नई दिल्ली : वो रेल बजट जिसका इंतज़ार हर साल देश की जनता करती थी, अब हमारे बीच नहीं रहा। क्योंकि आज केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आम बजट के साथ रेल बजट भी पेश किया। और इसी के साथ 93 साल पुरानी उस परंपरा का अंत हो गया, जिसकी शुरुआत ब्रिटिश राज में हुई थी। रेल बजट आज़ाद भारत में अंग्रेज़ों द्वारा छोड़ी गई वो रस्म थी जिसे हम निभाते चले जा रहे थे।


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-वर्ष 1924 से पहले तक ब्रिटिश-भारत में रेल बजट आम बजट का ही हिस्सा होता था।
-1921 में रेलवे पर बनी एक ब्रिटिश कमेटी ने रेल बजट को आम बजट से अलग करने की सिफारिश की थी।
-इसके बाद 1924 से ब्रिटिश भारत में रेल बजट अलग से पेश किया जाने लगा।
-ब्रिटिश भारत में अलग से रेल बजट इसलिए ज़रूरी था क्योंकि आम बजट का 70% हिस्सा रेल बजट ही होता था।
-लेकिन अब ज़माना बदल चुका है आज की स्थिति ये है कि रेल बजट देश के आम बजट का सिर्फ़ 5.35 प्रतिशत है।
-देश के संविधान में अलग से रेल बजट का कोई उल्लेख नहीं है, यानी एक तरह से हम ब्रिटिश राज की परंपराओं को ही आगे बढ़ाते चले आ रहे थे।
-यहां हम आपको बता दें कि अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस और रूस में भी अलग से रेल बजट पेश करने की परंपरा नहीं है।
-आप कह सकते हैं, कि रेलबजट का अंत एक शुभ शुरूआत है। 
-इस बार बजट में रेल यात्रियों को किराये में छूट जैसा कोई ऐलान नहीं किया गया है।
-लेकिन राहत की बात ये है, कि ना तो किरायों में किसी तरह की कोई बढ़ोतरी की गई है और ना ही नई ट्रेनों की घोषणा की गई है।
-हाल-फिलहाल में कई ऐसे दुखद रेल हादसे हुए हैं, जिसमें सैकड़ों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। 
-इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने 2017 और 2018 के बजट में रेलवे के लिए एक लाख करोड़ रुपये के विशेष सुरक्षा कोष की स्थापना का प्रस्ताव रखा है।
-बजट में सभी रेल कोचेज में बॉयो टायलेट लगाने का प्रस्ताव रखा गया है। 
-साथ ही यात्रियों के लिए ‘Clean My Coach' App की भी घोषणा की गई है।
-रेल कोच से संबंधित शिकायतों को दूर करने के लिए सरकार ने 'कोच मित्र' नाम की सुविधा का भी प्रस्ताव दिया है।
-बड़ी बात ये है, कि वित्त मंत्री ने IRCTC से Book होने वाली E-Tickets पर Service Charge यानी सेवा शुल्क समाप्त करने की घोषणा की है।


कुल मिलाकर आप कह सकते हैं, कि 93 वर्षों तक अंग्रेज़ों के ज़माने वाली पटरी पर दौड़ने के बाद भारतीय रेल समझदारी वाले स्टेशन पर आकर ठहरी है। रेल बजट के जाने के बाद देश के लिए इस पंरपरा को भुलाना आसान नहीं होगा क्योंकि जिस तरह कुछ याद करने में वक़्त लगता है, उसी तरह कुछ भूलने में भी वक़्त लगता है।