अब आज की सबसे बड़ी ख़बर का विश्लेषण करते हैं. 


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क्या भारत के हिंदू और मुसलमान, आपस में मिल बैठकर.. राम मंदिर और बाबरी मस्जिद का विवाद सुलझा सकते हैं ? अगर ऐसा हो गया, तो ये किसी चमत्कार से कम नहीं होगा, और सुप्रीम कोर्ट को इसी चमत्कार का इंतज़ार है. सुप्रीम कोर्ट ने आज तीन सदस्यों वाला एक पैनल बनाया है.. जो इस मामले में मध्यस्थता करेगा.


ज़ी न्यूज़ पहले से ही कहता आ रहा है कि इस मामले का निपटारा अदालत के बाहर मुमकिन है. अगर मुस्लिम पक्ष अपना दिल बड़ा रखे और 107 करोड़ हिंदुओं की भावनाओं का ख्याल रखते हए.. श्रीराम के जन्मस्थान पर राम मंदिर के निर्माण के लिए तैयार हो जाए. तो पूरी दुनिया में भारत की एकता, अखंडता और धर्मनिरपेक्षता की चर्चाएं होने लगेंगी. अगर ऐसा हो गया तो ये साबित हो जाएगा कि भारत के मुसलमानों का दिल बहुत बड़ा और वो दुनिया में सबसे अलग हैं. आज हमने इस बड़ी और महत्वपूर्ण ख़बर का एक ऐतिहासिक विश्लेषण आपके लिए तैयार किया है. 


शाब्दिक रूप से देखें तो मध्यस्थता का अर्थ होता है... दो पक्षों के विवाद को सुलझाने के लिए तीसरे पक्ष द्वारा हस्तक्षेप करना. इसमें तीसरा पक्ष, दोनों पक्षों को साथ बैठाकर विवाद को खत्म करने की कोशिश करता है . इस कोशिश को ही मध्यस्थता या आपसी सहमति की प्रक्रिया कहा जाता है . 


हालांकि सवाल ये है कि जिस विवाद को पिछले 70 वर्षों में अदालतें नहीं सुलझा पाईं, जो विवाद पिछले साढ़े चार सौ वर्षों में भी नहीं सुलझ पाया, क्या वो विवाद अब मध्यस्थता से सुलझ जाएगा? और अगर मध्यस्थता से भी बात नहीं बनेगी तो फिर क्या होगा? क्या हिंदू और मुसलमान कोई समझौता करने को तैयार होंगे? क्योंकि मध्यस्थता सफल तभी होगी, जब दोनों समुदाय थोड़ा झुकने के लिए तैयार होंगे.


अब ये समझिए कि सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले में क्या है? 


सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद को मध्यस्थता के लिए भेज दिया है . सुप्रीम कोर्ट का ये आदेश 18 पन्नों का है जो हम आपको सरल भाषा में समझाएंगे . 


मध्यस्थता पैनल में तीन सदस्य हैं . सबसे पहले सदस्य जस्टिस फकीर मोहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला हैं . जस्टिस कलीफुल्ला मध्यस्थता पैनल के अध्यक्ष भी हैं . 


पैनल के दूसरे सदस्य आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर हैं . ((श्री श्री रविशंकर वर्ष 2017 और 2018 में भी राम मंदिर विवाद में आपसी सहमति बनाने की कोशिश कर चुके हैं . लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल पाई थी . ))


पैनल के तीसरे सदस्य श्री श्रीराम पंचू हैं . वो एक सीनियर एडवोकेट हैं . और उन्हें मध्यस्थता का काफी अनुभव है . 


मध्यस्थता पैनल, ज़रूरत के मुताबिक पैनल में, अन्य सदस्यों को भी शामिल कर सकता है . 


अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मध्यस्थता की प्रक्रिया को अत्यंत गोपनीय रखना चाहिए ताकि इसकी सफलता सुनिश्चित हो सके.


मध्यस्थता की कार्यवाही, और तमाम पक्षकारों के विचारों को गुप्त रखा जाए . कार्यवाही की बातों का खुलासा किसी और के सामने नहीं होना चाहिए .


सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में आगे लिखा है कि हमारी ये राय है कि मध्यस्थता की प्रक्रिया पूरी होने तक प्रिंट मीडिया या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कोई भी रिपोर्टिंग नहीं होनी चाहिए. हालांकि ये सिर्फ सुप्रीम कोर्ट की सलाह है. रिपोर्टिंग पर कोई आधिकारिक रोक नहीं लगाई गई है. 


सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता पैनल को आदेश पारित करने की शक्ति भी दी है. अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने लिखा है कि इस स्थिति में हम कोई भी विशिष्ट आदेश पारित करने के बजाय पैनल को ये ताकत दे रहे हैं कि वो मध्यस्थता की प्रक्रिया के संबंध में लिखित आदेश पारित करें . 


अगर इस पैनल को प्रक्रिया का पालन करने में कोई मुश्किल आती है या फिर...मध्यस्थता के लिए किसी सुविधा की ज़रूरत हो तो इस पैनल के अध्यक्ष कोर्ट को इसकी सूचना दे सकते हैं .


ये पैनल... उत्तर प्रदेश के फैज़ाबाद में बैठेगा और मध्यस्थों की यात्रा, सुरक्षा और दूसरी सुविधाओं की व्यवस्था राज्य की सरकार करेगी . 


कोर्ट ने आदेश दिया है कि आपसी सहमति की प्रक्रिया तुरंत शुरू हो . प्रक्रिया शुरू होने में एक हफ्ते से ज्यादा का समय ना लगे . 


मध्यस्थता पैनल की कार्यवाही नियमों के मुताबिक बंद कमरे के अंदर होगी .


प्रक्रिया के दौरान ज़रूरत पड़ने पर मध्यस्थ कानूनी सलाह भी ले सकते हैं .


अदालत ने ये कहा है कि मध्यस्थता पैनल ये सुनिश्चित करे कि 8 हफ्तों के अंदर प्रक्रिया पूरी हो जाए. 


इसके अलावा प्रक्रिया शुरू होने के चार हफ्ते के अंदर मध्यस्थता की प्रक्रिया की Progress Report भी भेजनी होगी. 


अयोध्या विवाद में कुल मिलाकर तीन पक्ष हैं . 


पहला पक्ष- निर्मोही अखाड़ा, 
दूसरा पक्ष- रामलला विराजमान...
और तीसरा पक्ष है - सुन्नी वक्फ बोर्ड . 


मध्यस्थता पैनल के तीनों सदस्य इन तीनों पक्षों के साथ बैठकर विवाद का समाधान निकालने की कोशिश करेंगे . 


आज पूरे देश को ये ज़रूर पता होना चाहिए कि मध्यस्थता पैनल में जिन सदस्यों को शामिल किया गया है उनकी उपलब्धियां क्या हैं ? 


जस्टिम इब्राहिम कलीफुल्ला इस पैनल के अध्यक्ष हैं . उन्होंने चेन्नई में वकालत का प्रैक्टिस शुरू की थी . वर्ष 2000 में उनको मद्रास हाईकोर्ट में जज नियुक्त किया गया था . बाद में वो जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस भी नियुक्त हुए . 2 अप्रैल 2012 से उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपनी सेवाएं दीं और 22 जुलाई 2016 को वो सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए . 


श्री श्री रविशंकर आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक हैं . वर्ष 2018 में भी उन्होंने अदालत के बाहर अयोध्या विवाद को सुलझाने की कोशिश की थी . उन्होंने हिंदू और मुस्लिम पक्षों से बात की थी . श्री श्री रविशंकर ने मुस्लिम पक्ष को ये सलाह दी थी कि वो विवादित जगह हिंदुओँ को सौंप दें क्योंकि ये जगह मुसमलानों के लिए महत्वपूर्ण नहीं है . 


इसके अलावा पैनल के तीसरे सदस्य हैं श्रीराम पंचू...जो चेन्नई के सीनियर एडवोकेट हैं . वो दुनिया के सबसे बड़े मध्यस्थों में गिने जाते हैं. वो The Mediation Chambers के संस्थापक भी हैं. ये एक ऐसी संस्था है जो मध्यस्थता के लिए अपनी सेवाएं देती है . वो Association of Indian Mediators नामक संस्था के President हैं . और International Mediation Institute नामक संस्था के डायरेक्टर भी हैं . उन्होंने वर्ष 2005 में देश में पहली मध्यस्थता अदालत की स्थापना भी की थी . 


इन तीनों सदस्यों की सबसे खास बात ये है कि..ये सभी तमिलनाडु के निवासी हैं .


