Zee जानकारी: चमत्कारी बच्ची को क्यों अकेला छोड़कर चली गई मां?
30 दिसंबर के DNA में हमने आपको उस बच्ची के बारे में बताया था जिसका जन्म चलती ट्रेन के शौचालय में हुआ और फिर वो शौचालय से फिसल गई लेकिन वो बच्ची फिर भी ज़िंदा रही इसे कहते हैं जाको राखे साइयां मार सके ना कोय। लेकिन जिस बच्ची को भगवान ने बचा लिया। उस बच्ची को उसकी मां अकेला छोड़कर चली गई। इसे कहते हैं किस्मत।
नई दिल्ली: 30 दिसंबर के DNA में हमने आपको उस बच्ची के बारे में बताया था जिसका जन्म चलती ट्रेन के शौचालय में हुआ और फिर वो शौचालय से फिसल गई लेकिन वो बच्ची फिर भी ज़िंदा रही इसे कहते हैं जाको राखे साइयां मार सके ना कोय। लेकिन जिस बच्ची को भगवान ने बचा लिया। उस बच्ची को उसकी मां अकेला छोड़कर चली गई। इसे कहते हैं किस्मत।
जिस बच्ची को Miracle Baby यानी चमत्कारी बच्ची कहा जा रहा था फिलहाल उसका इस दुनिया में कोई नहीं है। चलती ट्रेन के नीचे आकर भी सुरक्षित बच निकलने वाली बच्ची को उसकी मां क्यों छोड़कर चली गई? इसके बारे में हम आपको आगे विस्तार से बताएंगे..लेकिन इससे पहले आपको इस बच्ची के जन्म की चमत्कार जैसी घटना के बारे में पता होना चाहिए?
ये घटना 28 दिसंबर 2015 को उत्तर प्रदेश में बरेली-टनकपुर पैसेंजर ट्रेन में हुई थी नेपाल की रहने वाली 40 वर्ष की एक गर्भवती महिला पीलीभीत से बरेली आ रही थी। बरेली के पास भोजीपुरा रेलवे स्टेशन पर उसे प्रसव पीड़ा महसूस हुई। ये महिला ट्रेन के शौचालय में गई और शौचालय में ही उसकी डिलीवरी हो गई। इसके बाद जो हुआ, वो और भी चौंकाने वाला था। शौचालय में जन्मी बच्ची शौचालय से फिसल कर toilet pipe से होते हुए नीचे रेलवे ट्रैक पर गिर गई और पूरी ट्रेन इस बच्ची के ऊपर से निकल गई लेकिन बच्ची के ऊपर से पूरी ट्रेन गुज़र जाने के बावजूद उसे खरोंच तक नहीं आई।
हालांकि अब उसे सिर्फ 9 दिन की उम्र में अकेलेपन का ज़ख्म मिल गया है क्योंकि उसकी मां उसे छोड़कर गायब हो गई है। परेशानी की बात ये है कि इस बच्ची को तकनीकी तौर पर अनाथ भी नहीं माना जा रहा इसलिए कोई उसे गोद भी नहीं ले सकता ये एक 9 दिन की बच्ची का दर्द है और ये बच्ची अभी ये भी नहीं समझ सकती कि उसके साथ क्या हुआ है? हमें लगता है कि ये ख़बर देश के किसी भी संवेदनशील व्यक्ति की भावनाओं को पिघला सकती है।
अपनी नवजात बेटी को अकेला छोड़कर जाने से पहले बच्ची की मां पुष्पा टंटा एक पत्र भी छोड़ गईं। जिसमें लिखा है। मैं बेघर हूं। लोगों के घरों में बर्तन साफ करती हूं। मैं इस बच्ची को पालने में असर्मथ हूं। इसलिए बच्ची को किसी संस्था में भेज दिया जाए। फिलहाल बच्ची को रामपुर के एक अनाथालय शिशु सदन को दे दिया गया है। बच्ची की मां को ढूंढ़ने की कोशिश की जा रही है लेकिन अनाथालय को ये समझ नहीं आ रहा कि बच्ची के साथ क्या किया जाए?
नाबालिग न्याय अधिनियम 2000 के मुताबिक अगर किसी बच्चे की मां ज़िंदा हो तो उसे अनाथ नहीं माना जा सकता। इस मामले में ये ज़रूरी है कि बच्ची की मां को ढूंढ़ा जाए और फिर उससे बच्ची के सरेंडर के कागज़ पर दस्तख़त करवाए जाएं। जिसके बाद बच्ची को गोद देने की कानूनी प्रक्रिया शुरु की जा सकती है। कहते हैं कि जिसका कोई नहीं होता, उसका ऊपरवाला होता है। अब इस बच्ची का भविष्य भी ऊपरवाले के भरोसे है।
सिर्फ 9 दिन की जिस बच्ची को अकेलेपन का ज़ख्म मिला, वो जख्म उसे हमेशा दर्द देता रहेगा। लेकिन ये कोई अकेली बच्ची नहीं है जिसकी मां ने उसे इस दुनिया में अकेला छोड़ दिया। Children’s Village India नामक गैर सरकारी संस्था की रिपोर्ट के मुताबिकः-
* भारत में 2 करोड़ बच्चे अनाथ हैं।
* जिनमें से सिर्फ 60 हजार अनाथ बच्चे ऐसे हैं जिनके माता-पिता की मौत हो चुकी है
* जबकि बाकी के 1 करोड़ 99 लाख 40 हजार बच्चे ऐसे हैं जिनको उनके माता-पिता ने बचपन में ही छोड़ दिया।
* इन अनाथ बच्चों को गोद लेकर इन्हें सुनहरा भविष्य दिया जा सकता है लेकिन दुख की बात ये है कि भारत में Adoption Rate यानी गोद लेने की दर प्रतिवर्ष सिर्फ 800 से 1000 है।
बच्चों को देश का भविष्य कहा जाता है। ऐसे में हमें लगता है कि अनाथ बच्चों का भविष्य संवारने के लिए हमारे समाज और सिस्टम को संवेदनशील होने की सख्त ज़रूरत है। जाति और धर्म के बंधनों में बंधे हमारे देश के लोगों, धर्मगुरुओं और ठेकेदारों को इन अनाथ बच्चों का जीवन सुधारने पर ध्यान लगाना चाहिए।