ज़ी जानकारी: Triple तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से फ़ैसला दिया कि ट्रिपल तलाक़ को ख़ारिज किया जाता है.कोर्ट ने कहा कि ट्रिपल तलाक़ संविधान के अनुच्छेद 14 यानी समानता के अधिकार का उल्लंघन है.
सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 11 मई को Triple तलाक पर ऐतिहासिक सुनवाई शुरू की थी. सुप्रीम कोर्ट को ये फैसला करना था कि Triple तलाक जायज़ है या नहीं? और क्या ये इस्लाम का मूल हिस्सा है?18 मई तक सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर लगातार सुनवाई करने के बाद अपने फैसले को सुरक्षित रख लिया था और फिर मंगलवार यानि 22 अगस्त को कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. 5 जजों की बेंच ने ये फैसला सुनाया. इन जजों के नाम हैं, Chief Justice जगदीश सिंह खेहर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस रोहिंगटन फाली नरीमन, जस्टिस उदय उमेश ललित और जस्टिस अब्दुल नज़ीर. 5 धर्मों के 5 जज इस बेंच में शामिल थे.
पांचों जजों ने ये माना कि Triple तलाक़ में खामियां थीं.5 में से 3 जजों ने बहुमत से फ़ैसला दिया कि Triple तलाक़ असंवैधानिक और गैरकानूनी है. इसलिए इसे खत्म किया जाना चाहिए. ये तीन जज थे जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस रोहिंगटन फाली नरीमन और जस्टिस उदय उमेश ललित जबकि 2 जजों ने कहा कि इस पर कानून बनाने की ज़रूरत है. ये दो जज थे Chief Justice जगदीश सिंह खेहर और जस्टिस अब्दुल नज़ीर.
सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से फ़ैसला दिया कि ट्रिपल तलाक़ को ख़ारिज किया जाता है.कोर्ट ने कहा कि ट्रिपल तलाक़ संविधान के अनुच्छेद 14 यानी समानता के अधिकार का उल्लंघन है.अपने फैसले में अदालत ने ये भी कहा कि ट्रिपल तलाक़ क़ुरान के बुनियादी सिद्धांतों के ख़िलाफ़ है.हम शाह बानो केस की बात कर रहे हैं. शाह बानो को 62 साल की उम्र में उनके पति ने 1978 में तलाक दे दिया था. शाह बानो ने पति से गुज़ारा भत्ता लेने के लिए अदालत में अपील की, क्योंकि शाह बानो के 5 बच्चे थे. मामला सुप्रीम कोर्ट गया तो 7 साल बीत गए थे.
सुप्रीम कोर्ट ने जब शाह बानो के पति मोहम्मद अहमद खान से पूछा था कि आखिर वो भरण-पोषण भत्ता क्यों नहीं देना चाहते हैं? तो उन्होंने मुस्लिम Personal Law का सहारा लिया और कहा कि उनके धार्मिक कानून में तलाकशुदा महिलाओं को गुज़ारा भत्ता देने का कोई प्रावधान नहीं था.
इसके बाद 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया था. कोर्ट ने शाह बानो के पति को.. गुज़ारा भत्ता देने का आदेश दिया था. लेकिन तब भारत के रूढ़िवादी मुसलमानों ने इस फैसले का जमकर विरोध किया. देशभर में आंदोलन की धमकियां दी गईं. इसके बाद 1986 में राजीव गांधी की सरकार ने एक कानून पास किया जिसने शाह बानो मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय को उलट दिया. अपने इस फैसले को राजीव गांधी की सरकार ने "धर्म-निरपेक्षता" के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया था.
हम भारत सरकार को ये निर्देश देते हैं कि तलाक-ए-बिद्दत यानी एक बार में Triple तलाक पर उचित कानून बनाया जाए. दोनों जजों ने अपने फैसले में लिखा है कि हम उम्मीद करते हैं कि मुस्लिम पर्सनल लॉ यानी शरीयत पर भी अपेक्षित कानून बनाया जाएगा. क्योंकि दुनिया भर में इस पर कानून बनाये गए हैं.
इस पूरे मामले में सबसे साधारण सवाल, जिसका जवाब दिया जाना है वो ये है कि क्या Triple तलाक की कोई वैधता है? अपने फैसले में जस्टिस कुरियन ने एक और महत्वपूर्ण बात लिखी है.उन्होंने लिखा है कि पवित्र कुरान में टाली न जा सकने वाली परिस्थिति में तलाक जायज़ है. लेकिन इससे पहले सुलह की कोशिशें होनी चाहिएं. लेकिन Triple तलाक में ये दरवाज़ा बंद हो जाता है. इसलिए Triple तलाक कुरान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है और ये शरीयत का भी उल्लंघन करता है.
जस्टिस नरीमन ने अपने Judgment की पहली लाइन में ये लिखा हुआ है कि वो Chief Justice के फैसले से असहमत हैं. अपने फैसले में इन दोनों जजों ने ये भी लिखा है कि ये साफ है कि इस तरह के तलाक में मुस्लिम पुरुष अपनी शादी को बचाने के बजाए उसे मनचाहे तरीके से तोड़ सकते हैं. इस तरह के तलाक भारत के संविधान के आर्टिकल 14 के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं.
दुनिया के इस नक्शे में आप देख सकते हैं कि कुल 20 से ज्यादा देश हैं जिन्होंने ट्रिपल तलाक की परंपरा पर Ban लगाया है . इस नक्शे में Middle East के कई देश आपको नजर आ रहे होंगे, जहां इस्लाम के मुताबिक कानून बनाए गए हैं और Triple तलाक को प्रतिबंधित किया गया है. टर्की, ट्यूनीशिया, मोरक्को, सीरिया, Egypt, इराक़, क़तर, ईरान, UAE, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और इंडोनेशिया में भी Triple तलाक की परंपरा को गैरकानूनी माना गया है आज दुनिया का ये नक्शा उन लोगों को जरूर देखना चाहिए, जो देश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों के नाम पर मुस्लिम महिलाओं के हक का विरोध करते हैं.
पाकिस्तान ने भारत से अलग होने के 9 साल बाद यानी सन 1956 में ही ट्रिपल तलाक़ को खत्म कर दिया था. इसके पीछे की कहानी बहुत दिलचस्प है. सन् 1955 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मोहम्मद अली बोगरा ने. पनी पत्नी को तलाक दिए बिना अपनी सेक्रेटरी से शादी कर ली थी. इसके बाद वहां All Pakistan Women Association की तरफ से विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे. और इसी के बाद पाकिस्तान में ट्रिपल तलाक को खत्म करने पर बहस शुरू हुई.
इसके बाद वर्ष 1956 में सात सदस्यों वाले एक कमीशन ने ट्रिपल तलाक को खत्म कर दिया.कमीशन की तरफ से ये फैसला सुनाया गया कि पत्नी को तलाक कहने से पहले पति को Matrimonial and Family Court से तलाक का आदेश लेना होगा. इसके बाद 1961 में इसमें एक और बदलाव हुआ और फिर ये तय हुआ कि पति... तलाक के मामले पर बनाई गई एक सरकारी संस्था के चेयरमैन को नोटिस देगा.