नए भारत के निर्माण के लिए अयोध्या विवाद का हल होना बहुत ज़रूरी है. क्योंकि सच्चाई ये है कि जब तक अयोध्या विवाद हल नहीं होता, तब तक देश में सांप्रदायिक सद्भाव का माहौल नहीं बन सकता. इससे पहले भी अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए प्रधानमंत्री के स्तर पर कोशिशें हो चुकी हैं . 


प्रधानमंत्री के स्तर पर विवाद को सुलझाने की सबसे पहली कोशिश नवंबर 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वी पी सिंह के समय में हुई थी . 


लेकिन नवंबर 1990 में वी पी सिंह की सरकार गिर गई जिसके बाद समझौते की कोशिश विफल हो गई .


वी पी सिंह के बाद चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने . चंद्रशेखर ने भी अयोध्या विवाद को सुलझाने की कोशिश की . लेकिन उनकी सरकार भी गिर गई . 


इसके बाद पी वी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने . उन्होंने भी समझौते की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया . लेकिन कोई समाधान नहीं निकला . 


इसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने वर्ष 2003 में कांची पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती के ज़रिए भी अयोध्या विवाद सुलझाने की कोशिश की थी . लेकिन ये कोशिश भी विफल साबित हुई .


ये Case आज़ादी के बाद 70 वर्षों से चल रहा है . लेकिन मंदिर और मस्जिद का विवाद 491 वर्ष पुराना है . ऐसा माना जाता है कि वर्ष 1528 में अयोध्या में एक ऐसी जगह पर मस्जिद का निर्माण किया गया, जिसे हिंदू, भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं . कहा जाता है कि ये मस्जिद मुग़ल बादशाह बाबर ने बनवाई थी, जिसकी वजह से इसे बाबरी मस्जिद कहा जाता था . 


हिंदू पक्ष का ये दावा है कि 1528 से ही वो राम जन्मभूमि को वापस लेने के लिए संघर्ष कर रहे हैं . 


राम मंदिर के मामले में पहला केस वर्ष 1885 में महंत रघुबीर दास ने दाखिल किया था . तब भारत आज़ाद नहीं था . 


लेकिन अदालत में इस विवाद की शुरुआत 1949 से हुई, जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं . 


इसके बाद सरकार ने इस जगह को विवादित घोषित करके यहां ताला लगा दिया . 


फिर जनवरी 1950 में फैज़ाबाद की अदालत में हिंदू महासभा और दिगंबर अखाड़ा की तरफ से पहला मुकदमा दायर किया गया . 


इसके बाद राम मंदिर के नाम पर इस विवादित स्थल पर देश भर में कई दशकों तक राजनीति होती रही . 


1 फरवरी 1986 को फैज़ाबाद के ज़िला जज ने विवादित स्थल का ताला खोलने का आदेश दे दिया. 


इसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने राम मंदिर बनाने का आंदोलन तेज़ किया . 


फिर 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिरा दिया गया . 


वर्ष 1993 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस केस पर सुनवाई शुरू की . 


17 साल बाद वर्ष 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया .


30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या विवाद पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था . 


कोर्ट ने कहा था कि 2.77 एकड़ की विवादित ज़मीन को 3 बराबर हिस्सों में बांट दिया जाए . 


जिस जगह पर रामलला की मूर्ति है, उसे रामलला विराजमान को दे दिया जाए .


राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़े को दे दी जाए . 


और बचा हुआ एक-तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दे दिया जाए . 


इस फैसले के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में 14 अलग अलग याचिकाएं दाखिल की गई . 


इस फैसले पर 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी. 


अक्टूबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए तारीख तय करने की बात कही थी .


लेकिन जनवरी 2019 में भी सुनवाई की तारीख तय नहीं हो पाई . 


और अब एक बार फिर इस मामले को मध्यस्थता के लिए सौंप दिया गया है . 


पूरी दुनिया में ये कहा जाता है कि भारत के मुसलमान धर्मनिरपेक्ष है और सबसे अलग है . आज मुसलमानों के लिए ये बात साबित करने का बहुत बड़ा मौका है . मुसलमान चाहें तो अपना बड़ा दिल दिखाकर पूरी दुनिया में मिसाल पेश कर सकते हैं . 450 वर्षों से ज़्यादा पुराना विवाद एक दिन में खत्म हो सकता है . पूरी दुनिया में हमारे देश की धर्मनिर्पेक्ष छवि और मजबूत होगी .


देश चाहे तो 'हम' फॉर्मूले से समस्याओं को सुलझा सकता है . 'हम' का मतलब है हिंदू और मुसलमान .


