईसा पूर्व Greece के Athens शहर में रहने वाले Hippo-crates को आधुनिक चिकित्सा का जनक कहा गया है. वो ग्रीक के महान चिकित्सक थे. लेकिन ये भी सच है कि इलाज की प्राचीन पद्धतियों में से एक आयुर्वेद की शुरुआत तीन से चार हजार वर्ष पहले हुई थी


आयुर्वेद संस्कृत भाषा के दो शब्द आयुर और वेद से बना है. आयुर का अर्थ होता है.. जीवन और वेद का अर्थ होता है विज्ञान. यानी आयुर्वेद जीवन के विज्ञान को परिभाषित करता है. अर्थवेद में 114 श्लोक ऐसे हैं, जो आयुर्वेदिक पद्धति से इलाज का ज़िक्र करते हैं. अर्थवेद में कई प्रमुख बीमारियों के बारे में बताया गया है. जैसे बुख़ार, खांसी, पेट दर्द, डायरिया और Skin की बीमारी. इन बीमारियों का इलाज कैसे करना है, इसके बारे में अर्थवेद में उल्लेख मिलता है. इसके अलावा ऋग्वेद में भी 67 औषधियों का उल्लेख मिलता हैं. और यजुर्वेद में 82 औषधियों का उल्लेख दिया गया है. जबकि सामवेद में आयुर्वेद से सम्बन्धित कुछ मंत्रों का वर्णन प्राप्त होता है. यानी हमारे वेदों में विस्तार से आयुर्वेद का उल्लेख है और ये इलाज की एक प्रचानी पद्धति है.


बीमारियों को इतने हिस्सों में बांटा गया


ऐसा भी कहा जाता है कि Allopathic इलाज की उत्पत्ति आयुर्वेद के 2 हजार वर्षों के बाद हुई. आयुर्वेद ने हमें कई महत्वपूर्ण ग्रंथ भी दिए. इसके अलावा ब्रह्मा जी ने आयुर्वेद को आठ भागों में बांटा था और उन भागों को उन्होने तंत्र का नाम दिया. ये सारे भाग अलग-अलग चिकित्सा के उपक्रम को समझाते हैं. इनमें पहला है शल्य तन्त्र - इसको अंग्रेजी में सर्जरी कहते है


दूसरा है शालाक्य तन्त्र- इसे अंग्रेज़ी में ENT विभाग कहते है. यानी इसमें मुंह, नाक, आंख और कान के अंगों में जो रोग होता है, उससे संबंधित निवारण के बारे में लिखा हुआ है. तीसरा है काय चिकित्सा. इसको जनरल मेडिसिन कहते है. इसमें बुखार, खांसी और जुकाम जैसी बीमारियां आती हैं. चौथा है भूत विद्या तन्त्र. इसमें ग्रह दशा से संबंधित चिकित्सा के बारे में लिखा हुआ है. 


पांचवां है कुमार भृत्यु. इसमें बच्चों, स्त्रियों और स्त्री रोग से संबंधित रोग का उल्लेख मिलता है.  छठा है अगदत तन्त्र. इसको अंग्रेज़ी में Toxicology कहते हैं. इसमें ज़हर के बारे में ज्ञान दिया गया है. सातवां है रसायन तन्त्र. इसमें बुढ़ापे में बल, पौरुष और दीर्घायु बनने के बारे में लिखा गया है. और आख़िरी है वाजीकरण. इसमें शरीर के गुप्त रोग का उल्लेख मिलता है.


हम अपनी विरासत पर गर्व करना कब सीखेंगे?


कहने का मतलब ये है कि भारत के पास आयुर्वेद के रूप में, योग के रूप में और अध्यात्म के रूप में एक बहुत बड़ी सांस्कृति विरासत है. हमारे देश में महर्षि चरक और महर्षि सुश्रुत जैसी महान विभूतियों ने जन्म लिया है. लेकिन इतिहास में इनके बारे में कम ही बताया जाता है. सोचिए.. केरल में जो बच्चे ये पढ़ रहे हैं कि अल जह-रावी Father of Surgery थे, क्या वो कभी बड़े होकर ये मानेंगे कि उन्होंने गलत इतिहास पढ़ा. या ये बात आप भी स्वीकार करेंगे. आपके लिए ऐसा करना मुश्किल होगा क्योंकि हमारे देश में गलत इतिहास को आपके दिमाग में ऐसा फीड किया गया है कि ये इतनी आसानी से डिलीट नहीं हो सकता. यही वजह है कि हम बार बार सही इतिहास के बारे में आपको जागरुक करते रहते हैं.


(ये ख़बर आपने पढ़ी देश की नंबर 1 हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर)