नागरिकता संशोधन बिल के बारे में बीजेपी ने अपने मेनिफेस्टो में लिखा था. जबकि कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में कहा था कि वो कश्मीर की संवैधानिक स्थिति से छेड़छाड़ नहीं करेगी और Armed Forces Special Power Act यानी AFSPA भी नहीं हटाएगी. इसके बाद देश के पास दो विकल्प थे. देश चाहे बीजेपी को चुनता चाहे कांग्रेस को.देश ने आज़ादी छीननी होती. कांग्रेस ने लिखा था कि कि कशिनमीर में छेडछाड़ हीं करेंगे AFSPA हटा देंगे ..देश के पास विकल्प थे कि उन्हें किसे चुनना है. छीननी थी तो तभी आजादी छीन ली होती देश ने अपना फैसला सुना दिया.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में “छीन के लेंगे आज़ादी” का नारा ख़तरे का सबसे बड़ा प्रतीक है . सवाल ये है कि आज से करीब 6 महीने पहले भारत में चुनाव हुआ था तब इन लोगों ने अपने हिस्से की आज़ादी क्यों नहीं छीन ली थी ? ऐसा ही एक मौका वर्ष 2014 में भी आया था..लेकिन तब भी इन लोगों ने आज़ादी नहीं छीनी . यानी आज़ादी के दो बार मिले मौके.. इन्होंने गंवा दिए और करोड़ों भारतीयों ने जिस सरकार को चुना.


आज ये लोग उसका विरोध कर रहे हैं . लोकतंत्र में कोई भी चीज़ छीनी नहीं जा सकती..सबकुछ एक लोकतांत्रिक और संवैधानिक प्रक्रिया के तहत होता है . इस देश के 135 करोड़ लोग इस बात का फैसला करेंगे कि किसे आज़ादी देनी है..कैसे देनी है और कहां देनी है . मुट्ठी भर लोग छीन कर आज़ादी नहीं ले सकते . ये देश..एक मजबूत राष्ट्र है और यहां हिंसा और पत्थरबाज़ी करके..आज़ादी नहीं ली जा सकती .


आज आपको छात्र आंदोलनों का इतिहास भी पता होना चाहिए . माना जाता है कि छात्र आंदोलनों की शुरुआत वर्ष 1229 Paris University में हुई थी . तब स्थानीय प्रशासन..यूनिवर्सिटी पर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहता था..लेकिन छात्रों ने इसका विरोध किया और कई दिनों तक वहां हिंसा भड़कती रही . इसके बाद यूनिवर्सिटी के ऊपर से प्रशासन का नियंत्रण हटा लिया गया और Pope द्वारा इस यूनिवर्सिटी का संरक्षण किया जाने लगा .


भारत में छात्र आंदोलन की शुरुआत आज़ादी से पहले वर्ष 1848 में मानी जाती है.. तब दादा भाई नोरौजी ने छात्रों की एक सोसायटी बनाई थी . उस वक्त छात्रों के इस समूह ने Education System पर सवाल उठाया था ...इन छात्रों ने पहली बार भारतीय और अंग्रेजों के बीच के भेदभाव को लेकर आंदोलन किया था .


वर्ष 1976 में दक्षिण अफ्रीका में हज़ारों छात्रों ने अश्वेत छात्रों से भेदभाव और खराब पढ़ाई को लेकर आंदोलन किया गया था . इन छात्रों पर पुलिस ने फायरिंग की थी . जिसमें दो छात्रों की मौत हुई थी जबकि सैकड़ों घायल हुए थे . लेकिन ये आंदोलन भी पढ़ाई की गुणवत्ता और भेदभाव को लेकर हुआ था .


लेकिन आज जो हमारे देश में छात्र आंदोलन कर रहे हैं... क्या वो पढ़ाई की गुणवत्ता को लेकर है? एजुकेशन सिस्टम को लेकर है ? या फिर ये आंदोलन ...पढ़ाई में किसी तरह के भेदभाव को लेकर हो रहे हैं.. ऐसा बिल्कुल भी नहीं हो रहा है.. पढ़ाई और एजुकेशन सिस्टम को लेकर ये आंदोलन नहीं हो रहे हैं.. बल्कि एक खास एजेंडे के लिए ये आंदोलन किए जा रहे हैं..


छात्र प्रदर्शनों का ये सिलसिला इस वक्त देश के 20 से ज्यादा कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में चल रहा है . लेकिन अगर आप इन अलग अलग कॉलेज कैंपसों में जाकर....छात्रों से पूछेंगे कि ये लोग प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं..तो आपको अलग अलग जवाब मिलेंगे..कोई कहेगा कि ये लोग नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं..


तो कोई कहेगा कि ये लोग NRC का विरोध कर रहे हैं..तो कोई छात्र कहेगा कि हम हिंदू-मुस्लिम के मुद्दे पर प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन सच ये है कि इन प्रदर्शनों के नाम पर राजनीति की नई नई दुकानें खोली जा रही हैं..और देश को गुमराह किया जा रहा है.


अब आपको इन विरोध प्रदर्शनों से जुड़ा एक ताज़ा Update भी दे देते हैं . सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक..इस वक्त 5 हज़ार से ज्यादा ऐसे Social Media Accounts..Active हैं..जिन्हें पाकिस्तान से चलाया जा रहा है ...और इन फर्ज़ी Accounts के ज़रिए नागरिकता संशोधन बिल को लेकर. अफवाहें फैलाई जा रही है . पाकिस्तान के कई Celebreties भी इन अफवाहों को Viral कराने में लगे हैं . इसलिए आप भी इस तरह के फर्ज़ी Accounts और अफवाहों से सचेत रहिए.