इस वक्त भारत की कुल जनसंख्या 135 करोड़ है. और इसमें से करीब 80% यानी 107 करोड़ से ज्यादा हिंदू हैं . जबकि मुसलमान 14.23% यानी करीब 20 करोड़ हैं . दुनिया के 11 प्रतिशत मुसलमान भारत में रहते हैं .


इंडोनेशिया, दुनिया का सबसे ज़्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश है, वहां साढ़े 22 करोड़ मुस्लिम हैं. इसके बाद भारत, दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाला देश है . वर्ष 2050 में भारत, मुस्लिम आबादी वाला दुनिया का सबसे बड़ा देश बन जाएगा . वर्ष 2050 में भारत में करीब 31 करोड़ मुसलमान होंगे . 


ये मामला पूरे देश के 135 करोड़ लोगों की भावनाओं से जुड़ा हुआ है. 


इस वक्त भारत की कुल जनसंख्या 135 करोड़ है. और इसमें से करीब 80% यानी 107 करोड़ से ज्यादा हिंदू हैं . जबकि मुसलमान 14.23% यानी करीब 20 करोड़ हैं . दुनिया के 11 प्रतिशत मुसलमान भारत में रहते हैं .


इंडोनेशिया, दुनिया का सबसे ज़्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश है . इसके बाद भारत, दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाला देश है . वर्ष 2050 में भारत, मुस्लिम आबादी वाला दुनिया का सबसे बड़ा देश बन जाएगा . वर्ष 2050 में भारत में करीब 31 करोड़ मुसलमान होंगे . 



हमने आज भारत में रहने वाले मुसलमानों की स्थिति पर काफी रिसर्च किया है. और इस दौरान हमें जो आंकड़े मिले, वो हम आपको बताना चाहते हैं. 


2011 की जनगणना के मुताबिक भारत के साढ़े 68% मुसलमान साक्षर हैं, जबकि हिंदुओं की साक्षरता दर 73.3% है. 


2015-16 के National Family Health Survey के मुताबिक 31.4% मुस्लिम महिलाएं कभी स्कूल नहीं गईं, जबकि स्कूल ना जाने वाली हिंदू महिलाओं की संख्या 27.6% है. 


2011-12 के National Sample Survey Office के सर्वे के मुताबिक एक मुस्लिम परिवार में औसतन 5 सदस्य होते हैं, जबकि एक हिंदू परिवार में औसतन 4.4 सदस्य होते हैं. 


15.8% मुस्लिम महिलाएं नौकरी करती हैं, जबकि 24.26% हिंदू महिलाएं कामकाजी हैं. 


वैसे आपको ये जानकर हैरानी होगी कि हमारे देश में स्कूल और कॉलेजों से ज्यादा धर्मस्थलों की संख्या है. 


2011 की जनगणना के अनुसार हमारे देश में करीब 21 लाख स्कूल-कॉलेज हैं, जबकि 30 लाख से ज्यादा धार्मिक स्थल हैं. 



Zee News का ये मानना है कि देश में किसी भी सांप्रदायिक विवाद का समाधान, हिंदुओं और मुसलमानों के बीच आपसी बातचीत और समझौते से होना चाहिए . तभी सही मायने में शांति की स्थापना होगी और अमन फैलेगा. और इसके लिए कई कड़वे सत्य बोलने भी होंगे और सुनने भी होंगे . आज पूरे देश को ये भी जानना चाहिए कि अयोध्या विवाद की तरह देश में और कौन कौन से विवादित स्थल हैं . 


उत्तर प्रदेश के शिया सेंट्रल वक्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिज़वी ने मार्च 2018 में All India Muslim Personal Law Board को एक चिट्ठी लिखी थी . इस चिट्ठी में कुछ ऐतिहासिक और कड़वे सत्यों का ज़िक्र किया गया था . इस चिट्ठी में उन 9 ऐतिहासिक मंदिरों का वर्णन किया गया था जिन्हें बाद में मस्ज़िद में बदल दिया गया . 


पहला मंदिर है, अयोध्या का राम मंदिर


वसीम रिज़वी के मुताबिक अयोध्या के राम मंदिर को वर्ष 1528 में बाबर के सेनापति मीर बाकी ने तुड़वाया था . मीर बाकी ने राम मंदिर और यहां पर बने पुराने मंदिरों को तुड़वा कर एक मस्जिद का निर्माण करवाया जिसका नाम बाद में बाबरी मस्जिद पड़ा . 


