संविधान लागू होने से पहले उसके हिंदी संस्करण और वंदे मातरम पर किसने उठाए सवाल?
देश जब आजाद हो गया तो काफी कुछ तय करने का जिम्मा संविधान सभा के ऊपर था. अलग अलग समाज, पार्टियों और क्षेत्रों के लोग इसमें शामिल थे और इनको देश का संविधान बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी.
नई दिल्ली: देश जब आजाद हो गया तो काफी कुछ तय करने का जिम्मा संविधान सभा के ऊपर था. अलग अलग समाज, पार्टियों और क्षेत्रों के लोग इसमें शामिल थे और इनको देश का संविधान बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी. संविधान सभा 26 नवम्बर से पहले ही तमाम सारी बहस और संशोधन कर चुकी थी, 26 जनवरी को तो बस लागू होना था. सवाल था कि उस दिन देश के राष्ट्रपति संविधान की हिंदी कॉपी पर दस्तखत करेंगे कि नहीं? ये हस्ताक्षर हिंदी में होंगे कि नहीं? वंदे मातरम गीत का क्या होगा?
26 जनवरी को जिंदा रखना चाहते थे कांग्रेस के पुराने नेता
कांग्रेस के नेता 26 जनवरी को जिंदा रखना चाहते थे. दरअसल जब से लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस ने पहली बार पूर्ण स्वतंत्रता का मांग की थी, उस दिन तय किया गया था कि 26 जनवरी से हर साल स्वतंत्रता दिवस मनाया जाया करेगा और 15 अगस्त 1947 से पहले ये क्रम जारी रहा. लेकिन 15 अगस्त को आजादी मिलने के बाद तय किया गया कि 26 जनवरी की याद बनाए रखने के लिए उस दिन संविधान लागू करके इसे गणतंत्र दिवस बना देते हैं, जिससे इसकी महत्ता बनी रही.
संविधान सभा में हिंदी से लेकर वंदे मातरम तक पर उठे सवाल
संविधान सभा के अध्यक्ष डा. राजेन्द्र प्रसाद को 26 नवम्बर 1949 को एक स्पीच देनी थी और उस पर साइन करने थे. लेकिन फिर भी उस दिन लोगों ने हिंदी से लेकर वंदेमातरम तक कई बातों पर सवाल उठाए. ये मीटिंग संसद के सेंट्रल हॉल में हो रही थी और तब उसे कॉन्स्टीट्यूशन हॉल कहा जाता था. जैसे ही मीटिंग शुरू हुई, प्रेसीडेंट राजेन्द्र प्रसाद ने सभा से कहा कि संविधान स्वीकार करने का प्रस्ताव रखे जाने से पहले सरदार पटेल स्टेट्स को लेकर कुछ जरूरी एनाउंसमेंट करना चाहते हैं. तब पटेल ने बताया कि संविधान के पहले शेड्यूल में उल्लेखित हैदराबाद समेत 9 स्टेट्स ने संविधान को लागू करने के लिए स्वीकृति दे दी है.
पटेल के बाद अचानक उड़ीसा से संविधान सभा के सदस्य बिश्वनाथ उठकर खड़े हो गए, पूछने लगे- सर, क्या आप ये बताएंगे कि क्या आप वंदे मातरम को राष्ट्रीय गीत बनाने का एनाउंसमेंट करने वाले हैं, फिर नेशनल एंथम क्या होगा? डा. प्रसाद ने फौरन उन्हें टोका—नहीं मैं आज ऐसा कोई एनाउंसमेंट नहीं करने जा रहा हूं. इस पर हम जनवरी में चर्चा करेंगे. बिश्वनाथ दास आजादी से पहले उड़ीसा स्टेट के प्रधानमंत्री थे और बाद में यूपी के राज्यपाल और फिर उड़ीसा के मुख्यमंत्री भी बने.
