DNA Analysis: अल जवाहिरी का मारा जाना भारत के लिए कई मायनों में अहम है. इसे आप चार Points में समझ सकते हैं. पहला, अल जवाहिरी ने इसी साल अप्रैल में एक वीडियो जारी करके कर्नाटक में हिजाब की मांग करने वाली मुस्लिम छात्राओं का समर्थन किया था. इसके अलावा उसने हिजाब के समर्थन में अल्लाह-हू-अकबर का नारा लगाने वाली मुस्कान नाम की छात्रा को सच्ची मुसलमान बताया था और उसकी प्रशंसा में एक कविता भी लिखी थी. ये वीडियो इसलिए भी खास था क्योंकि इससे पहले तक अल जवाहिरी अपने संदेशों में पश्चिमी देशों और अमेरिका का जिक्र करता था. लेकिन इस बार उसने अपनी रणनीति बदल दी थी और भारत के एक राज्य में चल रहे विवाद पर पूरा वीडियो बना दिया था. इससे यही संकेत मिले कि अल जवाहिरी का फोकस अब भारत पर है और ये भारत के लिए अच्छी खबर नहीं थी.


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दूसरा, अल जवाहिरी के इस वीडियो से इस बात की आशंका भी बढ़ गई थी कि अल कायदा भारत के नौजवानों को अपना निशाना बना सकता है और उन्हें अपने आतंकवादी संगठन में शामिल करने के लिए बड़े पैमाने पर कोशिशें कर सकता है. एशिया के पश्चिमी देशों जैसे इराक और सीरिया में ISIS का प्रभाव बढ़ने से अल कायदा की पकड़ वहां कमज़ोर हो गई थी और अल कायदा तभी से नए देशों की तलाश में था, जहां से ये वो नए लड़ाकों को अपने साथ जोड़ सके और भारत उसके लिए पहली पसंद बन गया था.


भारत पर फोसक करता अलकायदा!


इसी साल जून में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें बताया गया था कि इस आतंकवादी संगठन की एक Unit, जिसे AQIS या al-Qaeda in The Indian Subcontinent कहते हैं, उसके पास 200 से 400 आतंकवादी हैं, जिन्हें भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार से भर्ती किया गया है. अल जवाहिरी पिछले कुछ समय से इस Unit को और मजबूत करना चाहता था और उसका सारा फोकस भारत पर ही था. इसलिए उसका मारा जाना भारत के लिए एक बड़ी खबर है.


तीसरा, अल जवाहिरी का काबुल के High Security Zone में मारा जाना ये बताता है कि अल कायदा और तालिबान के बीच गहरा कनेक्शन है. इसलिए इस घटनाक्रम के बाद अब भारत की सुरक्षा एजेसिंयां और भी अलर्ट हो गई होंगी.


आखिरी और चौथा पॉइंट ये है कि हक्कानी नेटवर्क जिसका पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI पर गहरा प्रभाव है, उसके भी अल कायदा से गहरे संबंध हैं. ISI ने शुरुआत से ही हक्कानी नेटवर्क का इस्तेमाल अफगानिस्तान में भारत के प्रभाव को कम करने के लिए किया है. 7 जुलाई 2008 को काबुल में भारत की Embassy पर हमले हुए थे, जिनमें 54 लोग मारे गए थे और इसके बाद 8 अक्टूबर 2009 को फिर से भारत की Embassy पर हमले हुए थे. कुल मिला कर कहें तो अल जवाहिरी की मौत ने भारत को राहत की सांस दी है. हालांकि अमेरिका के लिए ये इतनी बड़ी सफलता भी नहीं है. क्योंकि अमेरिका अब भी अपने असली मकसद में कामयाब नहीं हुआ है और वो मकसद है, अल कायदा का पूरी तरह खात्मा.


पाक से भी कनेक्शन


यहां आज पाकिस्तान की बात करना भी जरूरी है. क्योंकि ऐसा माना जा रहा है कि पाकिस्तान ने ही अमेरिका की खुफिया एजेंसियों को अल जवाहिरी की लोकेशन के बारे में तमाम जानकारियां दी. पिछले कई वर्षों से अल जवाहिरी पाकिस्तान में ही छिपा हुआ था और जब पाकिस्तान को लगा कि वो अल जवाहिरी के साथ धोखा करके अमेरिका से अपने रिश्ते सुधार सकता है तो उसने अल जवाहिरी से अपना समर्थन वापस ले लिया. हालांकि आज आप दुनिया का कोई भी बड़े से बड़ा आतंकवादी देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि वो आतंकवादी चाहे किसी भी देश का हो लेकिन उसकी जड़ें पाकिस्तान में ही मिलती हैं.


लादेन का भी पाक से कनेक्शन


अमेरिका में हुए 9/11 हमले का मास्टरमाइंड और अल कायदा का चीफ ओसामा बिन लादेन सऊदी अरब का नागरिक था. लेकिन वर्ष 2011 में जब अमेरिका ने लादेन को मारा तो वो पाकिस्तान के ऐबोटाबाद में छिपा हुआ था. तालिबान की पहली सरकार का मुखिया और आतंकवादी मुल्ला उमर का भी पाकिस्तान के साथ कनेक्शन था. उसके पास अफगानिस्तान की नागरिकता थी. लेकिन 2013 में जब उसकी मौत हुई तो पता चला कि उसे भी पाकिस्तान में ही शरण मिली हुई थी.


अल कायदा का सुप्रीम लीडर अयमान अल जवाहिरी इस समय दुनिया का सबसे खतरनाक आतंकवादी था. अमेरिका ने उस पर 25 Million US Dollars यानी लगभग 200 करोड़ रुपये का इनाम रखा था. अल जवाहिरी Egypt का नागरिक था लेकिन 1990 के दशक की शुरुआत से वो पाकिस्तान में रह रहा था और मुंबई के 26/11 हमलों का मास्टरमाइंड David Headley अमेरिका का नागरिक है. लेकिन उसने भी आतंकवादी बनने की ट्रेनिंग पाकिस्तान में ही ली थी. संक्षेप में कहें तो पाकिस्तान पहले आतंकवादियों को अपने यहां शरण देता है और फिर जब उसका मतलब निकल जाता है तो वो इन्हीं आतंकियों को आधार बना कर अमेरिका जैसे देशों के साथ समझौते करता है और आर्थिक पैकेज और लोन लेने की कोशिशें करता है.