दूसरा मंदिर है, मथुरा का केशव देव मंदिर


केशव देव मंदिर को औरंगज़ेब ने वर्ष 1670 में ध्वस्त किया और यहां मस्जिद का निर्माण करा दिया . 


तीसरा मंदिर है, जौनपुर का अटाला देव मंदिर 


वर्ष 1377 में फिरोज़ शाह तुगलक ने इसे तुड़वाकर वहां अटाला मस्ज़िद का निर्माण कराया . 


चौथा मंदिर है, वाराणसी का काशी विश्वनाथ मंदिर


इस मंदिर के एक हिस्से को मुगल बादशाह औरंगजेब ने वर्ष 1669 में तुड़वा कर एक मस्ज़िद का निर्माण कराया जो ज्ञानवापी मस्जिद के नाम से जानी जाती है . 


पांचवा मंदिर है, गुजरात के बटना ज़िले का रुद्र महालया मंदिर 


ये मंदिर अलाउद्दीन खिलजी ने वर्ष 1410 में तुड़वाया था और यहां पर एक मस्जिद का निर्माण कराया था, जिसे जामी मस्जिद के नाम से जाना जाता है . 


छठा मंदिर है, अहमदाबाद का भद्रकाली मंदिर 


इस हिंदू और जैन मंदिर को वर्ष 1552 में अहमदशाह ने तुड़वा कर एक मस्जिद का निर्माण कराया जो जामा मस्जिद के नाम से जानी जाती है 


वसीम रिज़वी ने अपनी चिठ्ठी में ये भी लिखा था कि पश्चिम बंगाल की पंडुवा अदीना मस्जिद, हिंदू और बौद्ध मंदिरों को तुड़वाकर बनवाई गई थी.. जो अब जामा मस्जिद के नाम से जानी जाती है . 


आठवां मंदिर है, मध्य प्रदेश के विदिशा का विजया मंदिर .


इस मंदिर को औरंगजेब द्वारा वर्ष 1658 में लूटा गया और ध्वस्त किया गया . और बाद में इसे एक मस्जिद के रूप में बदल दिया गया, जिसे वीजामंडल मस्जिद के नाम से जाना जाता है . 


और नौवीं इमारत है, दिल्ली के कुतुब मीनार परिसर में मौजूद कुव्वत-उल-इस्लाम . कुव्वत-उल-इस्लाम मस्ज़िद, 27 जैन मंदिरों को तोड़कर वर्ष 1206 से 1210 के बीच कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा बनवाई गयी . 


कुल मिलाकर इस इतिहास का एक ही संदेश है, और वो ये कि - अगर कट्टरपंथी अपना दिल बड़ा करें तो इतिहास की गलतियों को सुधारकर.. शांति की स्थापना हो सकती है . 


धर्मनिरपेक्षता जैसे शब्दों के दुरुपयोग की वजह से हमारे देश में बड़े बड़े अन्याय हो जाते हैं और बहुत सारे विवाद कभी नहीं सुलझते. अयोध्या विवाद में भी ऐसा ही हुआ है... इसलिए आज इस शब्द का DNA टेस्ट करना भी ज़रूरी है


वर्ष 1947 में आज़ादी के साथ ही भारत के दो टुकड़े हो गए थे. मुस्लिम लीग और उनके समर्थकों ने इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान का निर्माण किया . उस वक्त देश में मौजूद बहुत सारी कट्टरपंथी हिंदू शक्तियां, भारत को एक हिंदू देश बनाना चाहती थीं .


लेकिन देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस ने एक धर्मनिर्पेक्ष भारत का निर्माण करने का संकल्प लिया था . महात्मा गांधी भारत के राष्ट्रपिता थे . जिनकी धर्मनिर्पेक्षता और सद्भाव की मिसाल आज भी पूरी दुनिया में दी जाती है .


पंडित जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने . वो समाजवादी विचारधारा के व्यक्ति थे . और उनके संपूर्ण व्यक्तित्व में धर्मनिर्पेक्षता शामिल थी . 


संविधान सभा में कांग्रेस पार्टी का बहुमत था . संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष भीम राव अंबेडकर भी हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए सहमत नहीं थे . नए भारत की कल्पना एक ऐसे देश के रूप में की गई जिसमें सभी लोगों के लिए समान मौका हो . भारत में सभी लोगों को उनकी आस्था और धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक स्वतंत्रता दी गई . 