देश की राष्ट्रभाषा हिंदी करने की मांग
उसके बाद कोई और बोले राजेन्द्र बाबू ने जल्दी से संविधान सभा के लिए उनके पहले अस्थाई अध्यक्ष डां सच्चिदानंद सिन्हा सहित दो लोगों के संदेश पढ़कर सुनाए. इतने में अलगू राय शास्त्री ने सवाल उठा दिया, सर क्या 26 जनवरी तक संविधान का हिंदी ट्रांसलेशन भी हो पाएगा, जब हमारे देश की भाषा हिंदी है तो हम इसे विदेशी भाषा में क्यों स्वीकार या लागू करें? बल्कि 26 जनवरी तक ट्रांसलेशन का काम पूरा करके गर्व के साथ हिंदी में ही इसे स्वीकार करके सब लोग अपने हस्ताक्षर हिंदी कॉपी पर ही करें. हालांकि जवाब में प्रेसीडेंट ने बताया कि हिंदी अनुवाद का प्रस्ताव भी पास हो चुका है और अनुवाद का काम शुरु भी हो चुका है, लेकिन ये जरूरी नहीं है कि तब तक हो ही जाएगा और हम हिंदी के संविधान पर भी हस्ताक्षर करेंगे. उन्होंने ये भी कहा कि आपको पता ही है कि पंद्रह साल के लिए अंग्रेजी को ऑफीशियल भाषा बनाया जा रहा है. उसके बाद हिंदी को लेकर तय किया जाएगा. हिंदी के पुरोधा आज अलगू राय को याद नहीं करते हैं, आजमगढ़ से सांसद रहे अलगू राय शास्त्री आर्य समाजी थे और हिंदी का झंडा बुलंद रखते थे.
देश के एकीकरण में पटेल के प्रयासों की हुई सराहना
उसके बाद आरवी धुलेकर के संविधान की कॉपी पर सबके साइन करने के सवाल का जवाब देने के बाद डां राजेन्द्र प्रसाद ने अम्बेडकर के मोशन को रखने से पहले अपनी स्पीच दी. उन्हें पता था कि सवाल लेने शुरू किए तो फिर आगे का काम अटक जाएगा. उन्होंने अपनी स्पीच में बताया कि कैसे हमारी जनसंख्या रुस को हटाकर बाकी यूरोप से ज्यादा है. गांधीजी के प्रयासों से लेकर देश की विविधता की चर्चा करने के बाद उन्होंने कश्मीर, हैदराबाद, मैसूर जैसे स्टेट्स के बारे में बताया और पटेल के प्रयासों की सराहना की. उन्होंने बताया कि कैसे 22 नवंबर तक करीब 64 लाख रुपया संविधान सभा पर पिछले तीन सालों में खर्च हुआ है. फिर डा. प्रसाद ने अम्बेडकर और बीएन राव
जैसे विधि विशेषज्ञों की संविधान निर्माण में मदद के लिए तारीफ की और संविधान के खास पहलुओं की चर्चा की. फिर कई देशों के संविधान से तुलना करते हुए बताया कि कैसे हमारा संविधान सर्वश्रेष्ठ है. सबसे आखिर में उन्होंने सभा के सेक्रेटरी से लेकर चपरासी तक सबको धन्यवाद दिया और सभा ने मोशन पास कर दिया.
क्या आप हिंदी में साइन करेंगे?
तालियों की गड़गड़ाहट के बीच हैदराबाद के डा. रघुवीरा ने फिर एक सवाल पूछ लिया, क्या आप संविधान पर हिंदी में साइन करेंगे? प्रेसीडेंट ने जवाब ना देकर उलटा सवाल दाग दिया, आपने ये सवाल पूछा ही क्यों? ऐसे बात अनसुनी कर दी गई. लेकिन यही सवाल उठाने वाले रघुवीरा 1963 में जाकर जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. उसके बाद बाबू राजेन्द्र प्रसाद ने सभा को 26 जनवरी 1950 से पहले किसी दिन तक के लिए स्थगित कर दिया. बाद में 24 जनवरी 1950 को सभा फिर से बुलाई गई और उसी दिन संविधान पर सभी सदस्यों ने हस्ताक्षर कर दिए. कुल 284 सदस्यों ने संविधान की दो कॉपियों पर हस्ताक्षर किए, एक हिंदी की कॉपी और एक इंगलिश की कॉपी. इन सदस्यों में 15 महिला सदस्य भी शामिल थीं.
