Bihar News: बिहार में कब क्या हो जाए, कहा नहीं जा सकता. समीकरण बदलने में इस राज्य में जरा भी देर नहीं लगती. अब सियासी सुगबुगाहटें एक बार फिर तेज होने लगी हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक महीने के भीतर दूसरी बार अपने विधायकों-एमएलसी और पूर्व सांसदों से मुलाकात की है. इसके अलावा पटना पहुंचकर राज्यसभा में उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह भी नीतीश कुमार से मिल चुके हैं. 


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शनिवार को केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने बयान में कह दिया कि नीतीश कुमार कभी भी एनडीए में आ सकते हैं. हालांकि बीजेपी ने नीतीश के लिए लौटने की तमाम अटकलों पर फुल स्टॉप लगा दिया है.  लेकिन पॉलिटिकल पंडित कहते हैं कि आज के वक्त में कौन नेता क्या कहता है, क्या करता है, अब इसका कोई मतलब नहीं है. अगर बात नीतीश की करें तो वह पहले भी महागठबंधन छोड़कर एनडीए में लौट चुके हैं. 


वह कभी किसी खेमे का दामन थामते हैं तो कभी दूसरे का. बताया जाता है कि नीतीश कुमार ने जब महागठबंधन का दामन थामा था, तभी उनकी कुर्सी के लिए खतरा पैदा हो गया था. आरजेडी ने नीतीश से कहा था कि वे विपक्ष के पीएम पद के उम्मीदवार बनें और बिहार की सत्ता तेजस्वी यादव को चलाने दें. इसे लेकर कोई आधिकारिक बयान तो नहीं आया लेकिन हालात कुछ ऐसी ही गवाही देते हैं.


वहीं लालू के करीबी और आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने भी पत्रकारों के सामने कहा था कि पीएम बनने के लिए नीतीश कुमार को लालू यादव ने जीत का टीका लगा दिया है. अब कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन कुछ वक्त बाद नीतीश ने दांव चला और खुद को पीएम की रेस से बाहर बता दिया. इस दौरान वह विपक्ष को एकजुट करने में लगे रहे और करके भी दिखाया.शायद नीतीश कुमार यह जानते थे कि जिन दलों की मदद से उनकी बिहार में सरकार चल रही है, कांग्रेस उनके साथ हाथ कभी नहीं मिलाएगी.


हालांकि पटना में 15 नेताओं को एक मंच पर लाने के लिए नीतीश ने कड़ी मेहनत की. उनको लगा कि भले ही वह पीएम उम्मीदवार नहीं बन पाए लेकिन विपक्ष के गठजोड़ के संयोजक तो बन जाएंगे. लेकिन जब विपक्ष की दूसरी बैठक बेंगलुरु में हुई तो वहां उनको मायूसी हाथ लगी. एयरपोर्ट के बाहर सड़कों पर उनके खिलाफ पोस्टर नजर आए. बैठक में भी उनके साथ एक आम नेता जैसा बर्ताव किया गया. इसके बाद नाराज नीतीश बैठक के बाद विपक्ष की प्रेस कॉन्फ्रेंस में शरीक नहीं हुए और पटना लौट गए. उनके साथ तेजस्वी और लालू यादव को भी लौटना पड़ा.