फिर भी हमारे देश के संविधान की मूल प्रस्तावना में धर्म-निरपेक्ष जैसा कोई शब्द नहीं था . ये शब्द संविधान की मूल प्रस्तावना में बाद में जोड़ा गया है . 


देश में इमरजेंसी के बाद 1976 में संविधान में 42 वां संशोधन हुआ... और संविधान की प्रस्तावना में दो शब्द जोड़े गये... ‘Secular’ यानी पंथ-निरपेक्ष और ‘Socialist’ यानी समाजवादी... 


संविधान में तो Secular शब्द का अनुवाद पंथ-निरपेक्ष किया गया है... लेकिन इसे बाद में धर्मनिरपेक्ष कहा जाने लगा . और फिर देश की तमाम पार्टियों, डिज़ाइनर पत्रकारों और बुद्धिजीवियों ने इस शब्द का दोहन किया. 


हमें इस बात की बहुत खुशी है कि सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के माध्यम से अयोध्या विवाद को सुलझाने का आदेश दिया है . Zee News पिछले कई वर्षों से लगातार ये मांग करता रहा है कि इस विवाद को आपसी सहमति के माध्यम से हल किया जा सकता है. 


ज़ी न्यूज़ ने वर्ष 2017 में भी अयोध्या विवाद में मध्यस्थता की बात कही थी. हमने आज से 1 साल 3 महीने और 21 दिन पहले ये कहा था कि अगर दोनों समुदायों के लोग आपस में मिलकर बैठें, अगर इस्लाम इजाजत देता है.. और अगर इस देश के मुसलमान अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए तैयार हो जाएं तो ये एक अभूतपूर्व समाधान होगा. लेकिन इसके साथ ही हमने ये आशंका भी जताई थी कि हमारे देश में ही बहुत से ऐसे लोग हैं जो ये नहीं चाहते हैं कि ये विवाद खत्म हो. क्योंकि अगर ऐसा हो गया तो उनकी कई वर्षों से चली आ रही राजनीतिक दुकानें बंद हो जाएंगी. 
आज हम आपको 15 नवंबर 2017 की एक पुरानी Video Clip दिखाना चाहते हैं. तब हमने पूरे देश से ये अपील की थी कि अगर ये मामला बातचीत से सुलझ जाए तो भारत पूरी दुनिया में एक मिसाल कायम करेगा. 


अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति होती तो अयोध्या का विवाद सुलझ सकता था.. 70 वर्ष का समय कितना लंबा समय होता है. इसका एहसास दिलाने के लिए हम आपको कुछ उदाहरण देना चाहते हैं 


1945 में जर्मनी का विभाजन हो गया था और उसके 45 साल बाद 1990 में पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी मिलकर दोबारा एक हो गये..


इसी तरह चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को 1978 में दुनिया के लिए खोला था.. और इसके बाद सिर्फ 39 वर्षों में चीन की अर्थव्यस्था दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्था बन गई.


सिंगापुर 1965 में आज़ाद हुआ था और 1990 में उसकी अर्थव्यवस्था विकसित देशों की श्रेणी में आ गई थी. यानी इस काम में 25 साल लगे.


लेकिन हमारे देश में अयोध्या का विवाद आज भी सुलझा नहीं है


70 वर्ष पुराना ये विवाद इसलिए नहीं सुलझ पाया क्योंकि इसे पहले धार्मिक और बाद में राजनीतिक रंग दिया गया . ये पूरा मामला धर्म और राजनीति के गलियारों में भटकता रहा . और इससे पूरे देश की राजनीति प्रभावित होती रही .


अदालत चाहे कोई भी फैसला सुनाए, दोनों पक्षों में से एक पक्ष अवश्य दुखी होगा . क्योंकि कोर्ट में किसी एक की जीत होती है और दूसरे की हार होती है.


मान लीजिए... अगर सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले में राम मंदिर बनाने का आदेश देता तो शायद देश के करीब 20 करोड़ मुसलमानों के लिए ये बात स्वीकार करना आसान नहीं होगा.


और अगर सुप्रीम कोर्ट मस्जिद बनाने की इजाज़त देता है तो देश के करीब 107 करोड़ हिंदुओं को ये फैसला स्वीकार नहीं होगा . अगर अयोध्या का मसला आपसी सहमति और प्यार से सुलझ जाता है तो देश में धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों की दुकानें हमेशा के लिए बंद हो जाएंगी . हिंदुओं और मुसलमानों को विकास चाहिए, मंदिर और मस्जिद की राजनीति नहीं.