सदस्यों ने बाबू राजेंद्र प्रसाद से मिलाए हाथ
इधर प्रेसीडेंट ने सभा स्थगन का ऐलान करने से पहले सभी सदस्यों से कहा कि मैं सभा स्थगित करने से पहले सभी सदस्यों से हाथ मिलाने आ रहा हूं. तो नेहरू पहली बार उठ खड़े हुए, बोले- आप मत उठिए..सभी सदस्य आपकी सीट पर एक एक करके आएंगे और हाथ मिलाएंगे. फिर ऐसा ही हुआ, हर सदस्य प्रेसीडेंट की सीट पर पहुंचा और बाबू राजेन्द्र प्रसाद से हाथ मिलाया, उसके बाद वो 24 जनवरी को ही मिले.
राष्ट्रीय गान पर पूछा सवाल
24 जनवरी को जब सभा शुरू हुई तो पहले दो नए सदस्यों ने शपथ ली, बॉम्बे स्टेट के रत्नप्पा भरमप्पा कुर्नभर और हिमाचल प्रदेश के वाई. एस. परमार. उसके फौरन बाद डा. राजेन्द्र प्रसाद ने जन गण मन और वंदे मातरम पर स्थिति साफ कर दी. उन्होंने कहा, ‘’ There is one matter which has been pending for discussion, namely the question of the National Anthem. At one time it was thought that the matter might be brought up before the House and a decision taken by the House by way of a resolution. But it has been felt that, instead of taking a formal decision by means of a resolution, it is better if I make a statement with regard to the National Anthem. Accordingly I make this statement. The composition consisting of the words and music known as Jana Gana Mana is the National Anthem of India, subject to such alterations in the words as the Government may authorise as occasion arises; and the song Vande Mataram, which has played a historic part in the struggle for Indian freedom, shall be honoured equally with Jana Gana Mana and shall have equal status with it.’’ उनके इस बयान पर जोरदार तालियां बजीं.
ये भी पढ़ें- अमेरिकी मैगजीन ने खोली चीन की पोल, 'गलवान में मारे गए थे 60 से ज्यादा चीनी सैनिक'
जब देश के पहले राष्ट्रपति बने बाबू राजेंद्र प्रसाद
उसके बाद कुछ सदस्यों ने कई राज्यों के नए सदस्यों के इलेक्शन के बारे में संविधान सभा के अध्यक्ष के बारे मे सवाल पूछे. उसके बाद यूनाइटेड प्रॉविंस से प्रोफेसर शिब्बन लाल सक्सेना ने पूछा, कि क्या संविधान का हिंदी संस्करण तैयार हो चुका है. डा. राजेन्द्र प्रसाद ने हामी भरा उसके बाद उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव के रिटर्निंग ऑफीसर एच. वी. आर. आयंगर को राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों का ऐलान करने के लिए बुलाया. आयंगर ने बताया कि केवल एक ही नाम प्रस्तावित हुआ था, वो था डा. राजेन्द्र प्रसाद का, जिसे जवाहर लाल नेहरू ने प्रस्तावित किया था और सरदार पटेल ने उसका समर्थन किया था. उनके नाम पर तालियां बजीं.
संविधान की 3 कॉपियां बनी
सबसे बाद में डा. राजेन्द्र प्रसाद ने सभा को बताया कि अभी संविधान की तीन कॉपिया हैं, जिसमें से अंग्रेजी में छपी हुई एक है, बाकी एक एक अंग्रेजी और हिंदी की हस्तलिखित कॉपियां हैं. सदस्यों ने तीनों पर हस्ताक्षर किए. तब मद्रास के एम अनंतस्वामी आयंगर ने जन गण मन गाने की इजाजत अध्यक्ष से मांगी. पूर्णिमा बनर्जी ने बाकी सदस्यों के साथ इसे गाया, सभी खड़े हो गए. फिर अध्यक्ष ने कहा- वंदे मातरम! तब पंडित लक्ष्मीकांता मैत्रा ने बाकी सदस्यों के साथ वंदे मातरम का गान किया.
LIVE TV