समाजवादी चिंतक राम मनोहर लोहिया अपने भाषणों में अक्सर ये सवाल उठाते थे कि हमारी दुनिया में गोरे रंग को इतना महत्व क्यों दिया जाता है ? हालांकि उन्होंने इसका कोई निश्चित जवाब नहीं दिया था, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि मानव सभ्यता के इतिहास में...शासन करने वालों का रंग हमेशा गोरा ही रहा है. अगर शासन करने वालों का रंग गोरा ना होकर सांवला होता, तो हो सकता है आपको गोरा नहीं, बल्कि सांवला रंग ज्यादा अच्छा लगता .
आज हम भारतीय समाज के DNA में बसे गोरे रंग के गुमान का सामाजिक और वैज्ञानिक विश्लेषण करेंगे . हमारे समाज में गोरे रंग को हमेशा ही, श्रेष्ठता के भाव से देखा गया है.


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गोरा रंग...समृद्धि, वैभव और ताकत का प्रतीक माना गया है . यहां तक कि...ईश्वर की आराधना करते हुए भी, हम मंत्रों के ज़रिये उनके जिस वर्ण या रंग की कल्पना करते हैं- वो रंग गोरा ही है . भगवान शिव की पूजा जिस मंत्र से शुरू होती है- उसके शुरुआती शब्द हैं... ''करपूर गौरम करूणा-वतारम''...इसका मतलब ये हुआ कि कपूर के समान गोरे रंग वाले भगवान शिव को हमारा प्रणाम है . यानी इस गोरे रंग का, हमारे धर्म शास्त्रों में, फिल्मों में, साहित्य में और सबसे बढ़कर समाज में हमेशा से प्रभुत्व रहा है .


लेकिन आज हम आपको ऐसी 2 रिपोर्ट दिखाएंगे, जिससे आपको पता चलेगा कि आपकी त्वचा के लिए fairness की सारी क्रीम lovely नहीं होती . पहली रिपोर्ट ये कहती है कि आपको गोरा बनाने का दावा करने वाली क्रीम में आपके स्वास्थ्य को बिगाड़ने वाला ज़हर मिला हुआ है और ये ज़हर पाकिस्तान में तैयार हो रहा है .
जबकि दूसरी रिपोर्ट से ये खुलासा हुआ है कि विज्ञापनों में आपका रंग निखारने की घोषणा करने वाली Skin Whitening Cream आपका रंग बिगाड़ रही है...और आपको ज़िंदगी भर के लिए बीमार भी बना रही है .

इस विश्लेषण को आगे बढ़ाने से पहले हम आपको 1980 के दशक में ले चलेंगे . अब आप ये विज्ञापन देखिए . ये विज्ञापन आपको अपने घर के बड़े-बुज़ुर्गों की याद दिलाएगा . आपको इस बात का अहसास कराएगा कि हमें अपनी जड़ों को, अपनी संस्कृति को कभी नहीं भूलना चाहिए. आप इस विज्ञापन को देखते हुए nostalgic हो सकते हैं...अपने बीते दिनों में खो सकते हैं . लेकिन, आपको जिस बात पर ध्यान देना है, वो ये है कि ...कैसे इस विज्ञापन में आपको भावुक बनाकर गोरेपन के क्रीम का विज्ञापन किया जा रहा है ..


अक्सर ऐसा होता है कि हमारे परिवारों में बचपन से ही दादी और नानियां रंग साफ करने के नुस्खे बताने लगती हैं . परिवार की किसी लड़की का रंग अगर साफ नहीं है ...तो बचपन से ही बेसन-दूध-हल्दी का लेप लगाने ...या इसी तरह की दूसरी सलाह मिलने लगती है . इसी तरह शादी के लिए हर परिवार की पहली पसंद ऐसी बहू होती है, जिसका रंग गोरा हो . शादी के विज्ञापनों में बाकायदा लोगों की मांग होती है कि उन्हें बहू गोरी ही चाहिए .


हमारे घरों में ऐसी धारणा बनने लगती है कि लड़की का रंग अगर सांवला है तो उसकी शादी में मुश्किल आती है .


गोरे रंग की ये चाहत कैसे बाज़ार के बहुत बड़े तंत्र को मदद करती है, हमें इसका पता भी नहीं चलता . जबकि हक़ीक़त ये है कि जिस रंग के साथ हम पैदा हुए हैं, उसी रंग के साथ विदाई ही, जीवन की आखिरी सच्चाई है . इसलिए आज सबसे पहले हम आपको वो रिपोर्ट दिखाते हैं, जो आपको आगाह करेगी कि... गोरेपन के सपने के पीछे आंख बंद करके मत भागिए .