Coronavirus: जिस दवा पर डॉक्टर सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं, उसे WHO ने खारिज क्यों कर दिया?
कोरोना वायरस को लेकर अभी कई दवाओं पर रिसर्च चल रही है. 25 मई को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अचानक हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के वर्ल्ड सोलिडेरिटी ट्रायल को रोक दिया.
नई दिल्ली: कोरोना वायरस (coronavirus) को लेकर अभी कई दवाओं पर रिसर्च चल रही है. 25 मई को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अचानक हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के वर्ल्ड सोलिडेरिटी ट्रायल को रोक दिया तो भारतीय डॉक्टरों को समझ ही नहीं आया कि ये अचानक क्या हुआ. लेकिन अच्छी बात ये रही कि 26 मई को ही देश में मेडिकल रिसर्च करने वाली सर्वोच्च संस्था आईसीएमआर यानी इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च के निदेशक ने सामने आकर हाइ़़ड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन पर भरोसा जताया और कहा कि हम इस दवा को इस्तेमाल करते रहेंगे.
आईसीएमआर के निदेशक बलराम भार्गव ये बता रहे हैं कि इससे कुछ लोगों को उल्टी होती है- खाना खाने के वक्त लें, तो ये परेशानी नहीं होगी, और कोई दिक्कत नहीं है. ये भी बता रहे हैं कि किसको कितनी डोज लेना चाहिए.
60 सालों से की जा रही इस्तेमाल
मलेरिया में इस्तेमाल की जाने वाली दवाएं - हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और क्लोरोक्वीन पिछले 60 सालों से मलेरिया और आर्थराइटिस जैसी बीमारियों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक इम्युनोमॉडलेटर दवा है.
अचानक नजर आने लगीं खामियां
1955 से अमेरिका इस्तेमाल कर रहा है. मलेरिया, ल्यूपस, रयूमेटाइड आर्थराइटिस जैसी आटोइम्यून बीमारियों में इस्तेमाल की जा रही ये दवा विश्व स्वास्थ्य संगठन के सेफ्टी लेवल में अव्वल नंबर पर है. लेकिन अचानक कुछ रिसर्च कंपनियों को दवा में खामियां नजर आने लगें तो हैरान होना लाजमी है.
ये भी देखें-
बड़ी अमेरिकी मेडिकल लॉबी के हित
कहीं इसके पीछे फार्मा कंपनियों और एक बड़ी अमेरिकी मेडिकल लॉबी के निजी हित तो नहीं छिपे हैं. हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन पर अचानक से आरोप लगने लगे कि इस दवा से दिल पर असर पड़ रहा है और मौतों की तादाद बढ़ रही है, जबकि मेडिकल लिटरेचर में कहीं भी इस दवा के दिल के लिए साइड इफेक्ट दर्ज नहीं हुए
रेमडिसिविर की वकालत
इसी दौरान एक अमेरिकी कंपनी गिलियड की दवा रेमडिसिविर की वकालत होने लगी. ईबोला के लिए ईजाद की गई इस एंटीवायरल दवा के पक्ष में रिसर्च आने लगी, जबकि अमेरिका में दवाओं को मंजूरी देने वाली एजेंसी यूएस-एफडीए ने 30 अप्रैल 2020 तक इस दवा को किसी भी बीमारी में इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी थी।
बिक नहीं पाई दवा
इससे आप ये समझिए कि दवा बनी तो सही लेकिन बिक नहीं पाई. ईबोला और नीपा वायरस जिसके लिए दवा बनाई गई थी. वो ज्यादा फैला ही नहीं. अचानक इस दवा को लेकर दावे किए जाने लगे कि ये दवा कोरोना वायरस में रिकवरी को तेज कर देती है यानी मरीज जल्दी ठीक होने लगता है.
एक मई 2020 को दवा को कोरोना वायरस में इमरजेंसी इस्तेमाल के तौर पर मंजूरी मिली. इंट्रावेनस यानी आईवी इंजेक्शन के तौर पर दी जाने वाली इस दवा को केवल गंभीर मरीजों को ही दिया जा सकेगा और अस्पताल में भर्ती मरीजों को ही ये दवा दी जा सकेगी.
एकदम से मंजूरी कैसे मिली
अब आप खुद सोचिए कि एक तरफ हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन है, जो सुरक्षित भी है, सस्ती भी और दवा यानी टैबलेट के फॉर्म में इसे भारत में डॉक्टरों, कोविड ड्यूटी में लगे स्टाफ और मरीजों को भी बेखौफ दिया जा रहा है. लेकिन 60 साल के सेफ इस्तेमाल के बाद अचानक इस दवा में खामियां ढूंढने वाली रिसर्च सामने आ रही है. और दूसरी तरफ एक ऐसी दवा है जो केवल एक अमेरिकी कंपनी बना रही है, जिसके दाम अभी तय भी नहीं हैं, जो किसी बीमारी में अपनी सफलता साबित नहीं कर पाई. अचानक मंजूरी पा जाती है.
अब आपको तीस साल से ज्यादा वक्त से एम्स में काम कर रहे डॉक्टर डॉ. विनोद पॉल की बातें ध्यान से सुननी चाहिए. डॉ. पॉल नीति आयोग के सदस्य हैं और कहते हैं. भरोसा रखिए, ये दवा बिल्कुल ठीक है और हम इसे इस्तेमाल करते रहेंगे, कोई खतरा नहीं है.
अब आप उन दो दवाओं के दाम और उपलब्धता के बारे में जानिये जो इस वक्त कोरोना वायरस के इलाज में काम आ रही हैं.
-200 मिलीग्राम, इसकी दस गोलियों का एक स्ट्रिप 60 रुपए में मिल जाता है.
-आइवरमैक्टीन-12 मिलीग्राम, 4 गोलियों की कीमत 90 रुपए से लेकर 150 रुपए के बीच है.
ये दोनों दवाएं भारत में उपलब्ध हैं, सस्ती हैं और शायद इसीलिए किसी फार्मा कंपनी की इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है.
लेकिन एक ऐसी अमेरिकी दवा जिसकी गुणवत्ता का अभी कोई पता नहीं है, जिसके दाम अभी तय किए जाने हैं और सबसे बड़ी बात, ये दवा एक ही अमेरिकी फार्मा कंपनी बनाती है, उसकी चर्चा अचानक गर्म हो गई है.
कोरोना पूरी दुनिया के लिए नई बीमारी
यहां हम ये भी साफ कर दें कि कोरोना वायरस पूरी दुनिया के लिए एक नई बीमारी है. इस पर कौन सी दवा कितना कारगर होगी ये अभी नहीं कहा जा सकता, लेकिन भारत में मौजूद सस्ती दवाओं ने जो कामयाबी हासिल की है वो विश्व स्वास्थ्य संगठन को रास नहीं आ रही.
अप्रैल के महीने में जापान और अमेरिका समेत हर देश हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के लिए भारत की ओर देख रहा था. पीएम मोदी ने कई देशों को ये दवा डोनेट भी की.
हमने इस पूरे मामले पर रेमडिसिविर बनाने वाली कंपनी गिलियड को भी मेल लिखा है लेकिन अभी तक जवाब का ही इंतजार है.
वैसे भारत में कई दवाओं पर ट्रायल चल रहे हैं जो कोरोना वायरस के इलाज के तौर पर काम आ सकती हैं ये दवाएं हैं-
फेविपिरावीर
आइवरमैक्टीन
हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन
प्लाज्मा थेरेपी
बीसीजी वैक्सीन-जो आपकी इम्युनिटी बढ़ा सकती है.
माइकोबैक्टीरियम डब्लयू
और रेमडिसिविर भी
लेकिन फिलहाल डॉक्टर सबसे ज्यादा भरोसा उसी दवा पर जता रहे हैं जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने खारिज कर दिया.